कामगार एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
13 मार्च, 2024 को महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (एम.एस.ई.डब्ल्यू.एफ.) ने “स्मार्ट मीटर – मिथक और वास्तविकता” विषय पर एक ज़ूम मीटिंग आयोजित की। उन्होंने प्रस्तुति करने के लिए कामगार एकता कमेटी (के.ई.सी.) को आमंत्रित किया। ज़ूम मीटिंग में पूरे महाराष्ट्र से एम.एस.ई.डब्ल्यू.एफ. के 75 से अधिक पदाधिकारियों ने भाग लिया।
के.ई.सी. ने प्रस्तुति में स्मार्ट मीटर योजना की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला। प्रस्तुति ने महाराष्ट्र सरकार के झूठे प्रचार को उजागर किया कि इस योजना को उस पर थोपा नहीं जा रहा है। क्योंकि केंद्र सरकार ने 3,03,758 करोड़ रुपये की एक संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आर.डी.एस.एस.) शुरू की है जो राज्य सरकारों को स्मार्ट मीटर स्थापित करना अनिवार्य बनाती है, यदि वे आर.डी.एस.एस. मे फंड का एक हिस्सा चाहते हैं।
प्रस्तुति ने उन लोगों द्वारा फैलाए जा रहे कई मिथकों को भी उजागर किया जो स्मार्ट मीटर को बढ़ावा देना चाहते हैं। एक मिथक यह फैलाया जा रहा है कि अगर स्मार्ट मीटर लगाए जाते हैं तो इससे वितरण क्षेत्र के उन कर्मचारियों का सिरदर्द कम हो जाएगा जो बिल संग्रह के लिए ज़िम्मेदार हैं। प्रस्तुति में बताया गया कि अगर वास्तव में स्मार्ट मीटर लगाए गए तो वितरण क्षेत्र के हजारों कर्मचारी अपनी नौकरियां खो देंगे।
एक और मिथक यह फैलाया जा रहा है कि स्मार्ट मीटर का खर्च उपभोक्ताओं से नहीं लिया जाएगा। प्रस्तुति में बताया गया कि पैसा या तो उपभोक्ताओं से लंबी अवधि तक किश्तों में वसूला जाएगा या सरकार द्वारा वहन किया जाएगा, जो वास्तव में लोगों का ही पैसा है।
एक और मिथक फैलाया जा रहा है कि स्मार्ट मीटर लगाने से ट्रांसमिशन और वितरण घाटे को कम करने में मदद मिलेगी। प्रस्तुति में बताया गया कि घाटे को कम करने के लिए पूरी तरह से अलग-अलग कार्रवाइयों की आवश्यकता होती है जैसे बहुत पुराने ट्रांसफार्मर/सब-स्टेशन की बहुत पुरानी वायरिंग आदि को बदलना। प्रस्तुति में यह भी बताया गया कि स्मार्ट मीटर अनिवार्य रूप से प्री-पेड मीटर हैं जिनका मुख्य उद्देश्य बिजली वितरण के त्वरित निजीकरण में सबसे बड़ी व्यावहारिक बाधा, मतलब अतिदेय बिलों की वसूली को हटाना है। स्मार्ट मीटर लगने के बाद, उपभोक्ता प्री-पेड मोबाइल फोन की तरह ही अग्रिम भुगतान करने के लिए मजबूर हो जायेंगे, और प्री-पेड राशि का उपभोग होने के बाद उनकी बिजली स्वयं ही कट जाएगी।
प्रस्तुति में यह स्पष्ट किया गया कि अतः स्मार्ट मीटर बिजली क्षेत्र के श्रमिकों और बिजली उपभोक्ताओं दोनों के हितों के ख़िलाफ़ हैं। हमें श्रमिकों और उपभोक्ताओं दोनों की मजबूत एकता बनानी होगी और स्मार्ट मीटर लगाये जाने के ख़िलाफ़ लड़ना होगा। हमें एकजुट होकर आह्वान करना चाहिए कि “बिजली हर इंसान के लिए मूलभूत आवश्यक वस्तुओं में से एक है और इसलिए यह सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि बिजली सस्ती क़ीमतों पर सभी को पर्याप्त और अच्छी गुणवत्ता वाली बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करे। इसलिए इस क्षेत्र में निजीकरण और मुनाफ़ाखोरी की अनुमति कभी नहीं दी जानी चाहिए।”
बैठक से एम.एस.ई.डब्ल्यू.एफ.को स्मार्ट मीटर के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अपनाने में मदद मिली।