हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में बढ़ती अमरीकी साम्राज्यवादी जंग फ़रोशी

अमरीकी साम्राज्यवादी ‘हिन्द-प्रशांत महासागर’ क्षेत्र में, अन्य देशों के साथ मिलकर, बहुत सारे संयुक्त सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। ये सैन्य अभ्यास चीन के ख़िलाफ़ अमरीकी साम्राज्यवाद के बढ़ते आक्रमक रुख़ से प्रेरित हैं। खास तौर से, पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर, चीन और उस क्षेत्र के कुछ अन्य देशों के बीच विभिन्न अनसुलझे विवादों से घिरा हुआ इलाका है। अमरीका इन हालातों का फ़ायदा उठाकर, उस क्षेत्र के देशों को चीन के ख़िलाफ़ एक शत्रुतापूर्ण मोर्चे पर इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है।

इस साल मार्च में अमरीका ने हिन्दोस्तान, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ मिलकर, चार प्रमुख सैन्य-अभ्यास किए थे।

American warship

18 से 31 मार्च तक, अमरीका और हिन्दोस्तान ने मिलकर, हिन्दोस्तान के पूर्वी तट पर टाइगर-ट्रायम्फ़-24 नामक एक सैन्य-अभ्यास आयोजित किया था। इस अभ्यास में थल-सेना, नौसेना और वायुसेना – तीनों सेनाएं शामिल थीं। इसे अमरीका और हिन्दोस्तान के बीच इस तरह का सबसे बड़ा द्विपक्षीय अभ्यास बताया गया।

27 फरवरी से 8 मार्च तक, अमरीका और थाईलैंड मिलकर एक और सैन्य अभ्यास में शामिल हुए, जिसे कोबरा-गोल्ड 2024 का नाम दिया गया। इस सैन्य-अभ्यास को एशिया में इस तरह का सबसे बड़ा अभ्यास बताया गया है।

17 मार्च को अमरीका और जापान ने आयरन-फिस्ट 24 नामक अपने द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास को पूरा किया। यह वार्षिक सैन्य अभ्यास, पहले अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य में आयोजित किया जाता था, लेकिन इस साल पहली बार इसे जापान में स्थानांतरित कर दिया गया। इस सैन्य अभ्यास को ओकिनोएराबू और ओकिनावा द्वीपों के पड़ोस में, सेनकाकू (चीनी नाम-डियाओयू) द्वीपों के पास, आयोजित किया गया। इन द्वीपों पर चीन और जापान, दोनों अपने-अपने स्वामित्व का दावा कर रहे हैं।

फरवरी में, अमरीकी नौसेना ने जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ दक्षिण-चीन सागर में एक त्रिपक्षीय सैन्य-अभ्यास का आयोजन किया था।

18 से 27 फरवरी तक, बंगाल की खाड़ी में हिन्दोस्तानी नौसेना के मिलन नामक बहुपक्षीय सैन्य अभ्यास में, अमरीकी युद्धपोतों ने भी हिस्सा लिया था।

अप्रैल के तीसरे सप्ताह से मई के पहले सप्ताह तक, अमरीका फिलीपींस के साथ मिलकर बालिकतन (जिसका अर्थ है “कंधे से कंधा मिलाकर”) नामक सैन्य-अभ्यास करेगा। हाल के हफ्तों में, इस समुद्री क्षेत्र में फिलीपींस और चीन की आपसी शत्रुता बढ़ रही है। यह सैन्य-अभ्यास दक्षिण-चीन सागर में, फिलीपींस के पलावन प्रांत के क्षेत्रों के इर्द-गिर्द किया जायेगा, जहां पिछले साल फिलीपींस और चीन की सेनाओं के बीच कई टकराव हुए हैं। यह ताइवान के साथ वाले द्वीपों पर भी होगा, जहां अमरीका और चीन के बीच टकराव बढ़ रहा है। रिपोर्टों के मुताबिक, इस अभ्यास में, ‘जहाज़ डुबाने’ का अभ्यास भी शामिल होगा। ऑस्ट्रेलिया इस सैन्य अभ्यास का हिस्सा होगा और फ्रांस पहली बार इस प्रकार के अभ्यास में शामिल होगा। फिलीपींस की फर्डिनेंड मार्काेस जूनियर की वर्तमान सरकार ने, एक पुनर्जीवित रक्षा-समझौते के तहत, फिलीपींस के उन सैन्य-अड्डों की संख्या दोगुनी कर दी है, जिन तक अमरीकी सेना की पहुंच हो सकती है।

इन सैन्य-अभ्यासों के अलावा, फिलीपींस के राष्ट्रपति मार्काेस, अमरीकी राष्ट्रपति बाईडेन और जापानी प्रधानमंत्री किशिदा के साथ मिलकर, 11 अप्रैल को अपना पहला त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं।

इन सभी गतिविधियों से साफ़ पता चलता है कि अमरीका पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में तनाव बढ़ा रहा है और हिन्दोस्तान को भी अपने इस अभियान में शामिल कर रहा है। इसमें अमरीका का उद्देश्य है इस क्षेत्र में अब तक अनसुलझे भूमि और समुद्री सीमा विवादों का इस्तेमाल करके, चीन के ख़िलाफ़, अपने नेतृत्व में, अपने निकट सहयोगियों के साथ एक गठबंधन बनाना। इस क्षेत्र में बढ़ती सैन्य गतिविधि के चलते, इनमें शामिल सेनाओं के बीच किसी भी आयोजित या अनायोजित दुश्मनी भड़कने से, इस क्षेत्र के लोगों को भारी नुक़सान झेलना पड़ेगा।

हिन्दोस्तानी सरकार भी इन संकटग्रस्त परिस्थितियों में पूरी तरह से शामिल हो रही है। विदेश मंत्री जयशंकर ने 26 मार्च को फिलीपींस का दौरा किया, ठीक उस समय जब चीन और फिलीपींस के बीच राजनयिक और सैन्य तनाव चरम सीमा पर था। जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि “मैं इस मौके पर, फिलीपींस द्वारा अपनी राष्ट्रीय-संप्रभुता की हिफ़ाज़त करने में, हिन्दोस्तान के समर्थन को दृढ़ता से दोहराता हूं।” हिन्दोस्तानी सरकार चीन के साथ अपने खुद के विवाद के चलते, अमरीकी साम्राज्यवाद के द्वारा आयोजित इस ख़तरनाक खेल में भाग ले रही है।

अमरीका के दुनिया के इस क्षेत्र में अपने युद्धपोत, विमान और सेना लाने का कोई औचित्य्य नहीं है। अमरीका दावा करता है कि वह “स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक” चाहता है, लेकिन ठीक इसके विपरीत, वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर हावी होने के अपने साम्राज्यवादी हितों को पूरा करने के लिए, इस क्षेत्र में तनाव बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रहा है।

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