हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 24 जुलाई, 2024
5 महीने पहले, 13 फरवरी, 2024 को, हरियाणा सरकार ने अंबाला जिले में शंभू बोर्डर और जींद जिले में खनौरी बोर्डर पर बैरिकेड्स लगाए थे। ये बैरिकेड्स पंजाब के किसानों को केंद्र सरकार के सामने अपनी मांगें रखने के लिए ट्रैक्टर-ट्रोलियों में दिल्ली आने से रोकने के लिए लगाए गए थे।
भाजपा की अगुवाई वाली हरियाणा सरकार ने पंजाब के साथ अंतरराज्यीय बोर्डरों पर सड़कें खोद दी थी। बैरिकेड्स की कई परतें लगाई गईं थीं ताकि ट्रैक्टर-ट्रालियां न गुजर सकें। पुलिस ने सड़कों पर कंक्रीट के स्लैब लगाए थे और ट्रैक्टर-ट्रालियों के टायरों को नष्ट करने के लिए विशेष कीलें लगाई थीं।
किसानों पर बर्बरतापूर्वक लाठी-चार्ज किया गया। पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने किसानों पर पानी की बौछार की और आंसू गैस के गोले छोड़े। ये आंसू गैस के गोले मिलिट्री ग्रेड के थे, जिनका इस्तेमाल सेना द्वारा युद्ध के दौरान किया जाता है। सरकार ने किसानों पर आसमान से आंसू गैस के गोले छोड़ने के लिए विशेष-प्रयोग वाले ड्रोन का इस्तेमाल किया। हरियाणा पुलिस ने किसानों पर गोलीबारी करने के लिए गोला बारूद का भी इस्तेमाल किया। सैकड़ों किसानों को गंभीर चोटें आईं और वे लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहे। पुलिस की फायरिंग में एक नौजवान किसान शुभकरण सिंह शहीद हो गये। पंजाब-हरियाणा बोर्डर पर चल रहे आंदोलन के दौरान कई अन्य लोगों की मौत हो चुकी है।
किसानों ने ऐसा क्या गुनाह किया है कि उन पर सरकार और उसके सुरक्षा बलों द्वारा इतनी बेरहमी से हमला किया गया है? किसान सिर्फ यही मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा किसान आंदोलन के साथ किए गए समझौते को लागू किया जाये, जिसके आधार पर किसान 11 दिसंबर, 2021 को दिल्ली बोर्डर पर अपने 13 महीने लंबे आंदोलन को स्थगित करने पर सहमत हुए थे।
केंद्र सरकार ने वादा किया था कि वह सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देगी। उसने आंदोलन में भाग लेने के लिए किसानों के खिलाफ़ सभी आपराधिक मामले वापस लेने का वादा किया था। उसने लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को सज़ा देने का वादा किया था। केंद्र सरकार द्वारा किये गये किसी भी वादे पर अमल नहीं किया गया है। यही वजह है कि किसान संगठनों ने फरवरी 2024 में फिर से अपना आंदोलन शुरू किया।
पंजाब-हरियाणा बोर्डर पर धरना दे रहे किसानों को बेहद ज़हरीले दुष्प्रचार का निशाना बनाया गया है। केंद्र सरकार ने लोगों को धर्म के आधार पर बांटने के लिए, किसानों को ‘सिख आतंकवादी’ बताकर, साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिश की है। केंद्र सरकार ने यह झूठ फैलाया है कि किसान हिंसक हैं और हर जगह अराजकता व हिंसा फैलाना चाहते हैं। परन्तु, किसानों ने इन झूठों का खंडन किया है और समझदारी तथा प्रौढ़ता से काम किया है। पांच महीने से अधिक समय से, वे शंभू और खनौरी बोर्डरों पर डटे हुए हैं और दिल्ली पहुंचने की अपनी योजना को वापस लेने से इनकार कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार के उकसावे में आने से इनकार कर दिया है। किसानों ने घोषणा की है कि बैरिकेड हटा दिए जाने पर वे दिल्ली तक अपना नियोजित मार्च फिर से शुरू करेंगे। उन्होंने बहादुरी से ऐलान किया है कि अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए चाहे कितने भी साल लग जाएं, वे अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे।
10 जुलाई को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को पंजाब-हरियाणा बोर्डर पर बैरिकेड हटाने का आदेश दिया था। गौरतलब है कि बोर्डर बंद होने से सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि बोर्डर पर बड़ी संख्या में कारोबार भी प्रभावित हुए हैं। इन कारोबारों ने भी हरियाणा सरकार से बैरिकेड्स हटाने और अंतरराज्यीय बोर्डर पर मुक्त आवाजाही की अनुमति देने की अपील की है। लेकिन हाई कोर्ट के फैसले को लागू करने के बजाय, हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार के किसान-विरोधी रवैये की निंदा करती है। हमारे देश की राजधानी दिल्ली पूरे हिन्दोस्तान के लोगों की है। पंजाब समेत हिन्दोस्तान के हर क्षेत्र के किसानों को दिल्ली आकर अपनी मांगें उठाने का अधिकार है। किसानों या हमारे मेहनतकश लोगों के किसी अन्य तबके को अपनी मांगों को उठाने के लिए दिल्ली में एकत्रित होने से रोकना हमारे लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का बहुत बड़ा हनन है।
किसानों की यह मांग, कि केंद्र सरकार सभी कृषि फसलों के लिए एमएसपी सुनिश्चित करके उनकी रोजीरोटी की सुरक्षा की गारंटी दे, यह पूरी तरह से जायज़ मांग है। यदि किसानों को एमएसपी की गारंटी दी जाए और मज़दूरों को सम्मान से जीने लायक वेतन की गारंटी दी जाए, तो पूरे समाज की हालतों में उन्नति होगी। किसान नेता बार-बार यह बता रहे हैं कि सरकार सभी कृषि उपजों के लिए एमएसपी लागू करने से सिर्फ इसलिए इनकार कर रही है क्योंकि वह हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के एजेंडे के लिए काम कर रही है। हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े इजारेदार पूंजीपति कृषि व्यापार पर अपना वर्चस्व सुनिश्चित करना चाहते हैं।
भारतीय किसान यूनियन एकता सिद्धूपुर के जगजीत सिंह ढल्लेवाल, किसान मजदूर मोर्चा के सरवन सिंह पंधेर, भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के सुरजीत सिंह फुल और कई अन्य किसान नेताओं ने घोषणा की है कि बैरिकेड हटाए जाने पर वे दिल्ली की ओर मार्च करेंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि सरकार को अपनी जायज़ मांगें मानने को मजबूर करने के अभियान के तहत, वे 1 अगस्त को केंद्रीय मंत्रियों के पुतले जलाएंगे और 15 अगस्त को देश भर के विभिन्न जिलों में ट्रैक्टर मार्च आयोजित करेंगे। इस अभियान के तहत उन्होंने घोषणा की कि सितंबर में हरियाणा में एक विशाल महापंचायत का आयोजन किया जाएगा।
आज़ादी के बाद से, पिछले 76 वर्षों के अनुभव से किसान इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि हमारे देश में मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था किसान-विरोधी, मजदूर-विरोधी और समाज-विरोधी है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें लगभग 150 इजारेदार पूंजीपति मजदूरों के तीव्र शोषण, किसानों की लूट और हमारे देश के अनमोल प्राकृतिक संसाधनों की लूट के जरिये, सबसे तेज गति से खुद को मालामाल कर रहे हैं। जीवन के अनुभव से यह साफ़ होता है कि न तो किसान और न ही मजदूर भाजपा या कांग्रेस पार्टी जैसी पूंजीपति वर्ग की राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा कर सकते हैं। जब ये पार्टियां विपक्ष में होती हैं तो किसानों और मजदूरों की बदहाली पर आंसू बहाती हैं। लेकिन जब सरकार चलाने की उनकी बारी आती है, तो वे मज़दूरों और किसानों के हितों को कुचलकर, इजारेदार पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ाने के एजेंडे को लागू करती हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी किसानों की लड़ाई में उनकी हिम्मत की सराहना करती है। किसान हुक्मरानों द्वारा उन पर बरसाई गई सभी हिंसा और सभी अपमानों के सामने घुटने टेकने से लगातार इनकार कर रहे हैं।
किसानों का संघर्ष मज़दूर वर्ग और सभी उत्पीड़ितों के, एक ऐसे नए समाज के लिए संघर्ष का हिस्सा है, जिसमें मेहनतकश लोग फैसले लेने वाले होंगे और अर्थव्यवस्था का उद्देश्य मेहनतकशों की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करना होगा, न कि पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ाना। किसानों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता मज़दूर वर्ग और सभी शोषितों व उत्पीड़ितों के साथ एकजुट होकर, उस नए समाज के निर्माण के लिए संघर्ष को तेज़ करना है।