5 नवंबर को मुंबई में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की इलाका समिति ने फ़िलिस्तीन के लोगों के ख़िलाफ़ इज़रायल द्वारा छेड़े जा रहे जनसंहारक युद्ध पर एक बैठक आयोजित की।
बैठक में पेश की गयी प्रस्तुति और चर्चा में, फ़िलिस्तीनी लोगों को एक सदी से भी अधिक समय से उनकी मातृभूमि से वंचित करने में बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवाद की अपराधी भूमिका पर प्रकाश डाला गया। अपनी मातृभूमि के लिए फ़िलिस्तीनी लोगों का संघर्ष साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ उत्पीड़ित लोगों का एक जायज़ संघर्ष है। यह दो धर्मों के बीच का संघर्ष नहीं है, जैसा कि साम्राज्यवादी मीडिया में बताया जाता है।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों ने फ़िलिस्तीनी लोगों को उनकी मातृभूमि से वंचित करने की साज़िश रची थी। वह उपनिवेशों, बाज़ारों और कच्चे माल के स्रोतों को फिर से आपस में बांटने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों के दो समूहों के बीच युद्ध था। प्रथम विश्व युद्ध – दुनिया को फिर से आपस में बांटने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों के दो समूहों के बीच युद्ध था। साम्राज्यवादी शक्तियों के एक समूह में ब्रिटेन, फ्रांस, अमरीका और उनके सहयोगी देश शामिल थे। दूसरे समूह में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और तुर्की शामिल थे। पहले समूह ने युद्ध में जीत हासिल की थी।
उस युद्ध के दौरान, घुड़सवार सेना पर आधारित लड़ाई के पुराने तरीक़ों की जगह टैंक, ट्रक, हवाई जहाज और पनडुब्बियों का इस्तेमाल किया गया था। बरतानवी-अमरीकी और अन्य साम्राज्यवादियों को एहसास हुआ कि भविष्य के युद्ध वही शक्तियां जीतेंगी जिनका तेल पर नियंत्रण होगा। विजेताओं के बीच हुए समझौते में, ब्रिटेन ने फ़िलिस्तीन पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जिस पर पहले तुर्की के सुल्तान का शासन था। बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के तेल-समृद्ध देशों से घिरे हुए, फ़िलिस्तीन की भूमि पर ही इज़राइल बनाने की योजना बनाई थी।
दो विश्व युद्धों के बीच की अवधि के दौरान, ब्रिटिश राज्य ने यूरोप से फ़िलिस्तीन में यहूदियों के आप्रवासन को प्रोत्साहित किया और नए निवासियों को फ़िलिस्तीनी लोगों की भूमि पर जबरन क़ब्ज़ा करने में सहायता की। प्रथम विश्व युद्ध के बाद और विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, नाज़ी-फासीवादियों ने यूरोप के क़ब्जे़ वाले क्षेत्रों में यहूदियों पर क्रूरतापूर्वक हमला किया, उनमें से लाखों लोगों को गैस चैंबरों और कंसन्ट्रेशन कैम्पों में मार डाला था। युद्ध के अंत में, जो यहूदी बचे थे उन्हें बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों ने फ़िलिस्तीन जाने के लिए प्रोत्साहित किया था।
14 मई, 1948 को फ़िलिस्तीन का एक हिस्सा निकालकर, उसमें इज़रायल बनाया गया। अगले दिन से ही इज़रायल ने फ़िलिस्तीन के अधिक से अधिक क्षेत्रों को हड़पने के लिए युद्ध छेड़ दिया था। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इज़रायल को अनगिनत हथियार देना और अरबों डॉलरों का धन देना करना जारी रखा है। इज़राइल फ़िलिस्तीनी और अन्य अरब लोगों पर निशाना साधी हुई, एक गोलियों से भरी हुई बंदूक की तरह कार्य करता है।
इतने सालों तक अधिकांश देश द्वारा फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन करते आ रहे हैं, परन्तु इसके बावजूद, अमरीका ने इज़रायल के खि़लाफ़ हर किसी प्रस्ताव को विफल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करना जारी रखा है।
बरतानवी-अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके यूरोपीय सहयोगी फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इज़रायल के जनसंहारक युद्ध का खुलेआम समर्थन कर रहे हैं। जर्मनी और फ्रांस ने फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने वाले प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन उनके इन सारे क़दमों ने विभिन्न देशों में लाखों-लाखों लोगों को तत्काल युद्धविराम की मांग लेकर, अमरीकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने से नहीं रोका है।
ऐसे युद्ध और विवाद अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के हित में हैं। संयुक्त राज्य अमरीका का सैन्य-औद्योगिक परिसर हथियार बेचकर भारी मुनाफ़ा कमा रहा है।
साम्राज्यवादी फ़िलिस्तीनी लोगों के दिलेर प्रतिरोध संघर्ष को “आतंकवादी हरकत” और इज़रायली राज्य के आतंकवादी हमलों को “आत्मरक्षा” के रूप में बताकर, सच्चाई को झुठला रहे हैं। इज़रायल और उसके साम्राज्यवादी समर्थकों को उनके इस रास्ते पर चलने से रोका जाना चाहिए।
हिन्दोस्तान के लोग फ़िलिस्तीनी लोगों के खि़लाफ़ इज़रायल के जनसंहारक युद्ध का विरोध करते हैं। हिन्दोस्तान की सरकार का तत्काल युद्धविराम के आह्वान वाले संयुक्त राष्ट्र आमसभा के प्रस्ताव से दूर रहने का रुख़ निंदनीय है। हिन्दोस्तानी सरकार को तत्काल बिना शर्त युद्धविराम के पक्ष में स्पष्ट रूप से सामने आना चाहिए। उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकांश सदस्य देशों की इस मांग का समर्थन करना चाहिए कि इज़रायल को क़ब्ज़ा किये हुए फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों से हटकर, 1967 से पहले की सीमाओं पर वापस जाना चाहिए, और फ़िलिस्तीनी लोगों का अपना राज्य होना चाहिए, जिसकी राजधानी पूर्वी येरुशलम में होनी चाहिए!