रेलवे कर्मचारियों की अन्यायपूर्ण बर्ख़ास्तगी को तुरंत रद्द करो!
मार्च, 2024 के दौरान भारतीय रेल के विभिन्न विभागों के मज़दूरों द्वारा – भारतीय रेल के निजीकरण को तत्काल रोकने, ओ.पी.एस. लागू करने, सभी रिक्तियों को भरने, हिदोस्तान की सरकार के श्रम और रोज़गार मंत्रालय के काम और आराम की अवधि (एच.ओ.ई.आर.) नियमों के समय के अनुसार ड्यूटी करने, कामकाजी परिस्थितियों में सुधार, कुछ कर्मचारियों को अन्यायपूर्ण अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लगाए गए दंड को तत्काल वापस लेने, आदि विभिन्न मांगों को लेकर देश के सभी क्षेत्रों में कई आंदोलन किए गये।
ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (ए.आई.एस.एम.ए.) की अगुवाई में स्टेशन मास्टरों और ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) के अगुवाई में रेल चालकों ने, हाल में हुई एक घटना के बाद, उचित पूछताछ किये बिना अपने सहकर्मियों की अन्यायपूर्ण बर्ख़ास्तगी की निंदा करते हुए देशभर में कई विरोध प्रदर्शन आयोजित किये। 5 मार्च को रेल चालकों और स्टेशन मास्टरों ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किये और बर्ख़ास्तगी की कार्रवाई को वापस लेने की मांग की। उन्होंने संबंधित शाखा के अपने अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। नॉर्दर्न रेलवे मेन्स यूनियन ने भी आदेश की शीघ्र समीक्षा करने की मांग की है। ए.आई.एस.एम.ए. और ए.आई.एल.आर.एस.ए. ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को भी पत्र लिखा है और इस अवैध दंडात्मक कार्रवाई को तुरंत रद्द करने की मांग की है।
25 फरवरी, 2024 को, एक मानवरहित मालगाड़ी उत्तर रेलवे में जम्मू के कठुआ रेलवे स्टेशन से 84 किमी की दूरी तक लुढ़क गई और अंततः रुक गई। रेल प्रशासन द्वारा रेलवे के चार कर्मचारियों, एक लोको पायलट, एक सहायक लोको पायलट, स्टेशन मास्टर और एक पॉइंट्समैन को भारतीय रेल के डी एंड ए नियम 14/आई.आई. के तहत तुरंत ही सेवा से हटाने की कठोरतम सज़ा दे दी गई। मज़दूरों को अपना पक्ष रखने का उचित मौका भी नहीं दिया गया।
उक्त नियमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रेलवे के किसी भी स्थायी कर्मचारी, जिसके ख़िलाफ़ जांच शुरू की गई है, उसको अपने बचाव के लिये अपना पक्ष रखने की अनुमति देने से इनकार नहीं किया जा सकता है। नियम स्पष्ट रूप से कहता है कि जब तक अनुशासनात्मक प्राधिकारी को जांच करना अव्यावहारिक नहीं लगता, प्रक्रिया के अनुसार जांच से छुटकारा नहीं किया जा सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि यदि पूछताछ से इनकार किया जाता है तो कारण लिखित में दर्ज़ किया जाना चाहिए। ए.आई.एस.एम.ए. के पत्र में बताया गया है कि सीनियर डी.ओ.एम./एफ.जेड.आर. ने ग़लत तरीके़ से कहा है कि तनावपूर्ण माहौल में जांच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है और जांच को गुमराह करने के लिए इस घटना के सबूत/रिकॉर्ड में हेराफेरी की जा सकती है। इस झूठे औचित्य के आधार पर इन आरोपी कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का मौका देने से रेलवे द्वारा इनकार कर दिया गया।
रेलवे कर्मचारियों ने बहुत सही ढंग से “सेवा से हटाने” के आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग की है। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने घटना की गहन जांच की भी मांग की है ताकि उन मूल कारणों का खुलासा हो सके जिनके कारण यह “रोल ओवर” घटना हुई।
इस विशिष्ट घटना के मामले में रेल प्रशासन की कई गंभीर ग़लतियों की ओर इशारा किया जा रहा है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह घटना पूरी तरह से प्रशासन द्वारा रेलवे कर्मचारियों पर डाले गए भारी दबाव के कारण हुई, जिसमें लदे माल वैगनों की सुरक्षित स्थिरता के लिए प्रक्रियाओं के सभी सुरक्षा मानदंडों और मानकों का उल्लंघन किया गया। कठुआ रेलवे स्टेशन पर बिना ब्रेक वैन (बीवी) और ब्रेक पावर सर्टिफिकेट (बीपीसी) के 53 माल वैगनों को गिट्टी लोड करने की अनुमति दी गई थी। फिर यह जानते हुए भी कि ट्रेन में बीपीसी और बीवी नहीं है और ट्रेन मैनेजर (टीएम) की व्यवस्था किए बिना, ट्रेन को गिट्टी ले जाने का आदेश दे दिया गया था।
ट्रेन फॉर्मेशन, जिसे अलगाव के साथ साइडिंग में स्थिर किया गया था, को टीएम की देखरेख के बिना, मुख्य लाइन पर भेज दिया गया, जिसमें अलगाव नहीं है, जबकि ड्यूटी पर एक ही पॉइंट-मैन था।
सुरक्षा मानदंडों की इस तरह की बेतहाशा अनदेखी कोई अपवाद नहीं है। उदाहरण के लिए, उत्तर रेलवे के रनिंग स्टाफ की शिकायत है कि अधिकारी आज भी चालक दल को ब्रेक पाइप (बीपी) पाइप को जोड़े बिना मुख्य लाइन पर ट्रेनें चलाने के लिए मजबूर करते हैं। यह भारतीय रेल के सामान्य और सहायक नियमों (जी एंड एसआर) का पूरी तरह से उल्लंघन है, जो निर्दिष्ट करता है कि अपेक्षित ब्रेक पावर के बिना ट्रेन शुरू नहीं की जा सकती है।
ए.आई.एल.आर.एस.ए. के उत्तर रेलवे के महासचिव पर स्वयं बीपी पाइप जोड़े बिना भरी हुई पेट्रोलियम टैंकर ट्रेन के पूर्ण फॉर्मेशन को शंट करने से इनकार करने के लिए मामला दर्ज़ किया गया था। इसलिए यह निष्कर्ष निकालने का हर कारण है कि रेलवे प्रशासन कठुआ की घटना की जांच नहीं कराना चाहता क्योंकि वह उस वास्तविक कारण को छिपाना चाहता है जिस कारण यह घटना हुई।
जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है तो रेलवे प्रशासन बहुत जल्दी इसका दोष रेलवे कर्मचारियों पर मढ़ देता है। लेकिन कई जांच समितियों ने स्पष्ट रूप से बताया है कि पर्याप्त और प्रशिक्षित मानवशक्ति की कमी के कारण काम की अत्यधिक तनावपूर्ण स्थितियां अधिकांश दुर्घटनाओं का मूल कारण हैं। रेल मंत्रालय ने बड़ी बेशर्मी से संसद में पेश किया कि भारतीय रेल में 2.9 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। रेल मंत्रालय खाली पदों पर तत्काल भर्ती करने के बजाय, हजारों पदों को तत्काल सरेंडर करने पर तुला हुआ है। इसीलिए रेलकर्मी सभी मांगों सहित खाली पड़ें पदों को तुरंत भरने की मांग को भी प्रमुखता से उठा रहे हैं।
यात्रियों और रेलकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी सभी सभी खाली पदों को भरना आवश्यक है।
मज़दूर एकता लहर रेलवे कर्मचारियों की इस उचित मांग का पूरा समर्थन करती है कि 4 कर्मचारियों की सेवा से अन्यायपूर्ण बर्ख़ास्तगी को तुरंत वापस लिया जाए। मज़दूर एकता लहर की यह भी मांग है कि भारतीय रेल में खाली पड़े सभी पदों को तुरंत स्थायी कर्मचारियों से भरा जाना चाहिए।