देशभर में लाखों-लाखों नौजवान गुस्सा और हताशा के साथ सड़कों पर उतर आये हैं। देश के कई हिस्सों में नौजवान बड़ी संख्या में आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि शिक्षा और सुरक्षित रोजगार की उनकी आकांक्षाओं को सुनियोजित तरीक़े से कुचला जा रहा है।
इस साल 5 मई को आयोजित नीट-यूजी परीक्षा के नतीजों में गंभीर विसंगतियों, पेपर लीक और करोड़ों रुपये की धांधली व घोटाले का पर्दाफाश होने से, हिन्दोस्तान में कहीं भी किसी सरकारी कॉलेज में मेडिकल स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रम की सीट हासिल करने के लगभग 24 लाख नौजवानों के सपने चकनाचूर हो गए हैं।
नीट-यूजी परीक्षा, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित की जाती है, जो सीधे केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन है। इस वर्ष जून में, यूजीसी-नेट (नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) आयोजित होने के बाद, रद्द कर दी गई।
इस साल की शुरुआत में फरवरी में उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 2024 में 67,000 से भी कम पदों के लिए आवेदन करने वाले 48 लाख नौजवानों ने, बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी और पेपर लीक की ख़बरों के आने के बाद, अपनी सुरक्षित नौकरी की उम्मीदें खो दीं। ये घटनाएं लाखों-लाखों नौजवानों के उच्च शिक्षा और सुरक्षित नौकरी के सपनों के क्रूर विनाश के कुछ सबसे हाल ही के उदाहरण हैं।
शिक्षा के अधिकार का हनन
नौजवान शिक्षा के अधिकार की मांग कर रहे हैं। वे शिक्षा के बढ़ते निजीकरण, अभूतपूर्व फीस वृद्धि और शिक्षा पर बहुत ही कम सरकारी खर्च का विरोध कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा सभी के लिये एक मूलभूत अधिकार नहीं है, बल्कि सिर्फ कुछ थोड़े से नौजवानों के लिए एक विशेषाधिकार बन गई है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 देश के हर कोने में सभी बच्चों और नौजवानों के लिए सुलभ, अच्छी गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों की जरूरतों को पूरा करने में नाकामयाब रही है। यह नीति सुरक्षित रोजगार व उचित वेतन के साथ पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरतों को पूरा करने में नाकामयाब रही है। इसकी बजाय, यह बड़े पैमाने पर शिक्षा के निजीकरण, निजी और विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसरों की स्थापना और छात्रों के खुद के पैसों से चलने वाले पाठ्यक्रमों की वकालत करता है, जिसमें इतनी भारी फीस है कि वे हमारे अधिकांश नौजवानों के लिए शिक्षा को उनकी पहुंच के बाहर कर रही है।
शिक्षा के मानकों को बेहतर करने के नाम पर, एनईपी-2020 ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कई व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए केंद्र द्वारा प्रशासित, सर्व हिन्द अनिवार्य प्रवेश परीक्षाएं शुरू की हैं। देश के अलग-अलग इलाकों में एक-सामान शिक्षा के मानदंड नहीं हैं, जैसा कि पिछले साल एक बार फिर एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट-एएसईआर)-2023 से स्पष्ट हो गया है। इन परिस्थितियों के चलते, हकीकत यह है कि करोड़ों-करोड़ों रुपयों के कोचिंग-ट्यूटोरियल-धंधे का बेलगाम प्रसार हुआ है, जिसकी वजह से नौजवानों में निराशा और असुरक्षा बहुत बढ़ गयी है।
देशभर में बढ़ती संख्या में नौजवान लगातार यह मांग करते आ रहे हैं कि राज्य प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक अच्छी गुणवत्ता वाली, सस्ती, सर्वव्यापक शिक्षा दिलाने में और ज्यादा धन निवेश करे।
गंभीर बेरोजगारी की समस्या
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत ही चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। यह समस्या खासकर नौजवानों में बहुत ही गंभीर है। हिन्दोस्तान के 80 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार लोग नौजवान हैं। हर साल करीब 50 लाख नौजवान नौकरियों में लग जाते हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम को ही इज्जतदार जीवन जीने लायक वेतन वाली नौकरी मिल पाती है। जनवरी-मार्च 2024 की तिमाही के लिए हालिया पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे से पता चलता है कि 15-29 आयु वर्ग के हर छः में से एक व्यक्ति बेरोजगार है। शिक्षित बेरोजगार नौजवानों का अनुपात बढ़ रहा है। सभी बेरोजगार व्यक्तियों में माध्यमिक शिक्षा पूरा करने वाले नौजवानों का अनुपात वर्ष 2000 में 54 प्रतिषत से बढ़कर वर्ष 2022 में 66 प्रतिषत हो गया है (भारत रोजगार रिपोर्ट 2024: मानव विकास संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन)।
जब भी केंद्र सरकार या कोई राज्य सरकार क्लेरिकल या मेंटेनेंस में सरकारी नौकरियों के कुछ सौ खाली पदों को भरने के लिए आवेदन मांगती है, तो हजारों-हजारों स्नातक, स्नातकोत्तर और यहां तक कि पीएचडी किये हुए लोग भी इन नौकरियों के लिए आवेदन भरते हैं। लाखों नौजवान रेलवे या सरकार के किसी अन्य विभाग में नौकरी के लिए एक के बाद एक एंट्रेंस परीक्षा की तैयारी करने और परीक्षा लिखने में सालों-साल बिता देते हैं। इन परीक्षाओं को रद्द करने, परीक्षा होने के बाद परिणाम रद्द करने या भर्ती होने के बाद धोखाधड़ी, जालसाजी, नौकरी दिलाने के लिए जबरन धनवसूली आदि की शिकायतों के कारण, नौकरियों में नियुक्तियों को रद्द करने के मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जब उनकी आकांक्षाओं को इस तरह से बेरहमी से कुचल दिया जाता है, तो ऐसे लाखों-लाखों नौजवानों के गुस्से और हताशा को समझना मुश्किल नहीं है, जिन्होंने सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग के अलावा, 12 साल स्कूल में और 3-5 साल कॉलेज या तकनीकी प्रशिक्षण में बिताए हैं, जिसके लिए उनके परिवारों ने लाखों रुपये खर्च किए हैं!
सेना, जो किसी समय लाखों नौजवानों को सुरक्षित रोजगार देती थी, अब जून 2022 से अग्निपथ योजना के तहत भर्ती कर रही है। इस योजना के तहत नौजवानों को चार साल के लिए अग्निवीर के रूप में सेना में भर्ती किया जाता है, जिसके बाद, उनमें से केवल 25 प्रतिशत को ही सेना में रखा जाएगा!
उच्च योग्यता वाले बहुत कम नौजवानों को निजी कंपनियों में नियमित नौकरी मिल पाती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों और सेवाओं के बढ़ते निजीकरण के चलते, हर साल जितनी नौकरियां पैदा हो रही हैं, उससे कहीं ज्यादा नष्ट हो रही हैं। इस साल आईआईटी जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों से इंजीनियरिंग स्नातक भी नौकरी पाने के लिए कठिनाइओं का सामना कर रहे हैं।
शिक्षा के अवसरों और नौकरियों की कमी के कारण आत्महत्या करने वाले नौजवानों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) द्वारा उपलब्ध कराए गए डाटा में कहा गया है कि 2021 (सबसे हालिया रिपोर्ट का वर्ष) में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की थीय 2011 में 7,696 छात्रों ने आत्महत्या की थी, यानि इस बीच के दस सालों में आत्महत्याओं की संख्या में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई। राजस्थान के कोटा शहर में, जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग हब के रूप में प्रसिद्ध है, वहां पर 2023 में आत्महत्या से 26 मौतें हुईं, जो शहर में इस तरह की मौतों की सबसे अधिक संख्या है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल 2,00,000 से अधिक छात्र कोटा में पढ़ने के लिए जाते हैं।
नौकरियों की घटती गुणवत्ता और बढ़ता शोषण
नौकरियों की घटती गुणवत्ता, काम की बढ़ती शोषणकारी हालतें और रोजगार की बढ़ती असुरक्षा हमारे नौजवानों को और भी तेजी से तबाही की ओर धकेल रही हैं।
नई नौकरियां ज्यादा से ज्यादा हद तक ठेके पर हैं, न केवल निजी कंपनियों में बल्कि केंद्र और राज्य सरकार में भी। बैंकों, सरकारी एजेंसियों, अस्पतालों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षक, नर्स, डॉक्टर और पैरामेडिक्स जैसे प्रमुख कार्य करने वाले कर्मी भी फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट (निश्चित अवधि के अनुबंध) पर नियुक्त किये जा रहे हैं और आज यही स्वाभाविक हो गया है। इन कर्मियों के काम के घंटे निश्चित नहीं होते, इन्हें कोई ओवरटाइम या किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती है। केंद्र सरकार जिन चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने वाली है, वे इन काम की हालतों को वैध बना देंगी।
अधिक से अधिक नौजवान अमेज़न, बिग बास्केट आदि जैसी विशाल खुदरा व्यापार कंपनियों के लिए गिग वर्कर और डिलीवरी वर्कर के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं। वे अक्सर कंपनी द्वारा तय किये जाने वाले असंभव लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, दिन में 12-14 घंटे से अधिक काम करते हैं। वे एक पल में अपनी नौकरी खो सकते हैं। गुड़गांव में अमेजन के गोदामों में काम की हालतों का हाल ही में जो खुलासा हुआ है – जहां नौजवान महिलाओं और पुरुषों को भीषण गर्मी में, बिना पर्याप्त वातानूकूलन या हवा की आवाजाही के, काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है तथा बिना शौच अवकाश के लगातार 6-8 घंटे खड़े रहना पड़ रहा है – यह इस बात का संकेत है कि हमारे लाखों-लाखों नौजवानों के साथ भविष्य में क्या हश्र होने वाला है।
सरकारी कौशल-विकास की योजनाएं नौजवानों से करोड़ों रुपये ऐंठ कर, उन्हें नौकरी दिलाने का वादा करती हैं, परन्तु ये वादे पूरे नहीं होते। बल्कि, ये कौशल विकास योजनायें विभिन्न निजी कंपनियों को सस्ते श्रम की सप्लाई करके, इनके मुनाफों को बढ़ाने का काम करती हैं।
आगे का रास्ता
नौजवानों को जाति और धर्म के आधार पर, शिक्षा के संस्थानों और नौकरियों में मुट्ठीभर सीटों के लिए आपस में लड़ाया जाता है। हमारे नौजवानों को राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक का शिकार बनाया जाता है, ताकि उनकी जुझारू एकता को तोड़ा जा सके और उन्हें डरा-धमका कर अपने अधिकारों के संघर्ष के रास्ते को छोड़ने को मजबूर किया जा सके। जो नौजवान इस स्थिति को स्वीकार करने से इनकार करते हैं और इसे बदलने के लिए आगे आते हैं, उन्हें “आतंकवादी” करार दिया जाता है और यूएपीए जैसे कठोर कानूनों के तहत अनिश्चित काल के लिए जेलों में बंद कर दिया जाता है।
हमारे देश पर शासन कर रहे सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग के पास नौजवानों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। वर्तमान आर्थिक व्यवस्था, जो सबसे बड़े पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ाने और मेहनतकश जनता को कंगाली व बर्बादी की ओर धकेलने वाली व्यवस्था है, यह नौजवानों को शिक्षा और सुरक्षित रोजगार के अधिकार से वंचित ही कर सकती है। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था, जिसमें मेहनतकश जनता समाज के लिए फैसले लेने में पूरी तरह से शक्तिहीन है, यह व्यवस्था नौजवानों को अपनी स्थिति बदलने के लिए पूरी तरह से शक्तिहीन बना देती है।
हुक्मरान पूंजीपति वर्ग चाहता है कि नौजवान मौजूदा स्थिति को स्वीकार कर लें और यह उम्मीद करते रहें कि अगले चुनाव में वोट देकर किसी दूसरी सरकार को लाने से उनकी समस्याएं हल हो जाएंगी।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि हमारे नौजवानों के सामने जो संकट है, उसका समाधान सिर्फ इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुकूमत को खत्म करके तथा मज़दूरों और किसानों का राज स्थापित करके ही किया जा सकता है। मज़दूरों और किसानों के नौजवानों को संघर्ष में आगे आकर एक नई राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करनी होगी, जिसमें मेहनतकश जनता ही फ़ैसले लेने वाली ताकत होगी। हमारे बच्चों और नौजवानों को शिक्षित करना और उनका पालन-पोषण करना इस नयी व्यवस्था की प्राथमिकता होगी, जिसकी गारंटी इसके नए संविधान द्वारा दी जायेगी। अर्थव्यवस्था को आम जनता की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने की दिशा में संचालित करना होगा, न कि अति-अमीर पूंजीवादी घरानों को और अमीर बनाने के लिए। समाज के सभी सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से स्थापित की जाने वाली यह अर्थव्यवस्था, सभी नौजवानों के लिए पर्याप्त मात्रा में उत्पादक और इज्जतदार जिंदगी जीने लायक वेतन वाली नौकरियां पैदा करेगी।
हमारे नौजवानों के लिए वर्तमान संकट से बाहर निकलने का यही एकमात्र रास्ता है।