25 अगस्त को मिजोरम की विधानसभा ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 का विरोध करते हुए, एक आधिकारिक प्रस्ताव अपनाया। संसद के किसी भी सदन में बिना किसी चर्चा के 4 अगस्त को पारित होने के बाद इस विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति मिल गई। राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद, यह एक अधिनियम बन जाएगा।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, मिजोरम के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा विधेयक के विरोध में पेश किए गए प्रस्ताव पर विधानसभा में विस्तार से चर्चा हुई। केवल एक सदस्य – एक भाजपा विधायक – ने असहमति जताई लेकिन अन्य सभी ने इसका समर्थन किया।
प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए मंत्री ने “मिजोरम के लोगों के अधिकारों और हितों की रक्षा करने की आवश्यकता” पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार शुरू से ही संशोधित विधेयक पर अपना विरोध जताती रही है। इसने कई अवसरों पर केंद्र सरकार और संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) को पत्रों के ज़रिए अपनी चिंताओं से अवगत कराया था। हालांकि, 1,309 विरोध पत्र और सुझाव मिलने के बावजूद भी जेपीसी विधेयक को मंजूरी देने के लिए आगे बढ़ी और यह संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया।
मिजोरम हिस्दोस्तान के उत्तर पूर्व में स्थित राज्यों में से एक है। जिसकी एक लंबी सीमा पूर्व में म्यांमार के साथ और पश्चिम में बांग्लादेश के साथ लगती है। वन संरक्षण अधिनियम (1980) में किये गये नए संशोधन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के 100 किलोमीटर की दूरी के अंदर तक स्थित सारी वन भूमि अधिनियम के दायरे से बाहर हो गई है। ऐसी वन भूमि का उपयोग केंद्र सरकार केवल राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर रणनीतिक परियोजनाओं के लिए कर सकती है। ऐसी परियोजनाओं के परिणामस्वरूप विस्थापित होने वाले प्रभावित लोगों की सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। विधेयक के विरोध में प्रस्ताव पेश करते हुए, मंत्री ने राज्य के वन क्षेत्र के लिए होने वाले ख़तरे पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संशोधित वन संरक्षण अधिनियम मिजोरम के वन क्षेत्र को “पूरी तरह से ख़त्म” कर सकता है।
मिजोरम विधानसभा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि “इस प्रावधान पर कड़ी आपत्ति है और यह स्वीकार्य नहीं है।” इस क्षेत्र के अन्य राज्यों जैसे कि नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम ने भी 100 किलोमीटर की छूट के प्रावधान का विरोध किया है।