हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 21 अक्तूबर, 2023
अमरीकी सरकार ने खुलेआम इज़रायल को अपना राजनीतिक और सैनिक समर्थन दिया है। अल अहली अरब अस्पताल पर बमबारी के कुछ घंटों बाद राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़रायल का दौरा किया और यह घोषणा की कि अमरीका अंत तक इज़रायल के साथ खड़ा रहेगा।
अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इज़रायल के तट से भूमध्य सागर को दो विमानवाहक पोत भेजे हैं और वहां अत्याधुनिक हथियार भेजे हैं। जब इज़रायल ने सीरिया के हवाई अड्डों पर बमबारी की तो अमरीका मूकदर्शक बनकर खड़ा रहा। अमरीका अरब देशों पर दबाव डाल रहा है कि उन्हें इज़रायली क़ब्जे़दारों के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनी लोगों के जायज़ संघर्ष को आतंकवाद कहकर उसकी निंदा करनी चाहिए। इसके लिए अमरीका उन देशों को धमकी देने के साथ-साथ अन्य तरीक़ों का भी इस्तेमाल कर रहा है। अरब जगत के लोग और देश ऐसा करने से इनकार कर रहे हैं। इन देशों के लोग अपने फ़िलिस्तीनी भाइयों और बहनों के जायज़ संघर्ष को पूरे दिल से समर्थन दे रहे हैं।
गाज़ा में फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इज़रायल द्वारा जारी युद्ध ने मानवता के ज़मीर को झकझोर कर रख दिया है। यह मानवता के ख़िलाफ़ अपराध है। 17 अक्तूबर को अल अहली अरब अस्पताल पर हुए निर्मम बम विस्फोट में कम से कम 500 डॉक्टरों, नर्सों और मरीजों की मौत हो गई, जिसकी दुनिया भर में निंदा हुई है। 10 दिनों और रातों से अधिक समय से, इज़रायल गाज़ा पर अंधाधुंध बमबारी कर रहा है, घरों, स्कूलों और शरणार्थी शिविरों को निशाना बना रहा है। इन बम विस्फोटों में हजारों पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं, हजारों घायल हुए हैं। इज़रायल ने गाज़ा के बहुत ही छोटे इलाके में रहने वाले 23 लाख लोगों पर अमानवीय नाकाबंदी लगा दी है। लोग जीवन की सबसे बुनियादी ज़रूरतों – भोजन, पानी, बिजली, ईंधन और चिकित्सा सामग्रियों – से वंचित हो गए हैं।
इज़रायल गाज़ा के प्रशासन को चलाने वाले फ़िलिस्तीनी संगठन हमास को नष्ट करने के नाम पर, इस अमानवीय युद्ध को उचित ठहरा रहा है। वह इसे “आत्मरक्षा के अधिकार” के नाम पर उचित ठहरा रहा है। दुनिया जानती है कि लोगों के घरों, स्कूलों और अस्पतालों पर बम बरसाकर और उन्हें भोजन, पानी, बिजली, चिकित्सा सामग्रियों और अन्य आवश्यक चीजों से वंचित करके, उन्हें निश्चित मौत की ओर धकेलना आत्मरक्षा नहीं है। यह जनसंहार है।
फ़िलिस्तीनी लोगों के किये जा रहे जनसंहार के विरोध में दुनिया के तमाम देशों में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। वे एक स्वर में नाकाबंदी और युद्ध को फ़ौरन समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। वे फ़िलिस्तीनी लोगों के एक राष्ट्र बतौर मान्यता प्राप्त करने के अधिकार की लंबे समय से चली आ रही मांग का समर्थन कर रहे हैं।
दुनियाभर के लोग और देश लगातार मांग कर रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्ध को रोकने के लिए तत्काल क़दम उठाए। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा ऐसा करने के हर प्रयास को अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके नाटो सहयोगियों ने बार-बार रोका है।
16 अक्तूबर को रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मानवीय आधार पर तत्काल युद्धविराम का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव को बहरीन, बांग्लादेश, बेलारूस, जिबूती, मिस्र, इरिट्रिया, इंडोनेशिया, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, माली, मलेशिया, मॉरिटेनिया, मालदीव, निकारागुआ, ओमान, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, सूडान, तुर्की, वेनेज़ुएला, यमन और ज़िम्बाब्वे सहित कुछ अन्य देशों ने, रूस के साथ मिलकर, पेश किया था। प्रस्ताव के मसौदे में सभी बंधकों की रिहाई, गाज़ा के लोगों के लिए मदद की उपलब्धि और नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकलने का आह्वान किया गया। अमरीका और सुरक्षा परिषद के तीन अन्य सदस्यों – ब्रिटेन, फ्रांस और जापान – ने प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान किया। सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों – चीन, गैबॉन, मोज़ाम्बिक, रूस और संयुक्त अरब अमीरात ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 6 सदस्य अनुपस्थित रहे। प्रस्ताव पास नहीं हो पाया। संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि पश्चिमी देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने सुरक्षा परिषद द्वारा हिंसा को समाप्त करने की दुनिया की उम्मीदों पर “पानी फेर दिया”।
संयुक्त राष्ट्र संघ में फ़िलिस्तीन के स्थायी पर्यवेक्षक ने सुरक्षा परिषद से “बिना किसी अपवाद के” अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के असूलों से मार्गदर्शित होने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि “यह संदेश न भेजें कि फ़िलिस्तीनी जीवन कोई मायने नहीं रखते। यह कहने की हिम्मत मत कीजिए कि इज़रायल फ़िलिस्तीनियों पर गिराए जा रहे बमों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।” उन्होंने कहा कि गाज़ा में जो हो रहा है वह कोई सैनिक कार्यवाही नहीं है, बल्कि वहां के लोगों के ख़िलाफ़ संपूर्ण हमला और बेक़सूर नागरिकों का जनसंहार है। उन्होंने कहा, “गाज़ा में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। परिवार के सदस्य हर रात गले मिलते हैं, यह सोचकर कि शायद यह आखिरी बार मिलेंगे।”
18 अक्तूबर को, ब्राजील द्वारा पेश किए गए युद्ध पर एक नए प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में मतदान के लिए रखा गया। प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और उनके सहयोगियों के लिए पूर्ण, सुरक्षित और निर्बाध पहुंच की अनुमति देने के लिए मानवीय आधार पर युद्ध में थोड़े समय के लिए ठहराव का आह्वान किया गया। यह युद्ध समाप्त करने का आह्वान नहीं था, बल्कि सिर्फ गाज़ा के निवासियों तक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए कुछ समय का युद्ध विराम आयोजित करने का आह्वान था। इसमें सभी बंधकों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई और अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के अनुसार सभी चिकित्सा कर्मियों और मानवीय सहायता कर्मियों के साथ-साथ, अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं की सुरक्षा का आह्वान किया गया था। 12 देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया और दो अनुपस्थित रहे। इस प्रस्ताव को पारित होने से रोकने के लिए अमरीका ने अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग किया।
संयुक्त राष्ट्र संघ में अमरीका के स्थायी प्रतिनिधि ने मानवीय आधार पर युद्ध में थोड़े समय के लिए ठहराव के आह्वान के इस प्रस्ताव से अपने विरोध को इस तर्क के साथ उचित ठहराया कि यह प्रस्ताव स्पष्ट रूप से इज़रायल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन नहीं करता है। इससे पता चलता है कि अमरीका इज़रायल द्वारा छेड़े गए जनसंहार-युद्ध का पूरा समर्थन करता है। जबकि इसे ‘आत्मरक्षा’ बताया जा रहा है, अमरीका फ़िलिस्तीनी लोगों के एक राष्ट्र बतौर जीने के अधिकार की रक्षा नहीं करता है।
अमरीका ने मीडिया पर अपने वर्चस्व के ज़रिये, झूठे प्रचार का अभियान चलाया है। दुनिया के जो लोग फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़रायल के जनसंहार-युद्ध की निंदा कर रहे हैं, उन्हें यहूदी-विरोधी कहकर उनकी निंदा की जा रही है। झूठे प्रचार के इस अभियान में जानबूझकर इस बात को छिपाया जा रहा है कि अमरीका और अन्य देशों में कई यहूदी लोग इज़रायल के जनसंहार-युद्ध के विरोध में, “मेरे नाम पर नहीं!” का नारा देकर, सड़कों पर उतर रहे हैं और फ़िलिस्तीनियों के अपनी मातृभूमि के अधिकार की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। यह झूठा प्रचार अभियान फ़िलिस्तीनी लोगों को, जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं, समस्या के स्रोत के रूप में बदनाम करता है जबकि इज़रायल को पीड़ित के रूप में दर्शाता है। फ़िलिस्तीनी मुक्ति योद्धाओं पर तरह-तरह के अपराधों का झूठा आरोप लगाया जा रहा है, जो बाद में फ़र्ज़ी साबित हो रहे हैं।
दुनिया के लोगों को यह स्पष्ट समझ में आ रहा है कि फ़िलिस्तीनी लोगों के जनसंहार के लिए अमरीका ज़िम्मेदार है। अमरीका ने पश्चिम एशिया क्षेत्र में अपने साम्राज्यवादी हितों की रक्षा करने और उन्हें आगे बढ़ाने के उद्देश्य से, इज़रायल को पूरी तरह से हथियारों से लैस किया है। इस उद्देश्य से, अमरीका ने 75 साल पहले, इज़रायल राज्य की स्थापना के दिनों से ही, फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इज़रायल के सभी नाजायज़ कारनामों की हिफ़ाज़त करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी वीटो शक्तियों का उपयोग किया है।
अमरीका एक ऐसा रास्ता अपना रहा है जो इज़रायलियों, फ़िलिस्तीनियों और पश्चिम एशिया क्षेत्र के अन्य सभी लोगों के लिए विनाशकारी है। अमरीका के सैन्य औद्योगिक परिसर के एक प्रमुख सदस्य, लॉकहीड मार्टिन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेम्स टैसलेट ने अमरीकी नीति को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया: “इज़रायल को किसी भी सैन्य कार्रवाई से रोकने का कोई फ़ायदा नहीं है। …, कुछ ऐसे संघर्ष होते हैं जिन्हें हथियारों के बल से हल करने की ज़रूरत होती है और हम ये हथियार प्रदान करने के लिए तैयार हैं।”
हिन्दोस्तान के लोग इस युद्ध और गाज़ा की नाकाबंदी को तत्काल समाप्त करने की मांग करने में, दुनिया के अन्य देशों के लोगों के साथ एक हैं। फ़िलिस्तीनी लोगों के अपने अस्तित्व का अधिकार एक अति-जायज़ अधिकार है। इज़रायल, फ़िलिस्तीन और पश्चिम एशिया क्षेत्र के अन्य देशों के लोगों के लिए स्थायी शांति सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीक़ा संयुक्त राष्ट्र संघ के, फ़िलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की हिमायत करने वाले, प्रस्तावों को लागू करना है। इनमें शामिल हैं यह प्रस्ताव कि इज़रायल फ़िलिस्तीनी इलाकों से हटकर 1967 से पहले की अपनी सीमाओं पर वापस चला जाए, एक फ़िलिस्तीनी राज्य का निर्माण किया जाये जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम में हो, क़ब्ज़ा किए गए क्षेत्रों से इज़रायली बस्तियों को हटाया जाए और सभी फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को अपनी मातृभूमि में लौटने का अधिकार दिया जाए।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इज़रायल द्वारा शुरू किये गये जनसंहार-युद्ध को जानबूझकर लम्बा खींचने के ज़िम्मेदार अमरीकी साम्राज्यवादियों की निंदा करती है। अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय स्थापित किये गए सभी असूलों के प्रति अपनी पूरी अवमानना दर्शायी है। अमरीका एक ऐसे रास्ते पर चल रहा है जो दुनिया के लोगों के लिए बड़े-बड़े ख़तरों से भरा हुआ है ।
अपनी मातृभूमि के लिए फ़िलिस्तीनी लोगों का जायज़ संघर्ष ज़िन्दाबाद!