विदेशों में हिन्दोस्तानी प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा

19 जून को एक हिन्दोस्तानी प्रवासी मज़दूर की मृत्यु हो गई, जो उसके दो दिन पहले एक कृषि मशीन से गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस घटना ने एक बार फिर विदेशों में हिन्दोस्तानी प्रवासी मज़दूरों की परिस्थिति पर प्रकाश डाला है। दुर्घटनाग्रस्त होने वाला व्यक्ति पंजाब के मोगा जिले का सतनाम सिंह था, जो हिन्दोस्तान में अपने वृद्ध माता-पिता की बेहतर देख-भाल के लिए कुछ पैसे कमा कर भेजने की उम्मीद से इटली चला गया था। जब दुर्घटना हुई, वह राजधानी रोम के पास इटली के लैटिनो जिले में एक खेत में रैपिंग मशीन पर काम कर रहा था। मशीन में खींचे जाने से उसका एक हाथ कट गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गया। चिकित्सा सहायता की व्यवस्था करने के बजाय, खेत के मालिक ने सतनाम सिंह की खून से लथपत शरीर कोमरने के लिए कूड़े के ढेर में फेंक दिया।

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प्रवासी खेत मजदूरों की दुर्दशा के विरोध में लेटिना में मजदूर संगठनो का प्रदर्शन, 22 जून 2024

इटली में खेत मज़दूरों के अनुसार ऐसी दुर्घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। हालांकि, इनमें से अधिकतर की रिपोर्टें मीडिया तकनहीं पहुंच पाती है क्योंकि कई प्रवासी मज़दूरों को देश में कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं है। खेत मालिक कटाई के मौसम में बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखते हैं। ऐसे मज़दूरों के पास कोई क़ानूनी दर्जा न होने के कारण ये मज़दूर बहुत ही असुरक्षित होते हैं और वे अपने मानव अधिकारों की पुष्टि कराने में सक्षम नहीं होते हैं।

उन्हें क़ानूनी न्यूनतम मज़दूरी से बहुत कम वेतन पर लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। अक्सर उनके पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज़ खेत के मालिक या उनके रोजगार एजेंट द्वारा जब्त कर लिए जाते हैं, जिससे शिकायत दर्ज करना या चिकित्सा उपचार प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जाता है, अगर वे खेत से निकलने में कामयाब भी हो जाते हैं तो। वे वस्तुतः गुलाम हैं और उन्हें काम की बहुत दमनकारी और शोषणकारी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, साथ ही उनके सिर पर हमेशा निर्वासन का ख़तरा मंडराता रहता है। जब ये मज़दूर किसी दुर्घटना में घायल हो जाते हैं, तो कई खेत मालिक उन्हें बोझ समझते हैं और उनकी चिकित्सा का ख़र्च वहन नहीं करना चाहते हैं। मालिक उन्हें अपने खेत से बाहर निकाल देते हैं और उनसे कोई लेना-देना नहीं रखना चाहते हैं। सतनाम सिंह के साथ भी यही हुआ, सिवाय इसके कि उसका बहुत खून बह रहा था और वह इतना बुरी तरह घायल था कि वह अपने आप हिल भी नहीं सकता था।

सतनाम सिंह का मामला केवल इसलिए प्रकाश में आया क्योंकि अन्य खेत मज़दूरों ने विद्रोह कर दिया और विरोध प्रदर्शन किया। वे देख सकते थे कि अगर तत्काल सहायता प्रदान नहीं की गई तो सतनाम सिंह की मृत्यु निश्चित थी। उन्होंने काम बंद कर दिया और शोर मचाया, जिसके कारण अधिकारियों को सतनाम सिंह को रोम के एक अस्पताल हवाई टेक्सी में ले जाना पड़ा। हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सतनाम सिंह ने अस्पताल पहुंचने के तुरंत बाद ही दम तोड़ दिया।

प्रवासी मज़दूरों की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तब सामने आई, जब इटली में मज़दूर यूनियनों ने इस मुद्दे को उठाने का फ़ैसला किया। उन्होंने 22 जून को लैटिना जिले में एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया। इस प्रदर्शन में हिन्दोस्तान सहित अनेक खेत मज़दूरों ने हिस्सा लिया। इस मुद्दे को मीडिया और सोशल मीडिया ने उठाया गया, जिसके कारण इटली के प्रधानमंत्री और हिन्दोस्तान के विदेश मंत्री को बयान देने पड़े।

जन आक्रोश के कारण कुछ खेत मालिकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई। इटली की पुलिस ने उस कंपनी के मालिक को गिरफ़्तार कर लिया, जिसके पास वह खेत था, जहां सतनाम सिंह काम करता था। इटली के वेरोना जिले में पुलिस ने दो कृषि फार्म मालिकों को गिरफ़्तार किया। 33 हिन्दोस्तानी प्रवासी मज़दूर मुक्त किये गये और बड़ी मात्रा में नकदी ज़ब्त की गई। अनुमान है कि इटली में प्रवासी कृषि मज़दूरों का हिंसक शोषण बड़े पैमाने पर होता है। अकेले लैटिना जिले में, हजारों हिन्दोस्तानी कृषि मज़दूर हैं। एक इतालवी बीमा एजेंसी, आईएनएआईएल ने बताया है कि हाल के दिनों में घातक कृषि दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है और इस वर्ष के केवल पहले चार महीनों में 268 मौतें हुई हैं!

सवाल यह है कि हिन्दोस्तानी मज़दूर अपने घर छोड़ने और विदेशों में ऐसे शोषणकारी और दमनकारी कार्य स्थितियों को स्वीकार करने के लिए क्यों मजबूर हैं?

हिन्दोस्तान में रोजगार के अवसरों की कमी मज़दूरों को दुनिया के अन्य देशों में अवसरों की तलाश करने के लिए मजबूर करती है। ऐसे भी भर्ती एजेंट हैं जो अन्य देशों में जीवन की गुलाबी-गुलाबी तस्वीर पेश करते हैं। हिन्दोस्तान में काम की शोषणकारी स्थितियों से तंग आकर कई मेहनतकश अपनी थोड़ी-बहुत संपत्ति बेचने या अपने परिवार और दोस्तों से कर्ज लेकर दूसरे देशों में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला करते हैं। उन्हें जल्द ही पता चल जाता है कि वहां भी काम की स्थितियां उतनी अच्छी नहीं हैं। नौकरी पाने की कोशिश में अपना पैसा खर्च करने और उन देशों की वास्तविकता को न जान पाने के कारण कई मज़दूर अपने नियोक्ताओं या एजेंटों के गुलाम बन जाते हैं।

पूंजीवादी व्यवस्था तब तक आगे नहीं बढ़ सकती जब तक वह मज़दूरों व मेहनतकश लोगों के शोषण को और तीव्र न करे। यह दुनिया में हर जगह सच है, जहां भी पूंजीवादी व्यवस्था मौजूद है।

हिन्दोस्तान में भी, मज़दूरों का शोषण और गुलामी तेजी से बढ़ रही है। सभी आधुनिक उद्योगों में काम करने वाले, चाहे वह अमेज़न के गोदाम हों या दक्षिण भारत में अत्याधुनिक आई-फोन निर्माण सुविधा, वस्तुतः गुलामों की तरह रहते हैं। पूंजीवादी मालिक उनके श्रम से अधिकतम मुनाफ़ा कमाते हैं और उनका भरपूर शोषण करते हैं। वे उन्हें 18 से 25 साल की उम्र में काम पर रखते हैं, जब उनकी उत्पादकता शिखर पर होती है, और उसके बाद उन्हें बाहर निकाल देते हैं। काम की परिस्थितियां इतनी दमनकारी होती हैं कि वे मुश्किल से ही अगले दिन काम करने के लायक हो पाते हैं। नतीजा यह होता है कि युवावस्था में ही वे काम की परिस्थितियों से पैदा अलग-अलग बीमारियों से पीड़ित होने लगते हैं। अन्य सभी क्षेत्रों के मज़दूरों के लिए भी ऐसी ही दमनकारी परिस्थितियां पैदा की जा रही हैं। सभी नियमित नौकरियां ठेका प्रथा में तब्दील हो रही हैं, जिसमें मज़दूरों को वैधानिक न्यूनतम मजदूरी भी प्राप्त किए बिना लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।

मजदूर वर्ग के शोषण को समाप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि मज़दूर एकजुट होकर पूंजीपतियों के शासन की जगह खुद अपना शासन स्थापित करने के संघर्ष को आगे बढ़ाएं। मज़दूर वर्ग खुद को और अन्य मेहनतकश तबकों को शोषण से तभी मुक्त कर पाएगा, जब उत्पादन के साधनों को पूंजीपति वर्ग से लेकर सामाजिक स्वामित्व में तब्दील किया जाए। इससे उत्पादन का उद्देश्य “पूंजीवादी मुनाफ़े को अधिकतम करने” से बदलकर “पूरे समाज की लगातार बढ़ती भौतिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की अधिकतम पूर्ती सुनिश्चित करना” किया जा सकेगा।

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