28 फरवरी, 2011 को ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन (ए.आइ.एल.आर.एस.ए.) के झंडे तले हजारों रेलवे इंजन चालकों ने विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन लंबे अरसे की कर्मचारियों की शिकयतों के प्रति रेलवे मंत्रालय की बेदर्द नामंजूरी के रवैये के खिलाफ़ किया गया था।
28 फरवरी, 2011 को ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन (ए.आइ.एल.आर.एस.ए.) के झंडे तले हजारों रेलवे इंजन चालकों ने विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन लंबे अरसे की कर्मचारियों की शिकयतों के प्रति रेलवे मंत्रालय की बेदर्द नामंजूरी के रवैये के खिलाफ़ किया गया था।
11 अक्टूबर को नयी दिल्ली के क्षेत्रीय श्रम आयुक्त ने घोषणा कर दी थी कि रेल चालकों और रेलवे बोर्ड के बीच की समझौता वार्ता असफल हो गयी है। उन्होंने रेलवे बोर्ड के असहयोगी रवैये की गंभीर निंदा की। कानून के अनुसार, समझौता वार्ता के विफल होने के 45 दिनों के अंदर एक सर्व हिंद कचहरी बिठाई जानी चाहिये। संघीय श्रम मंत्री ने रेल चालकों को ऐसा आश्वासन दिया था। परन्तु चार महीने के बाद भी ऐसी कचहरी नहीं नियुक्त की गयी है। रेल इंजन चालकों का बार-बार यही कटु अनुभव रहा है कि प्रबंधन और सरकार अपने वादे नहीं निभाते हैं।
देश के कोने-कोने से और हिन्दोस्तानी रेलवे के हर खंड से इंजन चालक आये थे। ये मज़दूर, उनके खिलाफ़ प्रबंधन की अनुशासनिक कार्यवाईयों की धमकियों का सामना करते हुये, इस रैली में आये थे जो कि इस एक-दिवसीय प्रदर्शन में उनके गुस्से की मुद्रा से जाहिर था।
रेल चालकों की मांगें
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जन सभा के संचालन के लिये एक अध्यक्षमंडली थी जिसमें ए.आइ.एल.आर.एस.ए. के महासचिव, अध्यक्ष और सर्व हिंद उपाध्यक्ष थे तथा पूर्व अध्यक्ष व सलाहकार भी शामिल थे। विशेष निमंत्रण से लोक राज संगठन के एक प्रतिनिधि का भी मंच पर स्वागत किया गया।
प्रात: 11 बजे ए.आइ.एल.आर.एस.ए. के महासचिव, कॉमरेड एम.एन. प्रसाद ने सभा शुरू होने की घोषणा की। नये बजट में रेल मंत्री द्वारा नयी रेलगाड़ियां शुरू करने के प्रस्ताव की उन्होंने धज्जियां उड़ा दी। उन्होंने कहा कि न तो नये डब्बे हैं और न ही नये चालक नियुक्त किये गये हैं पर नयी रेलगाड़ियों की घोषणा कर दी गयी है। होगा यही कि पुरानी रेलगाड़ियों की देखरेख के खर्चों में कटौती की जायेगी और अलग-अलग दिशाओं में नयी रेलगाड़ियां जायेंगी। रेल चालकों पर काम का भार बढ़ाया जायेगा। इसका सीधा नतीजा होगा – दुर्घटनाओं में वृध्दि। ऐसा ही भूतकाल में भी किया गया है। न रेलवे के अधिकारी और न ही रेल मंत्रालय सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान देना चाहते हैं।
उन्होंने ध्यान दिलाया कि रेल मंत्री ने कई नये गलियारे और नयी योजनाओं की घोषणायें की थी। परन्तु रेलवे के पास इन योजनाओं के लिये धन नहीं है, और इन्हें, सार्वजनिक-निजी सांझेदारी (पी.पी.पी.) की परियोजनाओं के रूप में, चलाने के लिये निजी पूंजीपतियों को न्यौता दिया जा रहा है। इसका मतलब निकलता है – रेलवे का निजीकरण और मज़दूरों का बढ़ता शोषण।
उन्होंने रेलवे द्वारा रेल मज़दूरों की समस्याओं पर गठित पांच समितियों पर ध्यान दिलाया और कहा कि अभी तक मज़दूरों की परिस्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
उन्होंने याद दिलाया कि 1974 व 1981 में रेलवे चालकों ने दिखाया था कि वे रेलवे के प्रचालन को ठप्प कर सकते हैं और, अगर उन्हें मजबूर किया गया तो, उन्हें फिर से ऐसा करना पडेग़ा। उन्होंने मज़दूरों को प्रबल बनने और संघर्ष के लिये तैयारी का आह्वान दिया। हम कोई हजार रुपये के लिये नहीं लड़ रहे हैं। हम अपने सम्मान के लिये लड़ रहे हैं। हम धैर्य रखते आये हैं पर इस धैर्य को कमजोरी की निशानी नहीं समझा जाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि रेल मंत्री ने अपने पिछले बजट में 1000 कि.मी. नयी पटरियां बिछाने का आश्वासन दिया था। परन्तु इसके पूरे होने का कोई संकेत नहीं है। एक के बाद एक सरकारों ने नयी पटरियां बिछाने पर कोई ध्यान नहीं दिया है। 1947 में देश भर में 53,000 कि.मी. पटरियां थीं। 63 साल के बाद, कुल मिला कर सिर्फ 10,000 कि.मी. नयी पटरियां बिछाई गयी हैं। नतीजा यह है कि लोगों के बड़े हिस्सों को रेलवे की सुविधा आज भी उपलब्ध नहीं है।
उन्होंने पूरे देश के मज़दूरों द्वारा एकजुट संघर्ष को सलाम किया जैसा कि 23 फरवरी, 2011 के संसद पर सर्व हिंद विरोध मार्च से जाहिर था। देश के मज़दूरों और इंजन चालकों की एक ही जैसी चिंतायें हैं।
लोक राज संगठन के प्रतिनिधि ने बहादुर रेल इंजन चालकों को सलाम किया जो अनेक मुश्किलों का सामना करते हुये दिल्ली आये थे। उन्होंने ध्यान दिलाया कि कुछ ही दिनों पहले 23 फरवरी को देश के कोने-कोने से लाखों मज़दूर यहां आये थे। यह दिखाता है कि मज़दूरों की मनोदशा एक बदल लाने की है। वे कुछ उम्मीद के साथ यहां आये थे; परन्तु उन्हें निराशा के साथ वापस जाना पड़ा। उन्होंने ध्यान दिलाया कि अपने देश की सत्ता मज़दूरों और किसानों के हाथों में नहीं है बल्कि सबसे बड़े पूंजीपति घरानों के हाथों में है। अर्थव्यवस्था की चालक शक्ति देश की संपत्तिा पैदा करने वालों के कल्याण में नहीं है बल्कि निजी मुनाफे को अधिकतम बनाना है। पूरी व्यवस्था का आधार मानव श्रम की लूट है और जो इस लूट का विरोध करते हैं, पूरी की पूरी राज्य व्यवस्था उनके खिलाफ तैनात की जाती है। पिछले दो दशकों में जो भी पार्टी या गठबंधन सत्ता में आया है, उसने निजीकरण और उदारीकरण के जरिये भूमंडलीकरण का ही कार्यक्रम चलाया है। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह की सरकार न तो बेरोजगारी, मंहगाई, निरक्षरता या कुपोषण की समस्याओं को हल करना चाहती है और न ही इसके लिये सक्षम है। इन समस्याओं को हल करने के लिये मज़दूरों, किसानों और अन्य दबे-कुचले और शोषित लोगों को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेनी होगी। वक्त आ गया है कि हिन्दोस्तान का मज़दूर वर्ग, संगठित हो कर, शोषण की इस आदमखोर व्यवस्था को खत्म करे। उन्होंने इंजन चालकों सहित हिन्दोस्तान के रेलवे मज़दूरों को आह्वान दिया कि मज़दूर वर्ग के ऐतिहासिक लक्ष्य को पूरा करने के लिये एक अग्रिम भूमिका निभायें।
दिनभर देश के विभिन्न भागों से आये इंजन चालकों के प्रतिनिधियों ने रैली को संबोधित किया। मज़दूरों का मनोभाव एक मज़दूर के भावपूर्ण वर्णन से झलकता है जब उसने कहा कि 1857 के ग़दर के बाद अंग्रेजों को भगाने के लिये 90 साल लगे थे। अब 60 साल के बाद हमें वर्तमान मज़दूर-विरोधी राज को खत्म करने की तैयारी करनी होगी।
चालकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने रेलवे मंत्रालय को अपनी मांगों का निवेदन दिया। रैली ने रेल मंत्री के रुख की निंदा की जिनके पास मज़दूरों से मिलने के लिये समय नहीं था। उन्होंने घोषणा की कि अगर उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है तो वे एक देशव्यापी आंदोलन करेंगे जिससे रेलवे ठप्प हो सकती है। शाम को 5 बजे ए.आइ.एल.आर.एस.ए. के अध्यक्ष, कॉमरेड एल. मोनी के व्यक्तव्य, जिसमें उन्होंने गंभीर संघर्ष की तैयारी का बुलावा दिया, इसके साथ रैली का समापन हुआ।