हरियाणा में आशा कर्मियों का ज़ोरदार आंदोलन

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

हरियाणा में आशा कर्मी अपनी न्यायसंगत मांगों को बुलंद करते हुए, 8 अगस्त, 2023 से हड़ताल पर हैं। इस संघर्ष की अगुवाई आशा वर्कर्स यूनियन कर रही है।

Asha_worker_Strick_Haryanaपूरे हरियाणा में जिला मुख्यालयों, तहसीलों तथा शहरों में आंदोलित आशा कर्मी प्रदर्शन कर रही हैं, जुलूसें निकाल रही हैं, धरने दे रही हैं, इत्यादि। उन्होंने मुख्यमंत्री, अन्य मंत्रियों व विधायकों को अपनी मांगों का ज्ञापन दिया है।

2018 से आशा कर्मियों के मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। महंगाई दुगुनी से ज्यादा हो चुकी है। काम तीन गुना बढ़ा दिए गए हैं। इसके अलावा, आशा कर्मियों पर सरकार रोज़ नए-नए काम आनलाइन करने के लिए थोप रही है। स्वास्थ्य केन्द्रों व जिला अस्पतालों में इन आशा कर्मियों के लिए कोई स्वास्थ्य सुविधा मुहैया नहीं करायी जाती है। इन्हीं कारणों से, लगभग 20,000 आशा कर्मी हड़ताल पर हैं।

हरियाणा के अलग-अलग कर्मचारी संगठन – क्रेच कर्मियों की यूनियन, भवन निर्माण कामगार यूनियन, मनरेगा श्रमिक यूनियन, वन मज़दूर यूनियन, ग्रामीण सफ़ाई कर्मचारी यूनियन, भट्ठा मज़दूर यूनियन और मिड-डे मील वर्कर यूनियन, आदि आशा कर्मियों के संघर्षों का पूरा-पूरा समर्थन कर रहे हैं।

आशा कर्मियों की मुख्य मांगें हैं कि उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाए और न्यूनतम 26,000 रुपये मासिक वेतन दिया जाए।

आशा कर्मियों की जायज़ मांगों को लेकर चल रहे आंदोलन को बदनाम करने के लिए हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री ने बयान दिया कि हरियाणा के आशा कर्मियों को पहले से ही देश में सबसे अधिक भत्ता दिया जा रहा है। इस पर आशा कर्मियों का कहना है कि पुदुचेरी, मध्य प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल में उनके सहकर्मियों को उनसे अधिक और सुनिश्चित वेतन मिलता है।

हरियाणा में लगभग 7,000 गांव, कालोनी तथा शहर हैं, जिनमें 20,350 आशा कर्मी काम करते हैं। 1,000 की आबादी पर एक आशा कर्मी नियुक्त है। आशा कर्मियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नियुक्त किया जाता है।

आशा कर्मियों को अनेक ज़िम्मेदारियां दी जाती हैं। उन्हें टीकाकरण करना पड़ता है, बच्चे के जन्म से पूर्व व पश्चात की देखभाल के लिये महिलाओं और बच्चों का पंजीकरण करने में आंगनवाड़ी कर्मियों की मदद करनी पड़ती है। आगे उसे लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केन्द्र/उपकेन्द्र में भेजना पड़ता है। उसे जवान लड़कियों के पोषण कार्यक्रम में आंगनवाड़ी कर्मियों की मदद करनी पड़ती है, गर्भ निरोधक बांटना पड़ता है, बच्चों को जन्म देने के लिये महिलाओं को तैयार करना तथा उन्हें अस्पताल जाने को प्रेरित करना व ले जाना पड़ता है, स्तन पान और शिशु के सही भोजन का प्रचार करना होता है, गांव में सभी जन्मों और मौतों का पंजीकरण सुनिश्चित करना पड़ता है।

आशा कर्मियों से इन सारी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने की उम्मीद की जाती है। लेकिन सरकार आशा कर्मियों को एक सरकारी मज़दूर की मान्यता देने को तैयार नहीं है। सरकार आशा कर्मियों को सुनिश्चित न्यूनतम वेतम भी मुहैया कराने को तैयार नहीं है। इतने संघर्षों के बावजूद, आज भी देश के कई स्थानों पर आशा कर्मियों को 6000-10,000 रुपये प्रति माह के मानदेय पर काम करने को मजबूर किया जा रहा है। यही वजह है कि लंबे समय से देश के विभिन्न राज्यों में काम करने वाली आशा कर्मियों सहित अन्य स्कीम कर्मी, सरकारी मज़दूर बतौर मान्यता दिए जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

आशा वर्कर्स यूनियन ने हड़ताल की अवधि को 11 सितम्बर तक बढ़ा दिया है। आंदोलित आशा कर्मी 10 सितंबर को रोहतक में सम्मेलन करने जा रही हैं, जिसमें आंदोलन की समीक्षा की जाएगी और आगे की रणनीति तय की जायेगी। वे अपनी हड़ताल के समर्थन में सरपंच, पंच, जिला परिषद और ब्लाक समितियों के प्रतिनिधियों, आदि सभी को आमंत्रित कर रही हैं।

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