हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 8 जून, 2024
18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं। पिछले 10 सालों में पूर्ण बहुमत पाने वाली भाजपा के पास अब 543 सदस्यीय लोकसभा में 240 सीटें हैं। अब भाजपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अपने सहयोगियों, जिन्होंने 53 सीटें जीती हैं, के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेगी। दूसरी तरफ़, कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन ने 234 सीटों पर जीत हासिल की है।
18वीं लोकसभा के चुनावों के नतीजों को प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार के पिछले 10 सालों में जनता के व्यापक असंतोष के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए।
भाजपा सरकार ने अपने बहुमत का इस्तेमाल करके कई जन-विरोधी क़ानूनों और नीतियों को लोगों पर थोप दिया है, यहां तक कि उन पर संसद में बहस करने का दिखावा भी नहीं किया है। नोटबंदी और जीएसटी की अचानक घोषणा करने के बाद सांप्रदायिक नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लाया गया। कोविड महामारी के दौरान 2020 में किए गए क्रूर लॉकडाउन ने ग़रीब मेहनतकश लोगों के तीव्र दुखदर्द के प्रति इस हुकूमत की संवेदनहीनता को दर्शाया था।
किसान-विरोधी कृषि क़ानूनों और मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं को लागू करना, आक्रामक तौर पर निजीकरण करना और सभी क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करना, आदि ऐसे कई क़दम हैं, जिन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यह सरकार हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीवादी अरबपतियों की सेवा करती है। ऐसे समय में जब बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है, तब अग्निवीर कार्यक्रम की घोषणा से नौजवानों में भारी गुस्सा भड़क उठा है।
यह स्पष्ट हो गया है कि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था चंद इजारेदार पूंजीपतियों की क्रूर हुक्मशाही है। खुलेआम सांप्रदायिक प्रचार एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, कठोर यू.ए.पी.ए. (गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत जनाधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं व पत्रकारों की मनमानी गिरफ़्तारियां, राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का प्रयोग और चुनावी बांड के माध्यम से धन उगाही के लिए भ्रष्टाचार के मामलों का उपयोग – इन सबने पूरी राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता को झकझोर दिया है।
पिछले कुछ सालों में मज़दूर, किसान, महिलाएं और नौजवान बार-बार अपनी रोज़ी-रोटी और अधिकारों पर हमलों के खि़लाफ़ गुस्से के साथ सड़कों पर उतरे हैं। इसके अलावा, सरमायदार वर्ग के अन्दर भी असंतोष बढ़ रहा है। कई प्रमुख व्यक्ति राज्य संस्थानों के बेहद पक्षपाती स्वभाव और राजनीतिक व्यवस्था की घटती विश्वसनीयता के बारे में अपनी चिंता प्रकट करते रहे हैं। वित्तीय शक्तियों के बढ़ते केंद्रीकरण के खि़लाफ़़, कई राज्यों में असंतोष बढ़ गया है।
व्यापक असंतोष की ऐसी स्थिति में, कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन ने खुद को मज़दूरों, किसानों और दूसरे असंतुष्ट लोगों के हितों के संरक्षक के रूप में पेश किया था। मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों से आह्वान किया गया था कि कांग्रेस पार्टी और इंडिया गठबंधन का समर्थन करें और उन्हें सत्ता में लायें।
सरमायदार वर्ग चाहता है कि मज़दूर और किसान हमेशा इस भ्रम में फंसे रहें कि जब लोगों के हितों के लिए लड़ने का दावा करने वाली कोई पार्टी या गठबंधन चुनाव के ज़रिये सत्ता में आएगा, तो लोगों की समस्याओं का समाधान किया जाएगा। यह सुनिश्चित करके कि इंडिया गठबंधन सत्ता के क़रीब आ गया है, सरमायदार वर्ग लोगों के बीच इस तरह के भ्रम को जीवित रखना चाहता है।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के अनुसार, भाजपा संसद में अल्पमत में आ गई है। कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में संसदीय विपक्ष काफी मजबूत हो गया है।
हुक्मरान वर्ग को एक शक्तिशाली संसदीय विपक्ष पसंद है क्योंकि इससे इस भ्रम को मजबूत करने में मदद मिलती है कि संसद में मज़दूरों, किसानों और अन्य उत्पीड़ित लोगों के हितों की रक्षा की जा रही है।
चुनाव के नतीजे हुक्मरान वर्ग की ओर से एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं, कि केंद्र सरकार की प्रभारी पार्टी को लोकतंत्र के दिखावे को बनाए रखने की ज़रूरत के बारे में सचेत रहना चाहिए। उसे संसदीय मानदंडों का सम्मान करना चाहिए। उसे अपने संकीर्ण खुदगर्ज़ एजेंडे को बढ़ावा देकर, लोगों की नज़र में राज्य के विभिन्न संस्थानों की विश्वसनीयता को नष्ट नहीं करना चाहिए।
चुनावों के इन नतीजों से कोई गुणात्मक बदलाव नहीं होगा। राज्य सत्ता सरमायदार वर्ग के हाथ में ही रहेगी। हिन्दोस्तानी सरकार मज़दूरों और किसानों को दबाकर, अति-अमीर पूंजीपतियों के हित में काम करना जारी रखेगी।
हम मज़दूरों और किसानों को गुणात्मक परिवर्तन की ज़रूरत है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे हित में काम करे, न कि सरमायदार वर्ग के संकीर्ण हित में। ऐसा तभी होगा जब राजनीतिक व्यवस्था में सम्पूर्ण और मूलभूत परिवर्तन होगा।
संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था सरमायदार वर्ग की हुकूमत का पसंदीदा तरीक़ा है। इस व्यवस्था में चुनाव सरमायदार वर्ग के लिए, अपने आपसी अंतर्विरोधों को सुलझाने और अपनी हुकूमत को वैधता दिलाने का काम करते हैं, जबकि जनता के बीच यह भ्रम क़ायम रखा जाता है कि लोग ही हुक्मरान हैं।
2024 के आम चुनावों के नतीजे बताते हैं कि हुक्मरान वर्ग ने राजनीतिक व्यवस्था की घटती विश्वसनीयता को बचाने के लिए इन चुनावों का इस्तेमाल करने की कोशिश की है।
संसदीय लोकतंत्र की मौजूदा व्यवस्था, जो सरमायदार वर्ग की हुक्मशाही का एक रूप है, इसकी विश्वसनीयता को बचाना हमारे हित में नहीं है। हम संसदीय विपक्ष पर अपना विश्वास नहीं रख सकते हैं, जिनकी भूमिका है सत्तापक्ष का विरोध करने का नाटक करना और उसी सरमायदारी हुक्मशाही का प्रबंधन करने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना।
मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों का काम अपनी जुझारू एकता को मज़बूत करना और अपनी रोज़ी-रोटी व अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए सरमायदारों के हमलों के खि़लाफ़़ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाना है। हमें अपनी हुकूमत स्थापित करने के रणनैतिक लक्ष्य के साथ यह संघर्ष करना होगा – यानी, पूंजीपति वर्ग की हुकूमत की जगह पर मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करनी होगी।
हमें संसदीय लोकतंत्र की मौजूदा व्यवस्था की जगह पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी होगी, जिसमें लोगों के पास फ़ैसले लेने की शक्ति होगी। मेहनतकश लोग जिन पर भरोसा रखते हैं उनका चयन करके उन्हें चुन सकेंगे, उन्हें जवाबदेह ठहरा सकेंगे और अगर वे जनहित में काम नहीं करते हैं तो उन्हें किसी भी समय वापस बुला सकेंगे। हमें क़ानूनों और नीतियों को प्रस्तावित करने, मंज़ूर करने या ख़ारिज करने की शक्ति होनी चाहिए। अपने हाथ में फ़ैसले लेने की शक्ति के साथ, हम मेहनतकश लोग अर्थव्यवस्था की दिशा को बदल सकेंगे। पूंजीवादी मुनाफे़ को अधिकतम करने के बजाय, अर्थव्यवस्था को पूरे समाज की बढ़ती ज़़रूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से चलाना होगा।