भिवंडी में सभाएं
8 मार्च, 2024 को भिवंडी जन संघर्ष समिति (बीजेएसएस) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए एक सभा का आयोजन किया। सभा की अध्यक्षता बीजेएसएस के संयोजक ने की। पुरोगामी महिला संगठन (पीएमएस), भारतीय महिला फेडरेशन (बीएमएफ), जनवादी महिला संगठन (जेएमएस), लोक राज संगठन, भिवंडी की बहुजन विकास अघाड़ी, अखिल भारतीय महिला सांस्कृतिक संगठन और हालात एकता फोरम के प्रतिनिधियों ने सभाा को संबोधित किया। प्रतिभागियों में विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और जन संगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ वकील, छात्र, बीड़ी मज़दूर शामिल थे। इसमें उन महिलाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिन्होंने अपने इलाकों में राशन, अच्छी सड़कें और पानी जैसी स्थानीय मांगों के लिए लोक राज संगठन के बैनर तले लड़ाई लड़ी थी।
सभा की शुरुआत में बीजेएसएस के संयोजक ने दुनियाभर की उन लाखों महिलाओं को सलाम किया, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए, मानव अधिकारों के लिए, साम्राज्यवादी युद्धों के खि़लाफ़, जैसा युद्ध फ़िलिस्तीन में चल रहा है, मुक्ति संघर्षों में और समाजवाद के लिए बहादुरी से लड़ाइयां लड़ी हैं। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास के बारे में संक्षेप में बात की।
दूसरे वक्ताओं ने अपने समाज में महिलाओं की स्थिति के बारे में अलग-अलग पहलुओं पर बात की। समाज में महिलाओं की गौण स्थिति और उत्पीड़न का कारण निजी संपत्ति के आधार पर वर्गों का विभाजन है। आज महिलाओं के दमन का स्रोत पूंजीवाद की अर्थव्यवस्था है। इसलिये पुरुष उनके दुश्मन नहीं हैं क्योंकि वे भी शोषित और उत्पीड़ित हैं। शासक पूंजीपति वर्ग महिलाओं के उत्पीड़न और दमन से अपना मुनाफ़ा बढ़ाता है। यही वर्ग महिलाओं के वस्तुकरण को बढ़ावा देता है।
वक्ताओं ने सावित्रीबाई फूले और फातिमा शेख को श्रद्धांजली दी, जो 19वीं सदी की शुरुआत में महिलाओं के शिक्षा पाने के अधिकार की लड़ाई में ज्योतिबा फूले की कॉमरेड और साथी थीं। सभी धर्मों की महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिये एक होकर संघर्ष किया था, जैसा कि आज़ादी की पहली लड़ाई – 1857 में और बाद में 20वीं सदी के आज़ादी के संघर्ष में देखा गया है।
सभी का मानना था कि महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में भाग लेने की आवश्यकता है। इतिहास गवाह है और हमारा अपना अनुभव भी दिखाता है कि महिलाओं में सभी समस्याओं का बहादुरी से सामना करने की क्षमता है।
9 मार्च को लोक राज संगठन के कार्यकर्ताओं को अक्सा कॉलेज, भिवंडी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और उसके महत्व के बारे में अपने छात्रों से बात करने के लिए आमंत्रित किया गया था। भाषणों के बाद हुई अनौपचारिक चर्चा में, लड़कियों ने अपने क्षेत्र में राशन की समस्याओं के बारे में बताया। उन्होंने लोगों को सत्ता में लाने के काम में योगदान देने की इच्छा जताई।
ठाणे में सभा
पुरोगामी महिला संगठन (पीएमएस), भारतीय महिला फेडरेशन (बीएमएफ), जमात-ए-इस्लामी हिंद, और फातिमा शेख स्टडी सर्कल (एफएसएससी, मुंब्रा) ने संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए एक सभा की। कार्यक्रम रविवार 10 मार्च को आयोजित किया गया था।
ज्योतिबा फूले, उनकी पत्नी सावित्रीबाई और उनकी साथी फातिमा शेख को बहुत सम्मान दिया जाता है क्योंकि उन्होंने समाज की प्रतिगामी ताक़तों के खि़लाफ़ लड़ाई लड़ी और महिलाओं के शिक्षित होने के अधिकार के लिए और साथ ही जाति के आधार पर भेदभाव के खि़लाफ़, सभी तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए लड़ाइयां लड़ी थीं। बीएमएफ की सांस्कृतिक टीम ने उनके सम्मान में पोवाड़ा (वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन करने वाले गीतों की एक शैली) प्रस्तुत किया। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की ठाणे शाखा की 77 वर्ष की अथक युवा नेता ने अपने जीवन और कार्यों पर एक प्रेरक भाषण दिया।
बीएमएफ के प्रतिनिधि ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की प्रेरक उत्पत्ति के बारे में बताया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखने वाली क्लारा जेटकिन एक कम्युनिस्ट थीं। इन कम्युनिस्ट महिलाओं ने समझा था कि महिलाओं के दुश्मन पुरुष नहीं, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था है। उन्होंने याद दिलाया कि महिलाओं ने महान समाजवादी अक्तूबर क्रांति में, यूएसएसआर व अन्य जगहों पर समाजवाद के निर्माण के संघर्ष में और साथ ही नाजीवाद व फासीवाद को हराने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने देश सहित, दुनियाभर के सभी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पुरोगामी महिला संगठन की दो युवतियों ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया। इन युवतियों ने बहुत स्पष्ट रूप से समझाया कि किस प्रकार पितृसत्ता से मुक्ति, पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने के साथ जुड़ी हुई है। उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि लगभग 150 इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व वाला पूंजीपतियों का वर्ग ही हिन्दोस्तान के वास्तविक शासक है। वे राज्य की मशीनरी व अपनी पार्टियों का उपयोग करके, लोगों को भ्रमित करने और गुमराह करने के लिए व्यवस्था के बारे में झूठ फैलाने और “फूट डालो और राज करो” जैसी पैंतरों का इस्तेमाल करते हैं।
समापन में उन्होंने समझाया कि किस प्रकार मज़दूरों और मेहनतकशों का शासन स्थापित करने के लिए एकजुट होना और संघर्ष करना आवश्यक है ताकि हम अपने देश में समाजवाद स्थापित कर सकें। पितृसत्ता सहित सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न को ख़त्म करने का यही एकमात्र तरीक़ा है।
फातिमा शेख स्टडी सर्कल के युवा आधारस्तंभों में से एक ने महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए जिस जोश से बात की, उसने उपस्थित सभी महिलाओं (और पुरुषों) के दिलों को खुश कर दिया। उन्होंने ध्यान दिलाया कि सभी तबकों के संघर्ष पूंजीवादी व्यवस्था के खि़लाफ़ संघर्ष के हिस्से हैं।
जेआईएच के वक्ताओं ने कहा कि दुनियाभर में महिलाओं के खि़लाफ़ हिंसा के 86 प्रतिशत मामले सामने नहीं आते हैं। महिलाओं पर केवल ग़रीब इलाक़ों में या बेरोज़गार पुरुषों द्वारा ही हमला नहीं किया जाता, बल्कि कॉरपोरेट और बॉलीवुड में भी उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। एक दिन महिलाओं की पूजा की जाती है और अगले ही दिन उन्हीं महिलाओं पर हमला या छेड़छाड़ की जाती है। आज, और इस युग में भी बहुत-सी महिलाओं पर रोज़मर्रा के घरेलू काम का बोझ है और उन्हें अपने परिवारों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के खि़लाफ़ संघर्ष करना पड़ता है। उन्होंने सभी महिलाओं व पुरुषों को एकजुट होकर शासकों की ”बांटो और राज करो“ की नीति को हराने का आह्वान किया।
बीएमएफ तथा पीएमएस के कार्यकर्ताओं द्वारा जोशीले गीत प्रस्तुत किए गए। बीएमएफ ने ”वो जाग उठी!“ नामक एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने उसकी सराहना की। जब महिला पहलवान सत्ताधारियों द्वारा उन पर किए जाने वाले यौन हमलों के खि़लाफ़ सड़कों पर न्याय की लड़ाई लड़ रही थीं, तब बीएमएफ ने इस नाटक को उनके सामने पेश किया था।
जोशीले नारों के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।