उत्तरी बंगाल में चाय बगानों के मज़दूर राज्य सरकार द्वारा उन्हें उनकी ज़मीन के अधिकार से वंचित करने के प्रयासों का विरोध कर रहे हैं। उनके संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने के लिए ग्राम संसद की बैठकों का ज़ोरदार अभियान चलाया जा रहा है।
10 मार्च, 2024 को उत्तर बंगा चाय श्रमिक संगठन द्वारा बुलाई गई एक बैठक में चाय बागानों के मज़दूरों की यूनियनों ने प्रति परिवार केवल “पांच डिसमिल” भूमि (5 डिसमिल – 2177.80 वर्ग फीट) देने के राज्य के प्रस्ताव का विरोध किया है। संगठन ने दावा किया है कि मज़दूरों की जितनी ज़मीन है वह उन्हें दी जानी चाहिए। उन्होंने मांग की है कि शानदार पर्यटक संपदा और व्यवसाय बनाकर भारी मुनाफ़ा कमाने के लिए मज़दूरों की ज़मीन को निजी कंपनियों को सौंपने के अपने प्रयासों को सरकार को बंद करना चाहिए।
पिछले 160 वर्षों से भी ज्यादा समय से चाय बागान के मज़दूर, आदिवासी और गोरखा पश्चिम बंगाल में चाय बागानों का अभिन्न अंग रहे हैं। वे 1850 के दशक से चाय बगानों के मूल निवासी रहे हैं। इस साल जनवरी में संगठन द्वारा जारी बयान के अनुसार, “इसलिए वे वास भूमि के अधिकार के हक़दार हैं, जिसमें रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (आर.ओ.आर.) खतियान या रैयत शामिल हैं, न कि केवल 5 डिसमिल पट्टा।” संगठन के अनुसार, चाय बागान मज़दूरों को “5 डिसमिल भूमि” देने के सरकार के प्रस्ताव ने मज़दूरों के लिए अन्य स्थानों पर पलायन करने के अलावा कोई वैकल्पिक आजीविका विकल्प नहीं छोड़ा है।
लगभग 180 साल पहले चाय बागान मज़दूरों ने घने जंगलों से इस ज़मीन को कैसे बनाया था, इसके इतिहास को याद करते हुए, 10 मार्च की बैठक में वक्ताओं ने बताया कि कैसे अधिकांश चाय बागान मज़दूरों के पास 5 दशमलव से अधिक भूमि है। सरकार द्वारा केवल 5 डिसमिल ज़मीन का पट्टा या भूमि का अधिकार देने से वास्तव में लोगों की ज़मीन छीन रही है। वक्ताओं ने यह भी महसूस किया कि चाय बागान की आबादी को भूमिहीन कहना उनका अपमान है। उन्होंने दावा किया कि “हम भूमिहीन नहीं हैं, हमारे पास ज़मीन है। हम बस इस ज़मीन पर अपने अधिकारों का उचित रिकॉर्ड चाहते हैं”।
उत्तरी बंगाल क्षेत्र में चाय बागान 97,280 हेक्टेयर (240,400 एकड़) में फैले हुए हैं और 22.6 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन करते हैं, जो हिन्दोस्तान के कुल चाय उत्पादन का लगभग एक चौथाई है। उत्तर बंगाल में लगभग 300 चाय बागान हैं, जिनमें 3.5 लाख मज़दूर कार्यरत हैं।
पश्चिम बंगाल में विभिन्न ट्रेड यूनियनें और जन संगठन चाय बागानों के मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन करने के लिए एक साथ आये हैं। उन्होंने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त कार्रवाई समिति (तेराई डोअर्स और हिल्स, या जेएसी-टीडीएच) का गठन किया है। जेएसी-टीडीएच ने प्रत्येक घर को केवल 5 डिसमिल ज़मीन का पट्टा देने की सरकारी अधिसूचना को तत्काल रद्द करने की मांग की है; पिछले कई दशकों से चाय बागान के मज़दूरों द्वारा विकसित और खेती की गई सभी भूमि पर स्थायी अधिकार; उत्तरी बंगाल में चाय बागानों में सरकारी भूमि का निजीकरण करने के राज्य मशीनरी के किसी भी प्रयास पर तत्काल रोक लगाई जाए ताकि निजी खिलाड़ियों (पंजीपति कंपनियों) को उनकी भूमि को फ्रीहोल्ड करने या किसी अन्य तरीके़ से लाभ पहुंचाने से रोका जा सके।