प्याज की अस्थिर क़ीमतों से किसानों व उपभोक्ताओं को नुक़सान

महाराष्ट्र में प्याज बोने वाले किसानों ने 8 दिसंबर को मुंबई-आगरा हाईवे जाम कर दिया। उन्होंने लासलगांव, चंदवाड, नंदगांव और नासिक जिले के अन्य स्थानों के प्याज बाज़ारों में नीलामी रोक दी। महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है, जो देश के कुल प्याज उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत पैदा करता है।

केंद्र सरकार ने 31 मार्च, 2024 तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। इसके विरोध में महाराष्ट्र के प्याज किसानों ने अपना आंदोलन किया था। निर्यात पर प्रतिबन्ध के कारण, किसानों को उनकी उपज के लिए मिलने वाली क़ीमत में गिरावट आई है। एक बार फिर, किसानों को बड़े नुक़सान की आशंका सता रही है। पिछला साल प्याज किसानों के लिए बहुत बुरा साल रहा, जिसमें अधिकांश किसानों को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ा था।

मार्च-अप्रैल 2023 में नासिक और महाराष्ट्र के अन्य प्याज उत्पादक जिलों में प्याज किसानों को 600-700 रुपये प्रति क्विंटल और यहां तक कि कुछ दिनों तक 100-200 रुपये प्रति क्विंटल तक कम क़ीमतों का सामना करना पड़ा था।

रबी की अच्छी फ़सल के कारण मार्च-अप्रैल में थोक बाज़ार में प्याज की क़ीमतें गिर गईं, क्योंकि बाज़ार में भरपूर प्याज थे। अधिकतर किसानों के पास अपनी फ़सल को जमा करके रखने की वित्तीय क्षमता नहीं है, इसलिए ऐसी स्थिति में वे बर्बाद हो जाते हैं। नासिक में किसान अपनी उपज को बाज़ार तक लाने के लिए परिवहन पर खर्च करने के बजाय अपनी प्याज की फ़सल को जला रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार उनकी उपज 1500 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदे। परन्तु, जब किसान बहुत कम क़ीमतों के कारण बर्बाद हो रहे थे, तो थोक विक्रेताओं और व्यापारियों के सिलसिले से गुज़रते हुए प्याज की क़ीमत इतनी बढ़ गयी कि अंततः उपभोक्ताओं ने किसानों को मिलने वाली क़ीमत से लगभग 65 फीसदी अधिक क़ीमत पर प्याज ख़रीदा।

जिन बड़े व्यापारियों ने मार्च से जून तक किसानों से प्याज ख़रीदा था, उनके पास प्याज का बहुत बड़ा भण्डार था और वे निर्यात और घरेलू बाज़ार में बढ़ती क़ीमतों से मुनाफ़ा कमा रहे थे। 24-31 जुलाई वाले हफ्ते में प्याज का थोक भाव 1161 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया। एक महीने बाद यह 60 फीसदी बढ़कर 1,819 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं के लिए प्याज की बढ़ती क़ीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर 19 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगा दिया।

निर्यात शुल्क के बावजूद, अक्तूबर में प्याज की खुदरा क़ीमत फिर से बढ़ने लगी। 25 अक्तूबर को यह 40 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गयी और नवंबर में बढ़कर 100 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गयी। 8 दिसंबर को, सरकार ने मार्च 2024 तक के लिये निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। देशभर में प्याज की क़ीमतें अभी भी ऊंची हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिसंबर के पहले सप्ताह में खुदरा क़ीमत 70 से 80 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच थी।

आलू और टमाटर की तरह, प्याज की क़ीमतें साल भर बहुत अस्थिर रहती हैं। फ़सल के तुरंत बाद क़ीमतें उत्पादन लागत से नीचे गिर जाती हैं और कुछ महीनों के बाद तेज़ी से बढ़ जाती हैं।

प्याज की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव न तो किसानों के हित में है और न ही शहरों की मेहनतकश आबादी के हित में है। मुख्य तौर पर, पूंजीवादी व्यापारी ही इस तरह की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव से मुनाफ़़ा बनाते हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त धन और भण्डारण के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध है। क़ीमत कम होने पर वे जमाखोरी करते हैं और उसके बाद, दोनों निर्यात और घरेलू बाज़ारों में उसे ऊंचे दामों पर बेचकर भारी मुनाफ़े बनाते हैं।

मज़दूरों और किसानों की यह लंबे समय से मांग रही है कि सरकार और उसकी एजेंसियों को सभी कृषि उपज की ख़रीद की गारंटी ऐसी क़ीमत पर देनी चाहिए, जिससे किसान को उसकी लागत पर उचित आमदनी मिले, बजाय इसके कि ख़रीदी की क़ीमत तय करने का काम थोक व्यापारियों पर छोड़ दिया जाए। अतिरिक्त उत्पादन को ख़रीदकर उसका भण्डारण और रखरखाव करना सरकार का कर्तव्य है। सरकार को इस जमा उपज का इस्तेमाल करके, खुदरा बाज़ार में सस्ती क़ीमतों पर उपज को मुहैया कराना चाहिए। सरकार को विदेशी व्यापार पर नियंत्रण रखना चाहिए और किसी निजी व्यक्ति या कंपनी को निर्यात करने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने पर ही घरेलू बाज़ार में भारी कमी और अचानक निर्यात प्रतिबंध लगाये जाने से बचना संभव है।

कृषि क़ीमतों में भारी मौसमी बदलाव से पूंजीपतियों को ही फ़ायदा होता है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मज़दूरों और किसानों की इन मांगों को पूरा करने से इनकार करना, यह दर्शाता है कि वे पूंजीपतियों के हितों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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