पांच सदस्यीय देशों वाले ब्रिक्स (बी.आर.आई.सी.एस.) समूह के नेताओं का 15वां शिखर सम्मेलन 22 से 24 अगस्त, 2023 के दौरान सैंडटन, दक्षिण अफ्रीका में हुआ। ब्रिक्स 5 देशों – ब्राजील, रूस, हिन्दोस्तान, चीन और दक्षिण अफ्रीका – का एक समूह है। ये पांच देश दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से हैं। वे वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 26 प्रतिशत हिस्सा (डॉलर के साथ देश की मुद्रा के विनिमय दर के अनुसार) उत्पन्न करते हैं। क्रय शक्ति समता (पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी) के नज़रिये से, इन पांच देशों की संयुक्त जीडीपी जी-7 देशों (अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान, इटली और कनाडा) से अधिक है। बैठक में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, हिन्दोस्तान के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भाग लिया।
पांच ब्रिक्स देश खुद को “उभरते बाज़ार और विकासशील देश“ (ईएमडीसी) कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक जैसे वैश्विक आर्थिक मंचों पर अपने लिए बेहतर सौदेबाजी करने के उद्देश्य से, ब्रिक्स देश पहली बार 2009 और 2010 में एक साथ आए थे। इन वैश्विक आर्थिक मंचों पर अमरीका और उसके जी-7 सहयोगियों का वर्चस्व है। ब्रिक्स देशों की शिकायत है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनके बढ़ते योगदान के बावजूद, इन वैश्विक वित्तीय संस्थानों में उनकी भूमिका सीमित है। वे इन संस्थानों में अपनी भूमिका बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
2015 में, ब्रिक्स देशों ने एक न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) की स्थापना की थी, जिसके माध्यम से वे विभिन्न देशों में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को धन देंगे। एनडीबी इन पांच देशों के नियंत्रण में है। एनडीबी की परिकल्पना अमरीका द्वारा नियंत्रित वैश्विक वित्तीय संस्थानों का मुक़ाबला करने के इरादे के साथ की गई है।
एक और मुद्दा जिस पर ब्रिक्स देश एकजुट हुए हैं, वह यह मांग है कि अमरीका और अन्य विकसित पूंजीवादी देश ग्लोबल वार्मिंग (पृथ्वी का तापमान बढ़ना) और जलवायु संकट के लिए ज़िम्मेदारी का प्रमुख हिस्सा स्वीकार करें। हरित ऊर्जा और विभिन्न तकनीकी विकास के माध्यम से पर्यावरण के प्रदूषण को ख़त्म करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने का बोझ ब्रिक्स देशों या अन्य कम विकसित पूंजीवादी देशों पर नहीं डाला जा सकता है, जो हाल के वर्षों में ही औद्योगीकरण करना शुरू कर रहे हैं। अमरीका और अन्य विकसित पूंजीवादी देशों, जिन्होंने ऐतिहासिक तौर पर ग्लोबल वार्मिंग में योगदान दिया है, उनको इसकी क़ीमत चुकानी होगी।
चिंता का हालिया मुद्दा अमरीका और उसके सहयोगियों द्वारा रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों का एकतरफ़ा इस्तेमाल है। दुनिया के लोगों और देशों ने बड़ी चिंता के साथ देखा है कि कैसे अमरीका ने विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने के लिए, इस बात का दुरुपयोग किया है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापर में डॉलर को रिज़र्व करेंसी (यानि प्रत्येक देश की केन्द्रीय तिजौरी में डॉलर का अनिवार्य भण्डार होना) माना जाता है। कई देश अमरीकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं। ब्रिक्स देशों ने व्यक्तिगत रूप से अमरीकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश की है, जबकि उन्होंने अपनी-अपनी मुद्राओं में दुतरफा व्यापार बढ़ाया है।
इन परिस्थितियों में ब्रिक्स के 15वें शिखर सम्मेलन की कार्यवाहियों में कई अन्य देशों ने काफ़ी दिलचस्पी दिखाई। शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों के 50 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया। 40 से अधिक देशों ने समूह में शामिल होने में रुचि दिखाई है और कम से कम 22 देशों ने सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से आवेदन किया है। यह दिखाता है कि विभिन्न देश एक ऐसे समूह में शामिल होने की व्यापक रुचि रखते हैं, जो उनके हितों के लिए फ़ायदेमंद होगा।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के आपस-बीच तथा दूसरे देशों के साथ, अपनी-अपनी मुद्राओं में व्यापार बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
शिखर सम्मेलन में यह घोषणा की गयी कि 1 जनवरी, 2024 से 6 देशों को ब्रिक्स के सदस्य के रूप में शामिल किया जाने वाला है। ये अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात हैं। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस विस्तारित समूह में दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश में से चार (सऊदी अरब, रूस, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात) तथा दुनिया के दो सबसे बड़े तेल आयातक देश (चीन और हिन्दोस्तान) सदस्य हैं।
शिखर सम्मेलन का विषय था “ब्रिक्स और अफ्रीका : पारस्परिक त्वरित विकास, टिकाऊ विकास और समावेशी बहुपक्षवाद के लिए साझेदारी“। इस प्रकार, चीन, हिन्दोस्तान और रूस, जिनका अफ्रीका के विभिन्न देशों में पर्याप्त निवेश है, ने इस समूह को अमरीका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के विकल्प के रूप में पेश किया। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ने घोषणा की कि ये पांच सदस्य देश, जो सभी जी-20 के सदस्य हैं, संयुक्त रूप से जी-20 में अफ्रीकी संघ (अफ्रीकन यूनियन) की सदस्यता के लिए ज़ोर देंगे।
एक समूह के बतौर, ब्रिक्स देश एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के कम विकसित पूंजीवादी देशों, जिन्हें ’ग्लोबल साउथ’ के नाम से जाना जाता है, के नेता के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं। ख़ास तौर पर, अमरीका की प्रधानता वाले जी-20 समूह में हिन्दोस्तान कम विकसित देशों के प्रवक्ता के रूप में खुद को पेश करके, उसमें अपनी जगह बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की घोषणा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगले दो वर्षों में, जब ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका क्रम से जी-20 की अध्यक्षता करेंगे, तो वे जी-20 मंच पर कम विकसित देशों की समस्याओं को उठाना जारी रखेंगे। यह घोषणा, कि ब्रिक्स देश इस साल सितंबर में नई दिल्ली में होने वाले जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के एजेंडे में अफ्रीकी संघ की सदस्यता को रखेंगे, उसे इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए।
अगर हम आज दुनिया की गतिविधियों का विश्लेषण करें, तो अमरीका जिन-जिन देशों को अपने एकध्रुवीय दुनिया स्थापित करने के सपने को हासिल करने के रास्ते में रुकावट मानता है, उन देशों को अलग-थलग करके, उन पर हमला करके अपना वर्चस्व स्थापित करने और मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। अमरीका संयुक्त राष्ट्र संघ के असूलों का घोर हनन कर रहा है और अपने रास्ते में रुकावट बनने वाले देशों को कमजोर करने या नष्ट करने के लिए सैनिक हमले व आर्थिक प्रतिबंध जैसी एकतरफा कार्यवाहियां कर रहा है। दूसरी ओर, रूस, चीन और कई अन्य देशों के हुक्मरान वर्ग बहु-ध्रुवीय दुनिया में अपने कच्चे माल के स्रोतों, बाज़ारों और प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं।
इन हालतों में, हिन्दोस्तान का हुक्मरान वर्ग अपने हितों को बढ़ावा देने के लिए दांवपेच कर रहा है। अमरीका के साथ रणनैतिक संबंध बनाने के साथ-साथ, वह ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से अपने कच्चे माल के स्रोतों, बाज़ारों और प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है।