विज़न इंडिया@2047 नामक एक दस्तावेज़ पर नीति आयोग इन दिनों काम कर रहा है। यह एक लम्बे समय के लिए आर्थिक विकास की रणनीति है, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता की 100वीं सालगिरह तक हिन्दोस्तान को एक ऊंची आमदनी वाले देश का दर्ज़ा दिलाना है। नीति आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण के अनुसार, इसका लक्ष्य हिन्दोस्तान की जी.डी.पी. को 2047 में 3600 लाख करोड़ रुपये, और प्रति व्यक्ति आमदनी प्रति वर्ष 20 लाख रुपये से अधिक बना देना है।
औसत या प्रति व्यक्ति आमदनी में अनुमानित वृद्धि इस हक़ीक़त को छिपाती है कि पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़ों और मेहनतकशों की आमदनी के बीच में विशाल और लगातार बढ़ती खाई है। विकास की यह रणनीति मज़दूरों और किसानों के असली जीवन स्तर को नज़रंदाज़ करते हुए, सिर्फ़ औसत आमदनी बढ़ाने पर केंद्रित है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इसका उद्देश्य पूंजीपतियों की लालच को पूरा करना है।
इस दस्तावेज़ के पूरा हो जाने के बाद, इस रणनीति के मसौदे को प्रकाशन से पहले इजारेदार पूंजीपतियों के एक समूह के सामने प्रस्तुत किया जायेगा। इस समूह में मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, के.एम. बिड़ला, एन.चंद्रशेखरन (टाटा संस के सी.ई.ओ.), टिम कुक (एप्पल के सी.ई.ओ.), सुंदर पिचाई (गूगल के सी.ई.ओ.) और इंद्रा नूई (पेप्सिको की पूर्व सी.ई.ओ.) शामिल हैं। यह इस बात की फिर से पुष्टि करता है कि इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य पूंजीवादी अरबपतियों को और अधिक मालामाल बनाना है। यह दीर्घकालिक विकास रणनीति वास्तव में नीति आयोग द्वारा इजारेदार पूंजीपतियों के अनुरोध पर तैयार की जा रही है। विज़न इंडिया/2047 हिन्दोस्तानी हुक्मरान वर्ग के दृष्टिकोण के अलावा और कुछ नहीं है।
विकास की इस रणनीति की एक खास विशेषता यह है कि हिन्दोस्तानी पूंजीपति अमरीका द्वारा चीन पर व्यापारिक हमले का फ़ायदा उठाना चाहते हैं। अमरीकी सरकार हाल के वर्षों में चीन से आयात को रोक रही है और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने माल की आपूर्ति के स्रोत को चीन से बाहर हटाने के लिए प्रेरित कर रही है। इन परिस्थितियों में, हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीपति दुनिया में माल की सप्लाई चेन में पसंदीदा स्रोत बतौर, खुद के लिये चीन की जगह लेने का अच्छा अवसर देखते हैं। उन्हें उम्मीद है कि वे प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चीन के बजाय हिन्दोस्तान में अपना उत्पादन स्थापित करने के लिए आकर्षित करने में सफल होंगे।
अगले 25 वर्षों में निर्यात बहुत तेज़ी से बढ़ने का अनुमान है (तालिका देखिये)। देश के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा आयातित कच्चे माल और पुर्ज़ों पर निर्भर है। इसलिए निर्यात वृद्धि की उच्च दर के परिणामस्वरूप आयात में भी तेज़ी से वृद्धि होने का अनुमान है। निर्यात पर आयात की अधिकता 2030 में 0.3 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2047 में 2.5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इस बढ़ते अंतर के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.), विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफ.पी.आई.), विदेशी क़र्ज़ों और विदेशों से देश में वापस भेजे गए धन के रूप में विदेशी पूंजी के निरंतर और बढ़ते प्रवाह की आवश्यकता होगी।
विदेशी इजारेदार कम्पनियां अपना निवेश चीन से हटाकर हिन्दोस्तान में तभी स्थानांतरित करेंगी जब वे चीन की तुलना में कम लागत पर उत्पादन करने और अधिक मुनाफ़ा पाने में सक्षम होंगी। इसका तात्पर्य यह है कि हिन्दोस्तान के मज़दूरों को कम वेतन देना पड़ेगा, लंबे समय तक काम करवाना पड़ेगा और पूंजीपतियों को अपनी इच्छानुसार मज़दूरों को काम पर रखने और निकालने की ज्यादा से ज्यादा छूट देनी पड़ेगी। दूसरे शब्दों में, विदेशी पूंजी प्रवाह में जबरदस्त वृद्धि हासिल करने की कुंजी हिन्दोस्तानी मज़दूरों के शोषण को और अधिक तीव्र करने में है।
सूचकांक | यूनिट्स | 2030 | 2040 | 2047 |
वर्तमान दामों पर जीडीपी | खरब रुपये | 609.04 | 1,759.79 | 3,604.94 |
वर्तमान दामों पर प्रतिव्यक्ति जीडीपी | रुपये | 4,02,008 | 10,93,037 | 24,84,812 |
निर्यात | खरब डॉलर | 1.58 | 4.56 | 8.67 |
आयत | खरब डॉलर | 1.88 | 5.92 | 12.12 |
निवेश | खरब रुपये | 195.5 | 591.1 | 1,273.40 |
बचत | खरब रुपये | 207.8 | 649.4 | 1,339.70 |
स्रोत: नीति आयोग https://www.thehindu.com/news/national/pm-to-unveil-vision-2047-soon/article67473900.ece; 29 अक्तूबर, 2023)
यह याद रखा जाना चाहिए कि इस साल कर्नाटक में पास किया गया, फैक्ट्रियों में 12 घंटे की शिफ्ट की अनुमति देने वाले फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन, ताइवान की इजारेदार कंपनी फॉक्सकॉन द्वारा की गई मांगों को पूरा करने के लिए किया गया था। यह फॉक्सकॉन कंपनी द्वारा मोबाइल फोन और अन्य एप्पल उत्पादों के उत्पादन को चीन से कर्नाटक तक स्थानांतरित करने की शर्त थी। इसी तरह का एक संशोधन तमिलनाडु में भी लागू किया गया था, लेकिन उस राज्य में मज़दूरों की यूनियनों के कड़े विरोध के बाद उसे वापस ले लिया गया था।
हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीपति पहले से ही नियमित मज़दूरों की जगह पर, ठेके पर रखे गये मज़दूरों से काम करवाने का व्यापक अभ्यास कर रहे हैं। वे ऐसा करके दो उद्देश्यों को हासिल करना चाहते हैं – पहला, अपने मुनाफ़ों और प्रतिस्पर्धा की शक्ति को बढ़ाना; दूसरा, मज़दूर वर्ग की लड़ने की क्षमता को कमज़ोर करना।
इजारेदार पूंजीपतियों ने मीडिया में इस विचार पर बहस शुरू कर दी है कि 2047 तक हिन्दोस्तान को एक विकसित देश बनाने के लिए मज़दूरों को हफ़्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए।
विज़न इंडिया@2047 हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के साम्राज्यवादी उद्देश्यों की सेवा में है। हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीपतियों का लक्ष्य मज़दूर वर्ग के शोषण और किसानों व अन्य छोटे उत्पादकों की लूट को और तेज़ करके, एक बड़ी वैश्विक शक्ति बनना है। सबके लिए खुशहाली सुनिश्चित करना तो दूर, यह एक ऐसा मार्ग है जो अवश्य ही मज़दूरों और किसानों के जीवन में और अधिक अस्थिरता लायेगा। यह देश को ख़तरनाक हद तक विदेशी पूंजी पर निर्भर बना देगा। इसका अर्थ है धन और इजारेदार शक्ति का और भी अधिक संकेन्द्रण। इसका मतलब है मेहनतकश लोगों के अधिकारों पर और भी अधिक क्रूर हमले।
मज़दूरों और किसानों को अपने स्वयं के स्वतंत्र कार्यक्रम के तहत एकजुट होना होगा, जिसका उद्देश्य है कि पूंजीपति वर्ग के स्थान पर मज़दूरों-किसानों को खुद देश का हुक्मरान बनना होगा। मज़दूरों और किसानों की हुकूमत के तहत, संविधान रोज़ी-रोटी के अधिकार और सभी मानवाधिकारों की गारंटी देगा। बड़े पैमाने पर उत्पादन के साधनों को सामाजिक संपत्ति में बदल दिया जाएगा और अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी लालच को पूरा करने की दिशा से मोड़कर, लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में चलाया जाएगा।