24 मई को संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय आई.सी.जे. ने इज़रायल को रफ़ाह पर उसके हमले को तुरंत रोकने का आदेश जारी किया। यह आदेश इज़रायल द्वारा 7 मई से रफ़ाह पर शुरू किये गये सबसे हालिया सैन्य आक्रमण के बाद आया है।
रफ़ाह शहर गाज़ा के दक्षिणी छोर पर स्थित है, जहां पिछले साल 7 अक्तूबर से गाज़ा में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही लगातार बमबारी और तबाही से बचने के लिए सैकड़ों-हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। पिछले दो हफ़्तों में, इज़रायल ने रफ़ाह के पूरे इलाकों को मलबे में बदल दिया है। इज़रायल द्वारा अपने वर्तमान आक्रमण को शुरू करने के बाद से 8,00,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को रफ़ाह से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
इससे पहले, 26 जनवरी, 2024 को आई.सी.जे. ने इज़रायल को आदेश दिया था कि वह 1948 के संयुक्त राष्ट्र जनसंहार कन्वेंशन के अनुसार जनसंहार माने जाने वाले किसी भी क़दम को रोकने के लिए सभी प्रयास करे। रफ़ाह में शरण लेने वाले सैकड़ों हज़ारों फ़िलिस्तीनियों पर अपने हमले को रोकने के लिए इज़रायल को आदेश देने वाला यह हाल का आई.सी.जे. का फ़ैसला इस साल का तीसरा ऐसा फ़ैसला है, जिसमें इज़रायल को गाज़ा और वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनियों पर अपने बर्बर हमले को रोकने का आदेश दिया गया है।
गाज़ा में फ़िलिस्तीनियों के लिए “बहुत बड़े जोखिम” का हवाला देते हुए, आई.सी.जे. ने कहा कि इज़रायल को “तुरंत अपने सैन्य हमले को और रफ़ाह में ऐसी सभी अन्य कार्रवाई को रोकना चाहिए, जो गाज़ा में फ़िलिस्तीनी लोगों के पूरे या आंशिक रूप से भौतिक विनाश के हालात पैदा कर सकती हैं”।
आई.सी.जे. के आदेश का इज़रायल द्वारा उल्लंघन
इज़रायल ने आई.सी.जे. के आदेश की घोर अवहेलना करते हुए रफ़ाह पर अपने हमले लगातार जारी रखे हैं। गाज़ा के अन्य हिस्सों से भागने के लिए मजबूर फ़िलिस्तीनियों को आश्रय देने वाले राहत-शिविरों पर एक सुनियोजित तरीके से हमला किया जा रहा है।
25 मई को इज़रायली सेना ने रफ़ाह में कुवैती अस्पताल के नजदीकी इलाकों और शाबूरा शिविर पर बमबारी की थी। 27 मई को, इज़रायली सेना ने रफ़ाह में एक निर्दिष्ट सुरक्षित क्षेत्र में विस्थापित लोगों के आवास वाले ताल-अस-सुल्तान में एक टेंट-कैंप पर बमबारी की, जिसमें 40 से ज्यादा फ़िलिस्तीनी मारे गए। पीड़ित लोगों में कई महिलाएं और बच्चे थे। आपातकालीन कर्मचारियों ने हमले में घायल लोगों को रफ़ाह के अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों में पहुंचाया। अब वहां के अस्पताल बीमार और घायल लोगों की बढ़ती संख्या को संभालने में असमर्थ हैं। घायलों में से कई गंभीर रूप से जल गए हैं। फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण ने इसे “जघन्य जनसंहार” का नाम दिया। इस हमले की दुनियाभर में निंदा हुई है।
इसके साथ ही, इज़रायली सेना ने गाज़ा पट्टी के अन्य हिस्सों में भी हमले जारी रखे हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई मौतें हुई हैं। फ़िलिस्तीनी अधिकारियों के अनुसार, 27 मई को जबालिया, नुसेरात और गाज़ा शहर में विस्थापित फ़िलिस्तीनियों के आश्रय स्थलों पर बमबारी की गई, जिसमें कम से कम 160 लोग मारे गए।
इज़रायल के खि़लाफ़ दुनिया के लोगों का बढ़ता आक्रोश
नॉर्वे, स्पेन और आयरलैंड ने 22 मई को घोषणा की कि वे 28 मई को आधिकारिक तौर पर फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देंगे। 140 से ज्यादा अन्य देश पहले ही ऐसा कर चुके हैं। इन देशों को उम्मीद है कि इस तरह वे फ़िलिस्तीनी लोगों पर जनसंहारक युद्ध को समाप्त करने के लिए इज़रायल के साथ-साथ उसके सहयोगी देशों, अमरीका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय शक्तियों पर दबाव डाल सकेंगे।
इन देशों के नेताओं ने कहा है कि वे एक ऐसे राजनीतिक समाधान के पक्ष में हैं – जिसमें फ़िलिस्तीनियों और इजरायलियों के लिए दो अलग-अलग राज्य हों, जो शांति और सुरक्षा के साथ, एक साथ रह सकें।
इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के जनसंहार ने पूरी दुनिया के लोगों के ज़मीर को झकझोर दिया है। अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, हिन्दोस्तान और कई अन्य देशों के लोगों ने जनसंहार पर अपना आक्रोश प्रकट किया है। विश्वविद्यालयों के परिसरों में, छात्र बड़ी संख्या में निकल आए हैं और वहां के अधिकारियों द्वारा उन पर किये जाने वाले क्रूर दमन के बावजूद, जनसंहार का तुरंत अंत करने की मांग कर रहे हैं। पूरे अमरीका और यूरोप, एशिया और लैटिन अमरीका के लगभग हर देश में लोग हज़ारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर जनसंहार को रोकने की मांग कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकांश सदस्य देशों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, आर्गेनाईजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन और अरब लीग ने एक आवाज़ में युद्ध-विराम का आह्वान किया है।
इस वर्ष 5 अप्रैल को, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने, 28 देशों द्वारा समर्थित एक प्रस्ताव पर मतदान किया। प्रस्ताव में “इजराइल को हथियारों, युद्ध सामग्री और अन्य सैन्य उपकरणों की बिक्री, हस्तांतरण और पहुंच को रोकने” का आह्वान किया गया, जो दुनिया के लोगों के ज़मीर की आवाज़ और उनके जज़बातों को दर्शाता है।
इज़रायल की विश्व जनमत की लगातार अवहेलना का स्रोत
आई.सी.जे. के फै़सले और विश्व जनमत की बेशर्मी से अवहेलना करते हुए इज़रायल के निरंतर आक्रमण के पीछे अमरीकी साम्राज्यवाद का समर्थन है।
अमरीकी प्रशासन पर, उसके अपने ही लोगों द्वारा, इज़रायल को सैन्य सहायता रोकने का दबाव लगातार बढ़ रहा है। मई की शुरुआत में, अमरीकी सरकार ने कहा कि अगर इज़रायल रफ़ाह में बड़े पैमाने पर हमला करता है तो वह और अधिक हथियारों की आपूर्ति रोक देगा। लेकिन, सच्चाई यह है कि अमरीकी सरकार इज़रायल को लगातार हथियार मुहैया कराती है और हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ़िलिस्तीनी लोगों के खि़लाफ़ उसके जनसंहारक युद्ध का समर्थन करती है।
अमरीकी सरकार का ढोंग, इस हक़ीक़त में देखा जा सकता है कि 10 मई को अमरीकी विदेश विभाग ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें दिखाया गया कि गाज़ा पर युद्ध के दौरान इज़रायल को दिए गए हथियारों का इस्तेमाल, अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन है। परन्तु, उसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इज़रायल का यह आश्वासन कि वह अमरीकी हथियारों का इस्तेमाल, लोगो कें साथ दुव्र्यवहार करने के लिए नहीं कर रहा है, “विश्वसनीय और भरोसेमंद” है – और इसलिए अमरीका उन हथियारों की सप्लाई जारी रख सकता है। दूसरे शब्दों में, अमरीकी प्रशासन फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार में इज़रायल के लिए अपनी सैन्य सहायता और समर्थन का बचाव करने के लिए कोई भी बहाने देने के लिए तैयार है।
24 मई को, अमरीका और ब्रिटेन ने घोषणा की कि वे आई.सी.जे. के आदेश को अस्वीकार करते हैं, जबकि पहले उन्होंने कहा था कि वे रफ़ाह में सैन्य हमले का समर्थन नहीं करेंगे। यूरोप में इज़रायल के सहयोगी, विशेष रूप से जर्मनी, फ्रांस और यूके ने घोषणा की है कि वे इज़रायल के साथ खड़े हैं, आई.सी.जे. के आरोपों से इनकार करते हैं और इस बात पर फिर ज़ोर देते हैं कि इज़रायल को “आत्मरक्षा का अधिकार है।”
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमरीका ने इज़रायल के खि़लाफ़ किसी भी निंदा या सज़ा देने की कार्रवाई पर बार-बार वीटो लगाया है।
निष्कर्ष
केवल दुनिया भर के लोगों का एकजुट संघर्ष ही इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के खि़लाफ़ छेड़े गए जनसंहारक युद्ध को रोक सकता है, जिसे अमरीकी साम्राज्यवादियों का पूरा समर्थन प्राप्त है। इस संघर्ष को तब तक न केवल जारी रखना चाहिए बल्कि इसे और भी तेज़ करना चाहिए, जब तक फ़िलिस्तीनी लोगों को अपने राष्ट्रीय-अधिकार पूरी तरह से हासिल नहीं हो जाते।