लोक सभा चुनाव 2024: किसान आंदोलन – आगे का रास्ता

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

“चंद इजारेदार पूंजीवादी कम्पनियां पूरी दुनिया पर हावी होना चाहती हैं। मेरे बीते 40 सालों के अनुभव से यह कह सकता हूं कि सारी समस्या की जड़ पूंजीवादी व्यवस्था है।”

ये दिलेर विचार भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी (पंजाब) के अध्यक्ष श्री सुरजीत सिंह फुल के थे। वे 26 मई, 2024 को मजदूर एकता कमेटी द्वारा आयोजित सभा — ‘लोक सभा चुनाव 2024: किसान आंदोलन – आगे का रास्ता’ – को संबोधित कर रहे थे। देश के कोने-कोने से तथा विदेश से, मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों के अधिकारों के संघर्ष में सक्रिय कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में इस सभा में भाग लिया।

मज़दूर एकता कमेटी के सचिव, श्री बिरजू नायक ने इस ज्वलंत मुद्दे पर आयोजित सभा में सभी वक्ताओं व भागीदारों का स्वागत किया। लोक सभा चुनाव 2024 के अभियान में भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए गठबंधन और कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन, दोनों ने मजदूरों-किसानों के लिए जो तमाम वादे किये हैं, उनका ज़िक्र करते हुए, श्री बिरजू ने स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के क़ानून की किसानों की मौलिक मांग को सरकार ने आज तक पूरा नहीं किया है। इसलिए, किसानों का संघर्ष आज भी जारी है।

इसके बाद उन्होंने वक्ताओं को सभा को संबोधित करने को आमंत्रित किया।

मजदूर एकता कमेटी के वक्ता श्री संतोष कुमार ने 13 फरवरी, 2024 से दिल्ली के शंभू बॉर्डर पर आंदोलित किसानों के विरोध प्रदर्शन तथा पंजाब-हरियाणा के कई अन्य स्थानों पर किसानों के चल रहे संघर्ष का विवरण किया। उन्होंने कहा कि किसानों की एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी की मांग पूरी तरह जायज है। एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने इस मांग को लागू करने से इनकार किया है। इसका कारण है कि हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपति कृषि व्यापार पर हावी होना चाहते हैं। हिन्दोस्तान के कृषि क्षेत्र को देशी-विदेशी पूंजीपति अपने भारी मुनाफों का स्रोत समझते हैं।

श्री संतोष कुमार ने समझाया कि पिछले 70 सालों से हम कई बार सरकार बदल चुके हैं लेकिन मजदूरों और किसानों के हालात नहीं बदले हैं। ज़ाहिर है कि समस्या सरकारों की नहीं, बल्कि इस पूंजीवादी व्यवस्था में निहित है। हम मज़दूरों और किसानों, जो देश की सारी दौलत पैदा करते हैं, को इन सारे उत्पादन के साधनों का मालिक बनना होगा। हमें ऐसी नयी व्यवस्था कायम करनी होगी जिसका लक्ष्य सभी मेहनतकशों की रोजीरोटी व खुशहाली सुनिश्चित करना होगा, न कि देशी-विदेशी बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के मुनाफों को बढ़ाना।

भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी (पंजाब) के अध्यक्ष श्री सुरजीत सिंह फुल ने यह साफ़-साफ़ कहा कि 1947 में जब अंग्रेज़ हुक्मरान चले गए, तो देश की हुकूमत हिन्दोस्तान के पूंजीपतियों के प्रतिनिधियों के हाथों में आई थी। हमारे हुक्मरान दुनिया के बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करने वाले संस्थानों – वर्ल्ड बैंक, आई एम एफ, आदि – के निर्देशों के अनुसार चलते आ रहे हैं, सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हुयी हो।

दुनिया की बड़ी-बड़ी पूंजीवादी कम्पनियां डब्ल्यूटीओ जैसे संस्थानों का इस्तेमाल करके दुनिया के सभी देशों के व्यापार पर नियंत्रण करना चाहते हैं और सभी देशों के कृषि व अन्य संसाधनों को लूटना चाहते हैं। सरकार इसी इरादे को पूरा करने के लिए तीन किसान-विरोधी क़ानूनों को लायी थी, जिन्हें वापस करवाने के लिए हमने इतना कठिन संघर्ष किया था। परन्तु हमारी मांगें पूरी नहीं हुयी हैं और हम अब भी संघर्ष कर रहे हैं।

श्री सुरजीत सिंह फुल ने बहुत से उदाहरणों के साथ यह साबित किया कि बीते दस सालों में सरकार ने बड़े-बड़े पूंजीपतियों की तिजौरियों को भरने और लोगों के सभी संघर्षों को बेरहमी से कुचलने का काम किया है। सांप्रदायिक प्रचार और हिंसा के जरिये लोगों की संघर्षरत एकता को तोड़ने और लोगों को गुमराह करने के लिए तरह-तरह के भ्रम फ़ैलाने का काम किया है। किसानों की एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग, क़र्ज़ माफ़ी की मांग और बिजली संशोधन विधायक 2022 को ख़ारिज करने की मांग पर फिर से ज़ोर देते हुए, उन्होंने हुकूमत की पूंजी-परस्त नीतियों को ख़त्म करने के संघर्ष में मज़दूरों और किसानों की एकता को मज़बूत करने का आहवान किया।

श्री गोविंदस्वामी, जो किसानों की समस्याओं के समाधान के संघर्ष में, तामिल नाडु के सक्रिय कार्यकर्ता हैं, उन्होंने करोड़ों लोगों के गावों से शहरों की ओर पलायन की वजह कृषि की घटती आमदनी को बताया। बीज, उर्वरक, कीटनाशक, जल स्रोत, ज़मीन, बिजली, हर चीज़ पर देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों का नियंत्रण है। जो भी सरकार हो, हमारे हुक्मरानों की कृषि नीति, औद्योगिक नीति, व्यापार नीति – सब इजारेदार पूंजीपतियों के मुनाफों को बढ़ाने की दिशा में हैं। इसके चलते, किसानों को अपनी फसल के लिए सही दाम नहीं मिल रहा है और मज़दूरों को अपने श्रम का सही दाम नहीं मिल रहा है।

श्री गोविंदस्वामी ने किसानों को दी जाने वाली एमएसपी की सही गणना में – उत्पादन की लागत, परिवार का श्रम, भूमि का किराया – इन तीनों चीजें शामिल करने की मांग की। इसके अलावा, 50 प्रतिशत और देना चाहिये, ताकि किसान सम्मानजनक जीवन जी सके, यह उनकी सलाह थी। परन्तु इजारेदार पूंजीपतियों के हित की सेवा करने वाली कोई भी सरकार यह सुनिश्चित नहीं करने वाली है। अगर देश का किसान खुशहाल रूप से नहीं जीयेगा तो अर्थव्यवस्था आगे नहीं बढ़ सकती है। किसानों को मज़दूरों के साथ एकता बनाकर, अपने खुशहाल भविष्य के लिए संघर्ष करना होगा, इस प्रोत्साहनकारी सन्देश के साथ श्री गोविंदस्वामी ने अपनी बातें समाप्त कीं।

सभा के कई अन्य भागीदारों ने अपने विचार दिए।

लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष श्री हनुमान प्रसाद शर्मा ने भाजपा सरकार की बहु-प्रचारित प्रधान मंत्री किसान बीमा योजना की हकीकत का खुलासा करते हुए समझाया कि इससे प्राइवेट बीमा कंपनियों को किसानों को लूटने की छूट दी जा रही है। ब्रिटेन के ट्रेड युनियन कार्यकर्ता श्री बलविन्दर सिंह राणा ने हिन्दोस्तान के किसानों के बहादुर और अडिग संघर्ष को दुनिया के मेहनतकशों के लिए एक मिसाल बताया। पुरोगामी महिला संगठन की कार्यकर्ता, सुश्री सुचरिता ने हुक्मरानों के प्रवक्ताओं के तर्कों का खंडन करते हुए, यह समझाया कि सभी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी और सरकारी खरीदी की सुनिश्चिती की मांग न सिर्फ पूरी तरह जायज़ है, बल्कि यह मुमकिन भी है। लोक पक्ष के कार्यकर्ता श्री केके सिंह ने पूंजीवादी व्यवस्था को ख़त्म करने और उसकी जगह पर श्रमजीवी वर्ग की हुकूमत स्थापित करने के लिए, मजदूरों और किसानों के एकजुट संघर्ष पर ज़ोर दिया।

इंडियन वर्कस एसोसियशन (ग्रेट ब्रिटेन) से श्री दलविन्दर ने कृषि लागत की वस्तुओं, कृषि उत्पादों के दामों, कृषि व्यापर, इन सभी पर दुनिया के बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नियंत्रण को ख़त्म करने की ज़रूरत पर सभा का ध्यान आकर्षित किया। ब्रिटेन में मजदूरों के हकों के लिए संघर्ष करने वाले जुझारू कार्यकर्ता श्री सलविंदर ने किसानों के समाधान का रास्ता वही बताया जो रूस के मजदूरों ने 1917 में रोशन किया था – पूंजीवादी व्यवस्था की जगह पर श्रमजीवी वर्ग का राज। वीआईओपी आईटी वर्कर्स यूनियन के कार्यकर्ता श्री कासीराजन ने हुकूमत की दमनकारी और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आईटी मजदूरों के संघर्ष का विवरण किया। रेलवे ट्रैकमेन युनियन के कार्यकर्ता राकेश चन्द्र, ट्रेड युनियन कार्यकर्ता संजय गाबा व अन्य कार्यकर्ताओं ने भी अपनी बातें रखीं।

सभा का समापन करते हुए, श्री बिरजू नायक ने सभी से आह्वान किया कि अपनी जुझारू एकता को मज़बूत करें और अपनी रोजीरोटी व अधिकारों के संघर्ष को इस लक्ष्य के साथ तेज़ करें, कि हमें वर्तमान पूंजीवादी हुकूमत की जगह पर मजदूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करनी होगी।

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