जोमैटो डिलीवरी मज़दूर भेदभाव का कड़ा विरोध किया

Delivery ‘partnersभोजन डिलीवरी कंपनी ज़ोमैटो ने 20 मार्च को यह घोषणा की कि वह “शुद्ध शाकाहारी शाखा” की शुरुआत करेगी। यह शाखा केवल शुद्ध शाकाहारी रेस्तरां से ही भोजन डिलीवर करेगी। यह अंडा, मछली, चिकन या किसी भी प्रकार का मांस परोसने वाले रेस्तरां से लिये हुये शाकाहारी भोजन की डिलीवरी नहीं करेगी। इस शाखा से जुड़े डिलीवरी मज़दूर, हरे रंग की पोशाक पहनेंगे और उनकी मोटरसाइकिलों पर हरे रंग के ही डिलीवरी बॉक्स होंगे, ताकि उन्हें कंपनी के अन्य डिलीवरी मज़दूरों से अलग पहचाना जा सके जैसा कि जो लाल वर्दी पहनते हैं, उनके पास लाल डिलीवरी बॉक्स होते हैं।

जोमैटो की इस फै़सले के लिए काफ़ी आलोचना हुई। सोशल मीडिया सहित बड़े पैमाने पर हुई तीव्र सार्वजनिक आलोचना और ज़ोमैटो डिलीवरी मज़दूरों द्वारा किया गये कड़े विरोध ने कंपनी को उसी दिन अपना फै़सला वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। कंपनी के सी.ई.ओ. ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि डिलीवरी मज़दूरों के बीच कोई अलगाव नहीं होगा और सभी डिलीवरी मज़दूर लाल कपड़े पहनना जारी रखेंगे और लाल डिलीवरी बॉक्स का इस्तेमाल करेंगे।

ज़ोमैटो डिलीवरी मज़दूरों ने इस फ़ैसले का विरोध इसलिए किया, क्योंकि उन्हें डर था कि इस प्रकार तो वे जाति और सांप्रदायिक आधार पर बांट दिये जाएंगे। वे जिन जगहों पर भोजन देने जायेंगे, उन जगहों पर उन्हें अपनी पोशाक के रंग के आधार पर भेदभाव, अपमान और यहां तक कि शारीरिक हमलों के ख़तरों का भी डर होगा।

इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन (आई.एफ.ए.टी.) के अध्यक्ष ने ज़ोमटो के इस क़दम की कड़ी आलोचना की, क्योंकि इससे डिलीवरी मज़दूरों को जाति, सांप्रदाय और धर्म के आधार पर बांटा जाएगा।

गिग वर्कर्स एसोसिएशन (जी.आई.जी.डब्ल्यू.ए.) जिसमें ज़ोमैटो के डिलीवरी मज़दूर भी शामिल हैं, ने 20 मार्च को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें उन्होंने इस क़दम के ख़िलाफ़ अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया। क्योंकि उन्हें इस बात आ अंदेशा था कि इससे भोजन की प्राथमिकताओं के आधार पर मज़दूरों के बीच भेदभाव हो सकत है। इस क़दम ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या मज़दूरों को उनकी व्यक्तिगत भोजन की पसंद के आधार पर बांटा जा सकता है। इसके अलावा, इस क़दम ने यह सवाल भी उठाया कि है क्या “शुद्ध शाकाहारी” शाखा के लिए डिलीवरी मज़दूरों को कुछ विशेष समुदायों से ही भर्ती किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि डिलीवरी मज़दूरों की “रंग-कोडिंग” से उन्हें “भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है और यहां तक कि अपने ख़िलाफ़ हिंसा के होने की संभावानाएं पैदा हो जायेंगी… मज़दूरों के बीच इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये कि वे किस प्रकार की डिलीवरी कर रहे हैं”।

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