18वीं लोकसभा चुनाव :
मौजूदा व्यवस्था अति-धनवान अल्पसंख्यकों की क्रूर हुक्मशाही है

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 30 मार्च 2024

2024 के लोकसभा चुनावों की तारीख़ों की घोषणा के बाद, पूरे देश में लोगों पर हुक्मरान वर्ग की प्रतिस्पर्धी पार्टियों के झूठे प्रचार बरसाए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग या एनडीए) की प्रमुख भाजपा और इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स (इंडिया) का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी, दोनों ही मज़दूरों , किसानों, महिलाओं और नौजवानों के हितों की सेवा करने का वादा कर रहे हैं। लेकिन हकीक़त यह है कि ये दोनों पार्टियां और उनके अधिकांश सहयोगी सरमायदार वर्ग की पार्टियां हैं। उन्हें पूंजीवादी कंपनियों से नियमित रूप से करोड़ों रुपये मिलते हैं। जब भी वे राज्य या केंद्र स्तर पर सरकार की प्रभारी होती हैं, तो वे अपने पूंजीवादी वित्त-दाताओं के हित में नीतियां और क़ानून बनाती हैं। वे उन्हें लाइसेंस और मुनाफ़ेदार ठेके प्रदान करती हैं।

हर दिन यह ख़बर आती है कि यह या वह नेता एक सरमायदारी पार्टी से दूसरी पार्टी में, इंडिया गठबंधन से एनडीए में या इसके विपरीत, एनडीए से इंडिया गठबंधन में, चला गया है। इस तरह के दलबदल से पता चलता है कि ये पार्टियां एक ही वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसे उम्मीदवारों पर लोग कैसे भरोसा करें?

जिस तरह से अलग-अलग गठबंधन टूट रहे हैं या जुड़ रहे हैं, उससे पता चलता है कि सत्ता के लिए लड़ रही इन पार्टियों के बीच विचारधारा या लक्ष्य में कोई बुनियादी अंतर नहीं है।

लोगों के सामने तथाकथित विकल्प एक धोखा है। हमें यह चुनने के लिए कहा जाता है कि हुकमरान वर्ग की कौन-सी पार्टी अगले पांच वर्षों तक हम पर अत्याचार करेगी और हमें धोखा देगी।

पिछले 75 वर्षों के दौरान हुए लोकसभा चुनावों में कई बार सरकार संभालने वाली पार्टी में परिवर्तन हुआ है। लेकिन इनसे अर्थव्यवस्था की पूंजीवादी दिशा और राजनीतिक सत्ता के वर्ग चरित्र में कभी कोई बदलाव नहीं आया। साल-दर-साल, अति-धनवान इजारेदार पूंजीपति और अत्यधिक धनवान होते रहे हैं। मज़दूरों और किसानों को लगातार बढ़ते शोषण, बढ़ती कर्ज़दारी और दुख का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं का यौन उत्पीड़न बढ़ता जा रहा है। इसी प्रकार, जाति पर आधारित भेदभाव और उत्पीड़न भी फैलता जा रहा है।

जबकि हुक्मरान वर्ग के प्रवक्ता हिन्दोस्तान की आर्थिक वृद्धि के बारे में दावा करते हैं, तो अमीर और ग़रीब के बीच की खाई अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है। नौजवानों में बेरोज़गारी पहले से कहीं ज्यादा है।

सत्ता में बैठे लोग बार-बार किसी ख़ास धर्म, जाति या आदिवासी समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा आयोजित करते हैं, ताकि अपने उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ लोगों की एकता को नष्ट किया जा सके। जो लोग ऐसी हिंसा आयोजित करते हैं, उन्हें राज्य का समर्थन प्राप्त है। सांप्रदायिक आतंक के आयोजकों को सज़ा नहीं दी जाती है, बल्कि पीड़ितों को सताया जाता है। जो लोग अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है और अनिश्चित काल तक बंद रखा जाता है। दुनिया के इस तथाकथित सबसे बड़े लोकतंत्र में, यूएपीए और आफस्पा जैसे कठोर क़ानून लोगों के अधिकारों के क्रूर हनन की पूरी छूट देते हैं।

चुनावों के हर दौर में, लोगों को यह यकीन दिलाया जाता है कि यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है और यहां लोग तय करते हैं कि किसकी हुकूमत होनी चाहिए। हक़ीक़त तो यह है कि यह जनता की हुकूमत नहीं है। यह एक शोषक अल्पसंख्यक तबके की हुकूमत की व्यवस्था है।

मौजूदा व्यवस्था में चुनावों का नतीजा वास्तव में, मतदान करने वाला जनसमुदाय नहीं तय करता है। यह सरमायदार वर्ग तय करता है। पूंजीपति अपने धनबल, मीडिया पर नियंत्रण, अदालतों पर प्रभाव और मतदाता सूचियों, ईवीएम तथा वोटों की गिनती में तरह-तरह के हेरफेर का इस्तेमाल करते हैं। वे उस पार्टी की जीत को सुनिश्चित करते हैं जो पूंजीपतियों के खुदगर्ज़ कार्यक्रम को बेहतरीन तरीके़ से लागू करने के साथ-साथ, लोगों को सबसे कुशल ढंग से बेवक़ूफ़ बना सकती है।

2004 में, हुक्मरान वर्ग ने भाजपा के स्थान पर कांग्रेस पार्टी को बिठाया था। 2014 में कांग्रेस पार्टी की जगह भाजपा ने ले ली थी। इस पूरी अवधि में, उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये, वैश्वीकरण का कार्यक्रम अनवरत चलता रहा है।

आज जब अधिकांश टीवी समाचार चैनल भाजपा के लिए एक और शानदार जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, तो यह दर्शाता है कि पूंजीपति वर्ग का एक प्रभावशाली हिस्सा प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार को जारी रखना चाहता है।

चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने के सुप्रीम कोर्ट के फै़सले से पता चलता है कि पूंजीपति वर्ग का एक और ऐसा प्रभावशाली हिस्सा भी है जो हिन्दोस्तान में लोकतंत्र को और अधिक बदनाम होने से रोकने के लिए, भाजपा के स्थान पर कोई वैकल्पिक सरकार लाना चाहता है।

अगली सरकार चाहे एनडीए बनाये या इंडिया गठबंधन बनाए, पूंजीपति वर्ग का शासन बरकरार रहेगा। अति-धनवान अल्पसंख्यक तबके और बहुसंख्यक मेहनतकश लोगों के बीच की खाई बढ़ती रहेगी।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को पूंजीपति वर्ग की विभाजनकारी कार्यनीति के मुकाबले, अपनी एकता की रक्षा करनी चाहिए। हमें देश का हुक्मरान बनने के लक्ष्य के साथ अपनी तात्कालिक मांगों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

जब 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन का अंत हुआ था, तो हमारे लोगों को उम्मीद थी कि अब सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न से मुक्ति मिलेगी। परन्तु राजनीतिक सत्ता हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के हाथों में चली गयी, जिसकी वजह से ये उम्मीदें चकनाचूर हो गईं।

1950 में अपनाया गया संविधान ब्रिटिश हुक्मरानों द्वारा छोड़ी गई शोषण और उत्पीड़न की व्यवस्था को क़ायम रखने के लिए बनाया गया था। इसकी रचना हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग को सत्ता में बनाए रखने के लिए की गयी है, जबकि मेहनतकश बहुसंख्यक लोग लगातार बढ़ते शोषण और उत्पीड़न को झेलते हुए, शक्तिहीन बने हुए हैं।

आज यह वक्त की मांग है कि मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह नाता तोड़ दिया जाये। हिन्दोस्तान की दौलत का उत्पादन करने वाले मज़दूर और किसान उसके मालिक बन सकते हैं और उन्हें बनना होगा। हमें मज़दूरों और किसानों की हुकूमत की एक नई व्यवस्था स्थापित और विकसित करनी होगी जिसमें, बिना किसी अपवाद के, सभी इंसानों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी।

हमें एक नया संविधान स्थापित करना होगा, जो लोगों को संप्रभुता प्रदान करेगा। कार्यकारी शक्ति को चलाने वाले मंत्रियों को निर्वाचित विधायी निकाय के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा।

चुनाव अभियानों के लिए सभी प्रकार की पूंजीवादी फंडिंग को ख़त्म करना ज़रूरी है। नई व्यवस्था में, सभी चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन में मतदाताओं की भूमिका अनिवार्य होगी। राज्य को उम्मीदवारों के चयन की पूरी प्रक्रिया और चयनित उम्मीदवारों के चुनाव अभियान के लिए धन देना होगा। लोगों को निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने और अगर वे हमारे हितों को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें किसी भी समय वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। हमें क़ानूनों और नीतियों को प्रस्तावित करने या ख़ारिज करने का अधिकार होना चाहिए।

जब अपने हाथों में राजनीतिक शक्ति होगी, तब मज़दूर और किसान उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण करने में सक्षम होंगे और सभी के लिए सुरक्षित रोज़ी-रोटी व खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए अर्थव्यवस्था को नई दिशा दिला सकेंगे। तभी हिन्दोस्तानी लोगों के सभी प्रकार के शोषण-दमन से पूरी मुक्ति पाने के लम्बे समय से चले आ रहे सपने साकार होंगे।

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