इस साल की शुरुआत से ही यूरोप के किसान अपनी आजीविका पर बढ़ते हमलों के खि़लाफ़ हो रहे शक्तिशाली विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं। ये विरोध प्रदर्शन फ्रांस और जर्मनी जैसे अत्यधिक विकसित पूंजीवादी देशों के साथ-साथ पोलैंड और रुमानिया जैसे अन्य देशों में भी हो रहे हैं। वे यूरोपीय आयोग और सदस्य देशों की सरकारों द्वारा उठाये गए कई किसान-विरोधी क़दमों का विरोध कर रहे हैं।
यूरोपीय आयोग द्वारा उठाये गये क़दमों में से एक है यूक्रेन के साथ शुल्क मुक्त व्यापार का विस्तार। रूस के ख़िलाफ़ हो रहे युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करने के नाम पर ऐसा किया गया है।
यूक्रेन का मुख्य निर्यात कृषि उत्पाद है। दो साल पहले युद्ध की शुरुआत से, यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूक्रेन से कृषि उपज के असीमित आयात की अनुमति दी थी। परिणामस्वरूप, यूक्रेनी कृषि उपज को यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बाज़ारों में डंप किया जाने लगा, जिससे इन देशों के किसानों की कृषि उपज की मांग कम हो गई।
यूक्रेन की सीमा से लगे यूरोपीय संघ के सदस्य देश – पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और बुल्गारिया, जो बिना किसी शुल्क के यूक्रेन से असीमित कृषि आयात की अनुमति देने की यूरोपीय संघ की नीति से गंभीर रूप से प्रभावित थे। उन्होंने यूक्रेन से कृषि उपज के आयात को रोकने के उपाय किये। परिणामस्वरूप, यूक्रेनी कृषि उपज समुद्री मार्ग से यूरोप के बाकि हिस्सों में आने लगी।
2022 में, सात सदस्य देशों ने यूरोपीय संघ के कुल कृषि उत्पादन का 75 प्रतिशत हिस्सा लिया, जिसमें शामिल हैं फ्रांस (18 प्रतिशत), जर्मनी (14 प्रतिशत), इटली (13 प्रतिशत), स्पेन (12 प्रतिशत), पोलैंड (7 प्रतिशत), नीदरलैंड (7 प्रतिशत) और रोमानिया (4 प्रतिशत)। यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में अधिकतर छोटे और निजी फार्म हैं। ये महत्वपूर्ण रूप से राज्य से मिलने वाली सब्सिडी और सहायता पर निर्भर हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि यूरोपीय संघ में किसानों की आय का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सरकारी सब्सिडी से आता है।
यूरोपीय आयोग लगातार किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में कटौती कर रहा है। ऊर्जा की बढ़ती लागत और बढ़ते ख़र्चों के साथ-साथ कृषि के लिए राज्य द्वारा दी जा रही सब्सिडी में कटौती, किसानों और कृषि मज़दूरों की आय को कम से कम कर रही है।
यूरोपीय बाज़ार में सस्ते कृषि उत्पादों की बढ़ोतरी के साथ-साथ, यूक्रेन में युद्ध के कारण भी शरणार्थियों के प्रवेश में बढ़ोतरी हुई है। अफ्रीका और एशिया के देशों के शरणार्थियों की तरह, यूक्रेनी शरणार्थियों के पास, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के कृषि मज़दूरों की तुलना में बहुत कम मज़दूरी पर काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यूरोपीय संघ के बहुत से कृषि मज़दूरों की आजीविका पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। जो किसान ऐसे शरणार्थियों को काम पर रखते हैं, वे उन्हें अपने कर्मचारियों की रिपोर्ट की गई संख्या में शामिल नहीं कर सकते हैं, नतीजतन, उन्हें राज्य से कम सब्सिडी मिलती है।
जर्मन संसद ने कृषि के लिए डीजल के साथ-साथ गैस और बिजली पर भी सब्सिडी ख़त्म कर दी। इसने कृषि मज़दूरों के लिए सामाजिक समर्थन कम कर दिया। इसने कार्बन कर बढ़ा दिया है, जिसका असर किसानों पर पड़ रहा है। दूसरी ओर, उसने रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन को 2.5 अरब यूरो की सहायता आवंटित की है। जर्मनी में किसानों ने अपनी सरकार की किसान विरोधी नीतियों पर अपना गुस्सा जाहिर किया।
पुर्तगाल और स्पेन में किसान भीषण सूखे और यूक्रेन से आयातित उत्पादों पर कर हटाने के कारण पीड़ित हैं। किसानों की समस्याओं से निपटने के लिए इन देशों की सरकारों को यूरोपीय संघ से कोई समर्थन नहीं मिला है।
अपने विरोध प्रदर्शन के तहत, पोलैंड, फ्रांस और जर्मनी में किसानों ने अपनी उपज शहर प्रशासन भवनों के सामने, राजमार्गों पर फेंक दी और दुकानों पर छापे मारे, यूक्रेन में बने सामानों को नष्ट कर दिया।
यूरोपीय आयोग की योजना मर्कोसुर देशों (लैटिन अमरीका के देशों का एक समूह) के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने की थी। हालांकि, किसान संगठनों के विरोध के परिणामस्वरूप, यह समझौता अस्थायी रूप से रूका हुआ है। यदि इस पर हस्ताक्षर किए गए, तो इसके परिणामस्वरूप लैटिन अमरीका से सस्ती कृषि उपज की बाढ़ आ जाएगी, जिससे यूरोप के किसान तबाह हो जाएंगे।
ईयू के सदस्य देशों के किसान मांग कर रहे हैं कि उनकी सरकारें उनकी आजीविका की सुरक्षा के उपाय लागू करें। वे रूस के खि़लाफ़ युद्ध में अरबों यूरो डालने के लिए अपनी सरकारों की निंदा कर रहे हैं। वे तेजी से इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि यूरोपीय संघ यूरोप के सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, और उसे उनके हितों की कोई परवाह नहीं है।