किसानों को अपनी मांगों के लिए दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने का पूरा अधिकार है!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 17 फरवरी, 2024
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी बड़े गुस्से के साथ, हमारे देश के किसानों पर किये जा रहे क्रूर दमन के लिए केंद्र सरकार की कड़ी निंदा करती है।
पंजाब और देश के अन्य राज्यों के किसानों ने 13 फरवरी को “दिल्ली चलो” की शांतिपूर्ण यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा का उद्देश्य, लम्बे समय से चली आ रही उनकी मांगों पर प्रकाश डालना था। किसानों की मुख्य मांगें हैं – सभी फ़सलों के लिए एम.एस.पी. (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की क़ानूनी गारंटी, एम.एस.पी. निर्धारित करने के तरीक़े पर स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करना, किसानों और खेत मज़दूरों के लिए पेंशन, बिजली संशोधन विधेयक-2022 को वापस लेना, किसानों के क़र्ज़ की माफ़ी, लखीमपुर खीरी के पीड़ितों के लिए न्याय और किसानों के खि़लाफ़ पुलिस मामलों को वापस लेना। दो साल से अधिक समय पहले, जब केंद्र सरकार ने उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था, तो उसके बाद किसानों ने दिल्ली के बॉर्डरों पर अपना सालभर का आंदोलन स्थगित कर दिया था। इनमें से कोई भी आश्वासन पूरा नहीं हुआ है।
केंद्र सरकार किसानों के साथ ऐसा बर्ताव कर रही है मानो वे देश के दुश्मन हों। जैसे ही पंजाब से सैकड़ों ट्रैक्टर–ट्रॉलियों में हजारों किसानों ने अपनी रैली शुरू की, उन्हें पंजाब–हरियाणा बॉर्डर पर, अंबाला के पास शंभू और जींद में खनौरी पर रोक दिया गया। पंजाब–हरियाणा बॉर्डर, हरियाणा–दिल्ली बॉर्डर और दिल्ली–उत्तर प्रदेश बॉर्डर पूरी तरह से सील कर दिए गए हैं। केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि कोई भी किसान दिल्ली में प्रवेश न कर सके, संसद तक मार्च करना तो दूर की बात है।
अंतरराज्यीय बॉर्डरों पर सड़कें खोद दी गई हैं। एक के बाद एक कई बैरिकेड्स लगाए गए हैं ताकि ट्रैक्टर–ट्रॉलियां न गुजर सकें। पुलिस ने सड़कों पर कंक्रीट के स्लैब और ट्रैक्टर–ट्रॉलियों के टायरों को नष्ट करने के लिए विशेष कीलें लगा दी हैं। यहां तक कि घग्गर नदी के तल को भी इसी उद्देश्य से खोदा गया है!
अलग–अलग बॉर्डरों पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की सैकड़ों टुकड़ियां तैनात की गई हैं। अंबाला के पास पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर पर किसानों पर लाठीचार्ज किया गया है और पानी की बौछारों तथा आंसू गैस के गोलों से हमला किया गया है। गंभीर रूप से घायल सैकड़ों किसानों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। किसानों ने बताया है कि उनके खि़लाफ़ इस्तेमाल किए जा रहे आंसू गैस के गोले सैन्य ग्रेड के हैं, जो आम तौर पर पुलिस बलों द्वारा इस्तेमाल नहीं किए जाते हैं और उनमें कुछ विशेष रसायन होते हैं, जो गंभीर चोट पहुंचा रहे हैं। सरकार ने विशेष–प्रयोजन ड्रोन का उपयोग करके किसानों पर आसमान से आंसू गैस के गोले भी छोड़े हैं। किसानों ने बताया है कि उनके आंदोलन को बदनाम करने और राज्य के दमन को जायज़ ठहराने के लिए, सरकार अपने एजेंटों को साधारण वेश में उनके बीच भेज रही है, ताकि उनके द्वारा पुलिस पर पथराव जैसे उकसावों को अंजाम दिया जा सके।
हरियाणा सरकार ने राज्य में किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन या मार्च पर रोक लगाते हुए, 15 जिलों में धारा 144 लागू कर दी है। केंद्र सरकार ने 13 मार्च तक, पूरे एक महीने के लिए दिल्ली में धारा 144 लागू कर दी है। चंडीगढ़ प्रशासन ने भी 60 दिनों के लिए शहर में धारा 144 लगा दी है। हरियाणा के सात जिलों – अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जिंद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा – में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं और बल्क एस.एम.एस. सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं। केंद्र सरकार के निर्देश के बाद आंदोलन में भाग लेने वाले किसान संगठनों के ट्विटर और फेसबुक अकाउंट निष्क्रिय कर दिए गए हैं।
देश के किसानों के खि़लाफ़ सरकार द्वारा किए जा रहे दमन को किसी भी अंदाज़ से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। किसानों को पूरा हक़ है कि वे केंद्र सरकार के सामने अपनी शिकायतें रखने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करें।
भाजपा के प्रवक्ता यह आरोप लगा रहे हैं कि विपक्षी राजनीतिक पार्टियों, ख़ासकर कांग्रेस पार्टी द्वारा किसानों को बरगलाया जा रहा है। वे पूछ रहे हैं कि किसान इस समय, आम चुनाव की पूर्व संध्या पर, एम.एस.पी. की क़ानूनी गारंटी और अपनी अन्य मांगें क्यों उठा रहे हैं। यह पूरी तरह ध्यान भटकाने वाला प्रचार है। किसान अपनी मांगें इस समय क्यों न उठाएं? किसान तो साल दर साल ये मांगें उठाते रहे हैं। सरकार के सामने अपनी समस्याओं को उठाना किसानों का अधिकार है। यह सरकार का फ़र्ज़ बनता है कि वह किसान, जो पूरे देश को खिलाने के लिए भोजन का उत्पादन करते हैं, उनकी आवाज़ सुने और किसानों के लिए न्याय सुनिश्चित करे। यह सरकार ही है जो किसानों के लिए रोज़ी–रोटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने फ़र्ज़ को निभाने में नाक़ामयाब रही है।
किसान और मज़दूर संगठन, राजनीतिक पार्टियां और लोकतांत्रिक विचार वाले लोग संघर्षरत किसानों के समर्थन में आगे आए हैं। किसानों ने ऐलान किया है कि जब तक सरकार उनकी मांगें पूरी नहीं करती, वे दिल्ली ज़रूर जाएंगे।
सरकार द्वारा किसानों पर किये गये दमन ने बहुत ख़तरनाक स्थिति पैदा कर दी है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी केंद्र सरकार से आह्वान करती है कि किसानों के खि़लाफ़ जारी दमन को तुरंत रोका जाए और किसानों को दिल्ली तक मार्च करने की अनुमति दी जाये।
किसानों की एम.एस.पी. की क़ानूनी गारंटी की मांग पूरी तरह जायज़ है। एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने इस मांग को लागू करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि यह कृषि व्यापार पर हावी होने के इच्छुक हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के हितों के खि़लाफ़ है। ये इजारेदार पूंजीपति ही हिन्दोस्तानी राज्य पर हावी हैं। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, वह सरकार इजारेदार पूंजीपतियों के हित में काम करती है। यह सभी किसानों के जीवन का अनुभव है।
रोज़ी–रोटी की सुरक्षा के लिए किसानों के संघर्ष को मज़दूर वर्ग का पूरा समर्थन प्राप्त है। मज़दूरों और किसानों को एक साथ मिलकर, इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुकूमत की जगह पर, अपनी हुकूमत स्थापित करने के लक्ष्य के साथ लड़ना होगा। ऐसा करके ही हम यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि अर्थव्यवस्था पूंजीवादी लालच को पूरा करने के बजाय, सभी के लिए सुख और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में संचालित होगी।