केंद्र सरकार ने अपने पेटेंट नियमों में संशोधन किया है जिससे बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए कई दवाओं को बाज़ार में महंगे दामों पर बेचना आसान हो जाएगा।
नए आविष्कारों से बने उत्पादों पर पूंजीवादी कंपनियों द्वारा प्राप्त की गई इजारेदारी के अधिकार का एक रूप पेटेंट है। जब किसी दवा कंपनी को किसी नई दवा के लिए पेटेंट मिल जाता है, तो कोई भी अन्य कंपनी या कोई व्यक्ति जो उस दवा का उत्पादन और बिक्री करता है, तो उसके द्वारा बेची गई प्रत्येक इकाई के लिए पेटेंटधारक कंपनी को एक शुल्क देना होता है, जिसे रॉयल्टी कहा जाता है। इस प्रकार, पेटेंट पूंजीवादी कंपनियों के लिए उनके द्वारा बनाए गए किसी भी नए उत्पाद पर इजारेदारी का फ़ायदा लेना संभव बनाते हैं। अत्यधिक क़ीमतें वसूलना, समानांतर आयात (विदेशों में क़ानूनी रूप से उत्पादित पेटेंट उत्पाद का आयात) पर प्रतिबंध लगाना, विशेष लाइसेंसिंग अनुबंधों के माध्यम से आपूर्ति सीमित करना, आविष्कारों को न्यूनतम रूप से संशोधित करके मूल पेटेंट की अवधि से परे पेटेंट जारी रखना, ये सभी पेटेंट धारकों द्वारा अपनी इजारेदारी को बनाए रखने के आम तरीके़ हैं।
दवा उद्योग में ऐसी पेटेंट व्यवस्थाएं, आयातित दवाओं के लिए अत्यधिक क़ीमत वसूलने में दवा निर्माताओं को सक्षम बनाती हैं। वे प्रभावी रूप से जेनेरिक दवा उत्पादन में अतिरिक्त बाधाएं पैदा करती हैं, जिससे देश में दवा की क़ीमतें बढ़ने की संभावना होती है।
जब पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है, तो अन्य निर्माता अपनी तकनीक का उपयोग करके उसी दवा का उत्पादन कर सकते हैं। ऐसी दवाओं को जेनेरिक दवाएं कहा जाता है और ये बहुत सस्ती होती हैं क्योंकि अब किसी भी निर्माता की उस उत्पादन पर इजारेदारी नहीं हो सकती। पेटेंट नियमों में हालिया संशोधन ने जेनेरिक दवा उत्पादन में अतिरिक्त बाधाएं पैदा कर दी हैं, जिससे पेटेंट धारक कंपनियों को लंबी अवधि के लिए इजारेदारी मूल्य वसूलने में मदद मिलेगी।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिक्टंस्टाइन नामक देशों के यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के ठीक पांच दिन बाद संशोधित नियमों को 15 मार्च, 2024 को अधिसूचित किया गया था। नोवार्टिस और रोश जैसी स्विस बहुराष्ट्रीय फार्मा इजारेदारी कंपनियां, अमरीकी और जर्मन फार्मा इजारेदारी कंपनियों के साथ मिलकर हिन्दोस्तानी सरकार पर अपने पेटेंट नियमों में ढील देने के लिए दबाव डालती आई हैं।
नियमों में दो महत्वपूर्ण बदलाव ”स्वीकृति–पूर्व विरोध“ और पेटेंट की ”अनिवार्य लाइसेंसिंग“ से संबंधित हैं।
स्वीकृति–पूर्व विरोध
हिन्दोस्तान में पेटेंट प्रणाली किसी भी हिन्दोस्तानी नागरिक और यहां तक कि अन्य देशों के नागरिकों को भी पेटेंट दिए जाने से पहले ही उस पर विरोध दर्ज कराने की अनुमति देती है। इसे ”स्वीकृति–पूर्व विरोध“ कहा जाता है। पेटेंट जारी करने या विस्तार करने में बाधा डालने के लिए स्वीकृति–पूर्व विरोध एक महत्वपूर्ण तंत्र है। इस तंत्र का उपयोग करके टीबी, हेपेटाइटिस और अन्य बीमारियों के लिए दवाओं के पेटेंट विस्तार के कई आवेदनों का सफलतापूर्वक विरोध किया गया है।
बहुराष्ट्रीय फार्मा इजारेदार नहीं चाहते कि स्वीकृति–पूर्व विरोध की अनुमति दी जाए। इसलिए वे अपनी सरकारों से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ता के दौरान इसका ध्यान रखने को कहते हैं। हिन्दोस्तान–ईएफटीए मुक्त व्यापार समझौते में इस प्रावधान को कमज़ोर करने के लिए बदलाव शामिल किए गए, जो संशोधित पेटेंट नियमों में परिलक्षित होते हैं।
नए नियम हिन्दोस्तानी पेटेंट नियंत्रकों को किसी भी विपक्षी आवेदन को सीधे ख़ारिज़ करने की मनमानी शक्ति प्रदान करते हैं, यहां तक कि याचिकाकर्ता का पक्ष सुने बिना भी। इससे मामूली बदलाव के साथ ज्ञात दवाओं पर पेटेंट देने में सुविधा होगी।
स्वीकृति–पूर्व विरोध दाखिल करने के लिए भुगतान की जाने वाली फीस को शामिल करने के लिए नियमों में भी बदलाव किया गया है, एक ऐसा खंड जो पहले मौजूद नहीं था।
अनिवार्य लाइसेंसिंग
हिन्दोस्तानी पेटेंट क़ानून ने सरकार को कुछ शर्तों के तहत पेटेंट धारक विदेशी कंपनी को किसी हिन्दोस्तानी कंपनी को पेटेंट दवा का उत्पादन करने के लिए लाइसेंस देने के लिए मजबूर करने का अधिकार दिया है। इसे अनिवार्य लाइसेंसिंग कहा जाता है। सरकार द्वारा अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधान का उपयोग किया जा सकता है यदि ऐसा पाया जाता है कि:
- पेटेंट किया गया आविष्कार जनता के लिए उचित किफ़ायती मूल्य पर उपलब्ध नहीं है, या
- पेटेंट किया गया आविष्कार हिन्दोस्तान के क्षेत्र में काम नहीं करता है, या
- पेटेंट किया गया उत्पाद जनता की ज़रूरतों को यथोचित रूप से पूरा नहीं करता है।
इस उद्देश्य के लिए, हिन्दोस्तानी पेटेंट अधिनियम (आईपीए) ने पेटेंट धारक के लिए हर साल अर्जित राजस्व के बारे में प्रासंगिक जानकारी देना और यह बताना बाध्यकारी बना दिया कि दवा हिन्दोस्तान में आयात की गई है या निर्मित की गई है। इस तरह की जानकारी से यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि जिन रोगियों को दवा की आवश्यकता है वे उन तक पहुंचने में सक्षम हैं या नहीं। इन प्रावधानों का घोषित उद्देश्य उन लोगों के लिए कुछ प्रकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना था जिन्हें दवा की आवश्यकता थी; किसी भी फार्मा कंपनी को पेटेंट दवा पर अपने 20 साल के इजारेदारी के माध्यम से लोगों को दवा तक पहुंच से पूरी तरह से वंचित करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधान का उपयोग करते हुए, एक कैंसर रोधी दवा, जिसके लिए जर्मन इजारेदार कंपनी – बायर को पेटेंट दिया गया था, बायर द्वारा प्रति माह 2,80,000 रुपये की अत्यधिक क़ीमत के मुक़ाबले में 8,800 रुपये प्रति माह में उपलब्ध कराई गई थी। यह इस बात का उदाहरण है कि पूंजीवादी कंपनियों को इजारेदारी क़ीमतें वसूलने से रोकने के लिए अतीत में अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधान का उपयोग कैसे किया गया है।
नए पेटेंट नियमों ने इस प्रावधान को काफी कमज़ोर कर दिया है। पेटेंट धारक को सालाना जानकारी देने के बजाय इसे तीन साल में केवल एक बार जमा करना होगा। अर्जित राजस्व की जानकारी देने की आवश्यकता पूरी तरह समाप्त कर दी गई है। दवा आयातित है या नहीं, इसकी भी जानकारी नहीं देनी है। पेटेंट धारक को बस एक बॉक्स पर टिक करना होगा जो यह दर्शाएगा कि पेटेंट हिन्दोस्तान में काम कर रहा है या नहीं। इससे अनिवार्य लाइसेंसिंग करना और अधिक कठिन हो जाएगी।
निष्कर्ष
पेटेंट नियमों में हालिया संशोधन हिन्दोस्तानी जनता के हित की बलि चढ़ाकर इजारेदारी पूंजीवादी फार्मा कंपनियों के मुनाफ़ों को अधिकतम करने के लिये हैं। इनसे हमारे देश में आवश्यक दवाओं की क़ीमतों में भारी वृद्धि होने की संभावना है।