अमरीकी आयातों पर लगने वाले शुल्कों में कटौती के ख़िलाफ़ किसानों का विरोध प्रदर्शन

हिन्दोस्तान में अमरीका से आयात किये जाने वाले कई कृषि और पोल्ट्री उत्पादों पर लगने वाले शुल्कों की दरों में हाल ही में की गई कटौती की घोषणा के बाद, कई किसानों संगठनों ने इसके विरोध में अपनी आवाज़ उठाई है। इन आयात किये जाने वाले उत्पादों में चना, मसूर दाल, सेब, अखरोट, बादाम, चिकन लेग और चिकन लीवर शामिल हैं।

इन वस्तुओं के आयात शुल्क में 10-20 प्रतिशत की कटौती करने का फै़सला, अमरीकी और हिन्दोस्तानी सरकारों के बीच हुए समझौतों के अनुसार है। ये समझौते प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका और राष्ट्रपति बिडेन की हिन्दोस्तान की हालिया यात्राओं के दौरान हुए थे।

बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक श्री बीजू ने कहा कि, “संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने प्रधानमंत्री और वाणिज्य मंत्री को पत्र भेजकर आयात शुल्क में की गई कमी को रोकने की मांग की है। हमने उनसे आयात शुल्क बढ़ाने का आग्रह किया है। लेकिन हमें उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार किसानों का हितों को पीछे छोड़ देगी।”

अमरीका वैश्विक स्तर पर चना और मसूर का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक है। हिन्दोस्तान में दालों की मांग बढ़ रही है और हमारे देश के किसान इस मांग को पूरा करने के लिए, दालों की उपज को बढ़ा रहे हैं। इस संदर्भ में, चना और मसूर के आयात शुल्क को कम करने से इन किसानों की उपज की क़ीमतें कम हो जाएंगी।

सेब के आयात पर शुल्क घटाने से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों के हितों को नुक़सान होगा। जब घरेलू सेब की फ़सल बाज़ार में पहुंचेगी, तभी लाखों पेटी अमरीकी सेब देश में आ जायेंगे। इससे सेब की क़ीमतें कम होने की आशंका है, जिससे उत्पादकों को भारी नुक़सान होगा।

अमरीका के बाद, हिन्दोस्तान अखरोट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। विश्वभर में अखरोट के निर्यात में हिन्दोस्तान का 38 प्रतिषत हिस्सा है। 2017 में अखरोट पर आयात शुल्क में की गई वृद्धि के कारण, अमरीकी आयात में भारी गिरावट आई, जिससे हिन्दोस्तानी अखरोट उत्पादकों को काफ़ी मदद मिली थी। अब आयात शुल्क में कटौती करने से अमरीकी अखरोट के आयात में तेज़ी आने की संभावना है, जिससे घरेलू उत्पादकों की आजीविका पर ख़तरा मंडरा रहा है। यही हाल बादाम का भी है।

चिकन लेग और लीवर पर आयात शुल्क में कटौती करने से इन वस्तुओं के हमारे देश में फेंके जाने की संभावना है, जो अमरीका में लोकप्रिय नहीं हैं। पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रणपाल ढांडा ने द हिंदू अख़बार से बात करते हुए कहा कि उनका संगठन हिन्दोस्तानी सरकार के इस एकतरफ़ा फै़सले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार देश में छोटे और मध्यम पोल्ट्री उत्पादकों की बर्बादी की क़ीमत पर बड़ी अमरीकी कंपनियों को मुनाफ़ा कमाने की इजाज़त दे रही है।

हिन्दोस्तानी सरकार यह कह कर अपने फै़सले को सही ठहराने की कोशिश कर रही है कि कुछ स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने के अमरीकी सरकार के फै़सले के जवाब में जून 2019 में इन उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया गया था। अब दोनों सरकारें उन शुल्कों की वृद्धि को वापस लेने पर सहमत हो गई हैं। इसे व्यापार विवाद का समाधान बताकर एक सकारात्मक क़दम के तौर पर पेश किया जा रहा है। हालांकि, जिन लोगों को इससे लाभ होने वाले हैं वे हिन्दोस्तानी पूंजीवादी कंपनियां हैं जो स्टील और एल्यूमीनियम का निर्यात करती हैं। इससे उन अमरीकी कंपनियों को लाभ होगा, जो पोल्ट्री और कृषि उत्पादों का निर्यात करती हैं। इसमें हारने वाले हमारे देश के किसान और अन्य छोटे पैमाने के उत्पादक हैं।

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