मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
हमारे देश में पेंशन का अधिकार मेहनतकश लोगों के कई तबकों के आंदोलनों का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों ने नई पेंशन योजना (एन.पी.एस.) को ख़त्म करने और पुरानी पेंशन योजना (ओ.पी.एस.) को वापस लाने की मांग की है। भविष्य निधि पेंशन योजना-1995 (ई.पी.एस.-95) के अंतर्गत पेंशन पाने वाले कर्मचारी अपनी न्यूनतम मासिक पेंशन को, जो सितंबर 2014 में 1000 रुपये निर्धारित की गई थी को, बढ़ाकर 7,500 रुपये करने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। सेवानिवृत्त सशस्त्र बल कर्मी भी “वन रैंक, वन पेंशन” की मांग को लेकर लंबे समय से संघर्ष करते आ रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चल रहे प्रचार अभियान के संदर्भ में पेंशन का अधिकार एक ज्वलंत मुद्दा है। मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) इन आंदोलनों के हिस्से के रूप में पेंशन के अधिकार के लिए सक्रिय रूप से अभियान चला रही है। इस अभियान के तहत, एम.ई.सी. ने 12 मई, 2024 को “पेंशन हमारा अधिकार है” विषय पर एक मीटिंग आयोजित की। लोकपक्ष के श्री के.के. सिंह; क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष डॉ. दर्शन पाल; भारतीय सेना से सेवानिवृत्त कर्नल प्रमोद; निर्माण मज़दूर पंचायत संगम के सचिव श्री सुभाष भटनागर; शिक्षिका और सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग वुमेन की कार्यकर्ता डॉ. माया जॉन; और ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) के दक्षिण पूर्व क्षेत्र के महासचिव श्री एसपी सिंह ने मीटिंग को संबोधित किया।
विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और संगठनों, ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों, किसान संगठनों, महिला और युवा संगठनों के कार्यकर्ताओं ने मीटिंग में हिस्सा लिया। साथ–साथ ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मज़दूरों के अधिकारों के लिए लोगों को लामबंध करने वाले कार्यकर्ताओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।
मज़दूर एकता कमेटी के श्री बिरजू नायक ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों और साथ ही मज़दूरों, किसानों की एकता बनाने और मजबूत करने के लिए एम.ई.सी. द्वारा किए जा रहे कार्यों का संक्षिप्त विवरण पेश किया।
उन्होंने बताया कि पेंशन के अधिकार के लिए संघर्ष न केवल हिन्दोस्तान में बल्कि दुनियाभर के कई देशों में कामकाजी लोगों के बड़े हिस्से को आकर्षित कर रहा है। सरकारी सेवाओं में काम करने वाले मज़दूर, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और सेवाओं में काम करने वाले मज़दूर, सशस्त्र बल और सुरक्षा कर्मी, स्कूल और विश्वविद्यालय के शिक्षक, अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं में काम करने वाले मज़दूर, किसान और कृषि मज़दूर, निर्माण क्षेत्र से जुड़े मज़दूर और अन्य अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूर ये सभी समाज में अपनी लंबी सेवा के बाद, एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सही और पर्याप्त पेंशन को अपने एक मौलिक अधिकार बतौर सुनिश्चित किये जाने की मांग कर रहे हैं।
श्री केके सिंह ने बताया कि आजीविका की सुरक्षा के अधिकार में वह आमदनी शामिल है जो एक मज़दूर के परिवार के लिए न केवल नौकरी के वर्षों के दौरान बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद भी पर्याप्त भोजन, कपड़े, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि सुनिश्चित करेगी। एक मज़दूर जिसने अपने पूरे कामकाजी जीवन के दौरान समाज के लिए योगदान दिया है; इसलिए जब वह काम करने में सक्षम नहीं होता है, तो वह सामाजिक–सुरक्षा का हक़दार होता है। आज़ादी के बाद, सरकार ने मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के मज़दूरों के लिए पेंशन की शुरुआत की जबकि निजी क्षेत्र के मज़दूरों को कोई पेंशन नहीं दी गई। वर्षों से, विशेषकर 1990 के दशक से, पेंशन के अधिकार पर पूंजीपति वर्ग और उसके प्रवक्ताओं द्वारा लगातार हमला किया जा रहा है।
श्री केके सिंह ने “वन रैंक वन पेंशन” (ओ.आर.ओ.पी.) के लिए सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सैनिकों के लंबे संघर्ष और पेंशन के लिए अर्धसैनिक बलों के चल रहे संघर्ष के बारे में बात की। उन्होंने नई पेंशन योजना (एन.पी.एस.) के बारे में विस्तार से बताया जो 2004 के बाद सेवा में शामिल होने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है। यह पेंशन योजना कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद निश्चित मासिक आमदनी या न्यूनतम मासिक आमदनी की गारंटी नहीं देती है। मज़दूरों के पेंशन कोष में एकत्रित धन को शेयर बाज़ार में निवेश किया जाता है और मज़दूरों की सेवानिवृत्ति के बाद की आमदनी, शेयर बाज़ार में अनिश्चितताओं के अधीन होती है। पुरानी पेंशन योजना (ओ.पी.एस.) ने हर मज़दूर को उसके अंतिम वेतन और महंगाई भत्ते का 50 प्रतिशत निश्चित पेंशन आमदनी की गारंटी दी थी। एन.पी.एस. के तहत, इस समय सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन बहुत ही मामूली राशि है, कई लोगों को तो केवल 2,000-5,000 रुपये की पेंशन मिलती है, जो अपने को बड़ी मुश्किल से जिं़दा रखने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। यही कारण है कि देशभर में सरकारी कर्मचारियों द्वारा एन.पी.एस. का विरोध किया जा रहा है। संघर्ष के परिणामस्वरूप, कुछ राज्य सरकारें ओ.पी.एस. को बहाल करने का वादा करने के लिए मजबूर हुई हैं।
उन्होंने बताया कि इस समय, करोड़ों नौकरी–पेशा लोग किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा या पेंशन के हक़दार नहीं हैं। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निवीर योजना, मज़दूर वर्ग के और किसानों के लाखों युवाओं की आकांक्षाओं पर एक और क्रूर हमला है। जिन्होंने अपनी वर्षों की सैन्य सेवा के बाद सुरक्षित भविष्य की उम्मीदें संजो रखी थीं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक सरकार, बड़े कॉर्पोरेट घरानों के मुनाफे़ को अधिकतम करने के लिए, उनके हितों की सेवा के लिए काम करती है। सरकार द्वारा लोगों पर टैक्स लगाकर एकत्र किए गए भारी राजस्व को, अनेक तरीकों से कॉर्पोरेट घरानों को दे दिया जाता है, उन्हें कर रियायतें और ऋण–माफ़ी दी जाती है, जबकि करोड़ों नौकरी–पेशा वाले लोगों को पेंशन और किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर दिया जाता है। अपनी नौकरी के वर्षों के बाद, उनकी आजीविका और पेंशन की सुरक्षा, सरकार की ज़िम्मेदारी है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हमें एक नई व्यवस्था स्थापित करने के लिए संगठित होना होगा, जिसमें पेंशन की गारंटी एक अधिकार के रूप में दी जाएगी।
कर्नल प्रमोद ने बताया कि पेंशन के अधिकार को पूंजीपतियों और उनकी सरकार द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि पूंजीपति जो भारी मुनाफ़ा कमा रहे हैं उसका एक प्रतिशत भी मज़दूरों की भलाई और सामाजिक सुरक्षा के लिए देना नहीं चाहते हैं। एक व्यक्ति जो अपने जीवन के सर्वोत्तम वर्ष कारखानों, खेतों या सेना में काम करते हुए बिताता है, उसे सेवानिवृत्त होने के बाद एक सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह समाज पर बड़ा हमला है। अग्निवीर योजना की आलोचना करते हुए उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालने वाले उन युवाओं को सेवा सुरक्षा और सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन से वंचित करने के लिए सरकार की निंदा की। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हमें ऐसे भविष्य के लिए काम करना चाहिए जहां सभी कामकाजी लोगों की भलाई और सुरक्षा की गारंटी होगी।
श्री एसपी सिंह ने सरकार की निंदा की, जो मज़दूरों के लिए पेंशन को समाज पर बोझ के रूप में देखती है। भारतीय रेल में लोको रनिंग स्टाफ, जिसमें रेल चालक और गार्ड भी शामिल हैं, उसमें कार्यरत अपने खुद के काम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पेंशन में कटौती से सभी रेलवे कर्मचारी बहुत प्रभावित हुए हैं। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि ओ.पी.एस. के तहत लोको रनिंग स्टाफ को उनके अंतिम वेतन का 1.55 गुना करने के बाद की राशि की आधी पेंशन का आश्वासन दिया जाता है, जबकि अन्य सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन की केवल आधी राशि की पेंशन का आश्वासन दिया जाता है। इसका कारण काम की बेहद कठिन और ख़तरनाक परिस्थितियां हैं। लोको रनिंग स्टाफ को 60-65 डिग्री सेल्सियस तापमान पर काम करना पड़ता है! पेंशन हमारा अधिकार है, विशेषाधिकार नहीं! उन्होंने अपनी प्रस्तुति के अंत में कहा – आइए हम लोकसभा 2024 के चुनाव के अवसर का इस्तेमाल, हमारे देश के लाखों मज़दूरों की आवाज़ उठाने, ओ.पी.एस. की बहाली और न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए बल्कि सभी वर्गों के मज़दूरों के लिए सुनिश्चित पेंशन के लिए करें।
डॉ दर्शन पाल ने किसानों की पेंशन के समर्थन में बात रखी। संयुक्त किसान मोर्चा ने किसानों के लिए न्यूनतम 10,000 रुपये पेंशन की मांग उठाई है। किसान की कृषि उपज ही उसकी आजीविका का साधन है। किसानों और खेत मज़दूरों की उपज, पूरे समाज के लिए भोजन और पोषण प्रदान करती है। किसान और खेत मज़दूर, शिक्षकों, डॉक्टरों और कामकाजी लोगों के अन्य सभी वर्गों की तरह ही, समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डॉ. दर्शन पाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अपने एक मौलिक अधिकार के रूप में पेंशन की मांग करनी चाहिए, न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए ओ.पी.एस. की बहाली, बल्कि किसानों और मज़दूरों के अन्य सभी तबकों के लिए पर्याप्त पेंशन की भी मांग करनी चाहिए, ताकि वे अपने जीवन की प्रौढ़ अवस्था में भी एक स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
डॉ. माया जॉन ने इस हक़ीक़त की ओर ध्यान आकर्षित किया कि लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में, एनडीए और इंडिया ब्लाक, दोनों गठबंधन पेंशन के मुद्दे पर चुप हैं। आज सरकारी कर्मचारियों के लिए ओ.पी.एस. की बहाली और अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों सहित सभी तबकों के मज़दूरों के लिए पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के लिए संघर्ष तेज़ी से बढ़ रहा है। यह संघर्ष जारी रहना चाहिए और जारी रहेगा, चाहे भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन अगली सरकार बनाए या कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाला इंडिया गठबंधन सरकार बनाये। उन्होंने ज़ोर देकर दोहराया कि पेंशन कोई विशेषाधिकार नहीं है; यह हमारा मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा, एक मज़दूर अपने पूरे कामकाजी जीवन में समाज के लिए योगदान देता है और समाज को सेवानिवृत्त होने के बाद, उस मज़दूर को उन सभी सुविधाओं को सुनिश्चित करना चाहिए जिसका वो हक़दार हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम) जैसी विभिन्न पेंशन योजनाओं के तहत ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों को बहुत मामूली सी रकम दी जा रही है। उन्होंने सरकार की “गरीबी रेखा” की परिभाषा के आधार पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “गरीबी रेखा” को न्यूनतम वेतन से जोड़ा जाना चाहिए। और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वैधानिक न्यूनतम वेतन का कम से कम आधा हिस्सा पेंशन के रूप में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने पेंशन के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों के संघर्ष के बारे में भी बताया। डॉ. माया जॉन ने विभिन्न अर्थशास्त्रियों के इस दावे का खंडन किया कि वृद्धावस्था पेंशन समाज पर बोझ है। उन्होंने बताया कि पेंशन के अधिकार पर हमला, मज़दूरों के कठिन संघर्ष से हासिल किये गये सभी अधिकारों पर पूंजीपतियों के चैतरफा हमलों का हिस्सा है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सुनिश्चित पेंशन के लिए संघर्ष को सभी कामकाजी लोगों के अधिकारों की रक्षा के संघर्ष के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए।
श्री सुभाष भटनागर ने अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों की समस्याओं पर बात रखी, जो आज देश के मज़दूरों की 90 प्रतिशत से भी अधिक संख्या में हैं, और जो किसी भी प्रकार की पेंशन या सामाजिक सुरक्षा से पूरी तरह से वंचित हैं। उन्होंने उस काम के बारे में बात की जो उनके संगठन और अन्य लोगों ने मिलकर, भवन और अन्य निर्माण–मज़दूर (बी.ओ.सी.डब्ल्यू.) बोर्ड की स्थापना के लिए किया है, जो सरकार से निर्माण–मज़दूरों के लिए पेंशन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कराने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, इस कोष का केवल एक बहुत छोटा हिस्सा ही वास्तव में मज़दूरों की पेंशन पर खर्च किया गया है। उन्होंने सभी को आगाह किया कि नए श्रम कोड लागू होने के साथ, बी.ओ.सी.डब्ल्यू. बोर्ड के खत्म होने की संभावना है और अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों को पेंशन के रूप में मिलने वाली मामूली राशि से भी वंचित किए जाने की संभावना है। श्री भटनागर ने सभी तबकों के मज़दूरों के लिए पेंशन की मांग को एक अधिकार के रूप में उठाने के महत्व पर ज़ोर दिया।
मुख्य प्रस्तुतियों के बाद, कई प्रतिभागियों ने अपने विचार रखे। इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन (ग्रेट ब्रिटेन) के श्री दलविंदर ने पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के लिए ब्रिटेन में चल रहे मज़दूरों के संघर्ष का वर्णन किया, जिन अधिकारों पर आज हमला हो रहा है। ग़दर इंटरनेशनल के श्री सलविंदर ने बताया कि कैसे सभी देशों में पूंजीपति और उनकी सरकारें उन अधिकारों में कटौती कर रही हैं जो मज़दूरों ने कई वर्षों के कठिन संघर्ष के द्वारा हासिल किए हैं।
पुरोगामी महिला संगठन की सुचरिता ने अनौपचारिक क्षेत्र के मज़दूरों के लिए 2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना का उल्लेख किया, जो प्रति माह केवल 3000 रुपये की पेंशन का वादा करती है और प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना जो किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपये की पेंशन का वादा करती है। यानी महज 500 रुपये प्रति माह! उन्होंने कहा कि ये योजनाएं, मज़दूरों और किसानों का अपमान हैं। उन्होंने अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं, विशेष रूप से निर्माण क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जो बिना मातृत्व लाभ और बाल देखभाल सुविधाओं के बेहद खतरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर हंै। उन्होंने बताया कि निजी क्षेत्र और अनौपचारिक क्षेत्र में ज्यादातर कामकाजी महिलाएं और पुरुष किसी भी पेंशन के हक़दार नहीं हैं।
एक अन्य प्रतिभागी ने एक महत्वपूर्ण बात बताई – कि पेंशन वास्तव में कर्मचारी के वेतन का एक वो हिस्सा है जो उसे काम से सेवानिवृत्त होने पर मिलता है। तो, जाहिर है कि यह मज़दूरों का मूलभूत अधिकार है, सरकार द्वारा कोई विशेषाधिकार या खैरात नहीं।
सभी प्रतिभागियों ने एक सर्वव्यापी पेंशन सुनिश्चित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, जिसमें मज़दूरों, किसानों और कामकाजी लोगों के सभी वर्गों को शामिल किया जाए और एक पर्याप्त पेंशन की गारंटी हो जो हर मज़दूर को अपने बुढ़ापे में स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जीने में सक्षम बनाए। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी मज़दूरों को उनके मूलभूत अधिकार के रूप में इसकी गारंटी दे। ऐसे राज्य की स्थापना के लक्ष्य को लेकर हमें अपना संघर्ष आगे बढ़ाना चाहिए। यह बैठक में शामिल सभी प्रतिभागियों की आम सहमति थी।
चर्चा का समापन करते हुए एम.ई.सी. के श्री संतोष कुमार ने बताया कि पेंशन में कटौती करने का शासक पूंजीपति वर्ग का प्रयास दो विरोधी दृष्टिकोणों के बीच टकराव को दर्शाता है।
एक पूंजीपति वर्ग का दृष्टिकोण है जो मज़दूरों को दी जाने वाली पेंशन को सार्वजनिक व्यय की बर्बादी मानता है। यह पेंशनभोगियों को परजीवी के रूप में देखता है, और इस हक़ीक़त से इनकार करता है कि उन्होंने अपने कामकाजी जीवन के दौरान समाज की संपत्ति बनाने में योगदान दिया है। साथ ही, यह नज़रिया मांग करता है कि सरकार सार्वजनिक खजाने से, पूंजीपतियों को अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए हर तरह की कर रियायत और प्रोत्साहन दे।
दूसरा मज़दूर वर्ग का दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, यह सरकार का कर्तव्य है कि वह उन लोगों को पेंशन की एक निश्चित राशि का भुगतान करे जो दशकों तक काम करने के बाद जब वे सेवानिवृत्त होते हैं और वे काम करने में सक्षम नहीं रहते हैं। प्रत्येक मज़दूर को सुनिश्चित पेंशन पाने का अधिकार है, जिसे उसके अंतिम वेतन के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
मज़दूर, अपने श्रम के ज़रिए, अपने काम के वर्षों के दौरान समाज में योगदान करते हैं। यह सुनिश्चित करना समाज का कर्तव्य है कि बुढ़ापे में, या जब उन्हें चोटें लगें और वे जब काम करने में असमर्थ हों तो उनकी देखभाल की जाए। राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूंजीपतियों द्वारा मज़दूरों से निकाले गए बेशी मूल्य का एक हिस्सा वापस ले लिया जाए और मज़दूरों के लिए पेंशन फंड में डाल दिया जाए। यह मज़दूरों के वेतन से उनके योगदान के अलावा होना चाहिए। जिन मज़दूरों के पास निश्चित नियोक्ता नहीं हैं, जैसे निर्माण क्षेत्र से जुड़े मज़दूर, राज्य को सेवानिवृत्ति के बाद उनके जीवन के लिए पेंशन फंड बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। किसी भी हालत में मज़दूरों की पेंशन निधि को सट्टा बाजार की गतिविधियों में निवेश नहीं किया जाना चाहिए।
परिभाषित लाभ वाली सर्वव्यापी पेंशन योजना के लिए संघर्ष पूरी तरह से जायज़ है। यह एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए संघर्ष का हिस्सा है जो मेहनतकश लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने पर केंद्रित होगा, न कि पूंजीपतियों के लालच पर। ऐसे समाज में, यह राज्य की ज़िम्मेदारी होगी कि वह प्रत्येक वयस्क को आजीविका प्रदान करे, उसके कामकाजी जीवन के दौरान रोज़गार की सुरक्षा और जीवनयापन योग्य वेतन सुनिश्चित करे और प्रत्येक सेवानिवृत्त कर्मचारी को एक परिभाषित और नियमित पेंशन की गारंटी दे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मज़दूरों को ऐसे समाज की स्थापना के लिए संघर्ष करने के लिए संगठित होना होगा।