समाचार रिपोर्टों के अनुसार, मार्च के महीने के सिर्फ एक सप्ताह, 16 मार्च-22 मार्च, में देशभर के विभिन्न कार्य स्थलों पर, निर्माण स्थलों पर या सीवर की सफाई में लगे, 30 से अधिक मज़दूरों ने अपनी जान गंवा दी। मौतों की वास्तविक संख्या कहीं अधिक होने की संभावना है, क्योंकि अधिकांश ऐसे मामले कभी रिपोर्ट ही नहीं किए जाते। समाचार रिपोर्टों में इन कार्यस्थलों पर घायल हुए मज़दूरों की संख्या शामिल नहीं होती है, जो अक्सर इतने गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं कि वे काम में अक्षम हो जाते हैं।
सरकारी निर्माण स्थलों और सीवर सफ़ाई का काम आमतौर पर सरकारी विभाग या शहर के नगर निगम द्वारा निजी ठेकेदारों को दिया जाता है, जो अधिकारियों की पूरी मिलीभगत के साथ, मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थापित की गयी सभी वैधानिक आवश्यकताओं का हनन करते हैं।
रिपोर्ट किए गए मामलों में से एक मुंबई उपनगर मलाड में 15 फुट गहरे भूमिगत सीवर नाले की सफाई का मामला था। यह काम बॉम्बे नगर निगम (बीएमसी) द्वारा एक निजी ठेकेदार को दिया गया था। एक बार ठेका दे दिया जाता है तो बीएमसी सुरक्षा नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी करने की परवाह नहीं करता है।
या कोई गिने-चुने मामले नहीं हैं, बल्कि इस मौजूदा व्यवस्था में यह आम बात बन गयी है। कई दूसरे शहरों के नगर निगमों की तरह ही, बीएमसी ने अपने मज़दूरों की संख्या में कटौती की है और अब ज्यादा से ज्यादा हद तक, कई नौकरियों को निजी ठेकेदारों को सौंप रही है। निजी ठेकेदार मज़दूरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लिये बगैर, अस्थायी मज़दूरों को कम पर लगा रहे हैं।
22 मार्च को बिहार के सुपौल में कोसी नदी पर निर्माणाधीन पुल पर विशाल स्लैब गिरने से एक मज़दूर की मौत हो गई और आठ अन्य मज़दूर घायल हो गए थे। यह 10.5 किमी लंबा पुल केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी भारतमाला परियोजना के तहत बनाया जा रहा है, और यह गैमन इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड और ट्रांसरेल लाइटिंग लिमिटेड का एक संयुक्त उद्यम है।
18 मार्च को कोलकाता के गार्डन रीच इलाके में एक निर्माणाधीन पांच मंजिला अपार्टमेंट ढह गया, जिसमें दो महिलाओं सहित 11 मज़दूरों की मौत हो गई।
हिन्दोस्तान में पुलों, फ्लाईओवरों और निर्माणाधीन इमारतों के ढहने की ऐसी घटनाएं बहुत आम हैं। हमारे हुक्मरान भले ही आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण का दावा करते हैं और देश में काफ़ी उच्च स्तर की इंजीनियरिंग विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं, पर इसके बावजूद अधिकारी और निजी बिल्डर और ठेकेदार अपने ख़र्च में कटौती करके, बहुत कम वेतन पर अस्थायी ठेके पर मज़दूरों को काम पर रखना पसंद करते हैं। इन मज़दूरों की सुरक्षा के लिए जो क़ानून बनाये गए हैं, उन्हें अधिकारी और पुलिस नियमित तौर पर नज़रंदाज़ कर देते हैं।
हर बार जब भी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, तो जांच के आदेश दिए जाते हैं और पीड़ित परिवारों के लिये मुआवज़े की घोषणा की जाती है। लेकिन पूंजीपति और निजी ठेकेदार और सरकारी अधिकारी, जिनकी लापरवाही इन मौतों के लिए ज़िम्मेदार है, बहुत आसानी से बच जाते हैं और शायद ही कभी उन्हें गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ता है। पीड़ित परिवारों को कुछ मामूली मुआवज़ा देकर चुप करा दिया जाता है और मुंह खोलने पर गंभीर परिणाम की धमकी दी जाती है।
अधिक से अधिक मुनाफ़े के लिए निजी कंपनियों और ठेकेदारों की लालच और उनके साथ मिलीभगत करने वाले राज्य के अधिकारी, जो सभी सुरक्षा क़ानूनों की अनदेखी करने के बदले में भारी रिश्वत लेते हैं, ये ही क़ीमती मानव जीवन के इस नाश के प्रमुख कारण हैं। यह मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था पर एक कलंक है, जिसमें मज़दूरों का जीवन सस्ता समझा जाता है, क्योंकि प्रत्येक खोए हुए मज़दूर के लिए सैकड़ों अन्य लोग रोज़ी-रोटी के किसी भी साधन के लिए बेताब होते हैं और अपनी जान जोखिम में डालने के लिए तैयार होते हैं!