हमारे पाठकों से
लोगों को हमारे असली दुश्मनों के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने के लिए लामबंध करें

संपादक महोदय,

मज़दूर एकता लहर में आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित लेख ‘शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति के बिना आज़ादी अधूरी हैं’ को मैंने पढ़ा।

लेख को पढ़ने के बाद मेरे मन में पहला सवाल आता है कि क्या, हमें सच में आज़ादी मिली हैं? तो इसका जवाब है कि ‘नहीं’। हम आज भी गुलामी की ज़िन्दगी जी रहे हैं। इस देश में ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर उल्टा हमें ही दोषी ठहराया जाता है। देशद्रोह के नाम पर हमारे ही लोगों पर तरह-तरह के क़ानून लगाकर हमें जेलों में बंद कर दिया जाता है। ऐसे में हम कहां से आज़ाद हुए!

इसमें मणिपुर में हो रही हिंसा का जिक्र किया गया है। देश के हुक्मरान पूंजीपति वर्ग ने अपने खुदगर्ज़ हितों के चलते कई सालों से एक साथ रह रही दो जातियों को आपस में लड़ा दिया है। हुक्मरान पूंजीपति वर्ग मणिपुर को लूटना चाहता है। जबकि मणिपुर केवल वहां के रहने वाले लोगों का है। हम ऐसे देश में रहते हैं, जहां महिलाओं के साथ रोज़ बलात्कार होते हैं। मणिपुर में इंसाफ मांगने के लिए औरतों को नंगा घुमाया जा रहा है। यहां एक तरफ़ औरतों की सुरक्षा के नाम पर क़ानून बनाने का ढोंग किया जाता है तो दूसरी तरफ़ महिलाओं के शोषण और अत्याचार करने वालों को पूरी छूट दी जाती है, उन्हें फलने-फूलने दिया जाता है।

अंग्रेजों से देश की आज़ादी के लिए शहीद भगत और अन्य क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान किया है। उससे पहले 1857 में अंग्रेजों को भगाने के लिए सभी देशवासियों ने मिलकर लड़ा था। उन वीरों ने नारा दिया कि ‘हम हैं इसके मालिक, हिन्दोस्तान हमारा।’ जिसका मतलब है, यह देश सिर्फ़ और सिर्फ़ मज़दूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों, यानि जनता का है। इसका कोई एक मालिक नहीं हो सकता है। आज़ादी के बाद जनता के साथ उल्टा हुआ है। कुछ बड़े पूंजीपति घराने देश के मालिक बन बैठे हैं। हम कितने ही सालों से यही चीज़ देखते आ रहे हैं। देश की जनता ग़रीब होती जा रही है। पूंजीपति घराने अमीर व और अमीर होते जा रहे हैं।

सही मायने में आज भी हम गुलाम हैं। बस फ़र्क़ यह है कि पहले हम अग्रंजों के गुलाम थे और अब बड़े-बड़े देशी-विदेशी पूंजीपतियों के गुलाम हैं। हम जनता आपस में एकजुट होकर पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ क़दम न उठाएं, इसलिए हुक्मरान हमें आपस में लड़ाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। फूट डालो और राज करो – यही इनकी नीति है। रंग के आधार पर, नस्ल के आधार पर, लिंग के आधार पर, धर्म व जाति के आधार पर लड़वाते हैं। दंगा भड़काते हैं। इन दंगों और हिंसा में न जाने कितने ही मासूम और बेकसूर लोग मारे जाते हैं।

यह वक्त की ज़रूरत है कि हम सब एकजुट हों। देश में ग़लत नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं। लोगों को लामबंध करें कि वे देश के असली दुश्मनों के ख़िलाफ़ उठ खड़े हों। असली दुश्मन को पहचानने की ज़रूरत है। हमें इस देश की सत्ता को अपने हाथों में लेना होगा। तभी सही मायनों में हमें आज़ादी प्राप्त होगी।

शोभना, दिल्ली

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *