टोरेंट पावर लिमिटेड के ख़िलाफ़ भिवंडी के लोगों का जुझारू संघर्ष

मुंबई के क़रीबी शहर भिवंडी के सैकड़ों लोग टोरेंट पावर से “आज़ादी” की मांग करते हुए सड़कों पर उतरे। इससे पहले 21 जुलाई को भी भिवंडी के दस हजार से ज्यादा लोगों ने “टोरेंट हटाओ भिवंडी बचाओ”, के नारे के तहत प्रदर्शन किया था। दोनों जुझारू कार्रवाइयों में भिवंडी शहर तथा पड़ोसी गांवों से बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं और युवाओं ने भाग लिया। वे सभी लोग “टोरेंट अत्याचार विरोधी जन संघर्ष समिति” के बैनर तले एकजुट हुए हैं।

Bhiwandi photoभिवंडी मुंबई के नजदीक का एक शहर है, जहां मुख्य रूप से मज़दूर वर्ग और आदिवासी आबादी रहती है। भिवंडी के मेहनती लोगों के लिए पावरलूम, रेडीमेड कपड़ा, विशाल भंडारण और वितरण गोदाम, परिवहन और खेती, आजीविका के मुख्य स्रोत हैं। हजारों लोगों के विरोध के बावजूद, तत्कालीन कांग्रेस के अगुवाई वाली महाराष्ट्र की सरकार ने 2007 में भिवंडी में बिजली का वितरण टोरेंट पावर लिमिटेड को सौंप दिया था। तभी से भिवंडीवासी टोरेंट पावर से नाराज़गी जताते हुए, इसे हटाने की मांग कर रहे हैं। परन्तु, कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, भाजपा और शिवसेना सहित सभी पूंजीवादी पार्टियों ने उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है।

पिछले कुछ महीनों में स्थिति चरम बिंदु पर पहुंच गई है। टोरेंट पावर के अधिग्रहण के बाद से बिजली के बिलों में हुई भारी बढ़ोतरी से लोग नाराज़ हैं। पावरलूम और कपड़ा उद्योग की दुर्दशा के लिए बिजली की ऊंची क़ीमत को मुख्य कारणों में से एक बताया जाता है। टोरेंट पावर के अधिकारियों के मनमाने व्यवहार, बिजली के ख़राब मीटरों के तेज़ चलने और उपभाक्ताओं के बिल हजारों या लाखों में आने, निवासियों के ख़िलाफ़ बिजली चोरी के झूठे मामले दर्ज़ करने, आदि से लोग नाराज़ हैं।

Bhiwandi photoबैठकों में कई महिला-पुरुष वक्ताओं ने घोषणा की कि यदि टोरेंट को भिवंडी से बाहर नहीं किया गया तो और भी आंदोलन किये जायेंगें तथा किसी भी विधायक, सांसद, नगरसेवक, आदि को शहर में घुसने नहीं दिया जायेगा। इससे साफ़ पता चलता है कि वे पूंजीपतियों की राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की मीठी-मीठी बातों से मूर्ख बनने को तैयार नहीं हैं। लोगों के इस रुख़ ने पूंजीपतियों की विभिन्न पार्टियों के स्थानीय नेताओं को टोरेंट पावर के ख़िलाफ़ आंदोलन में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया है।

कामगार एकता कमेटी, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन, भिवंडी जन संघर्ष समिति, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर ने भी इस संघर्ष का समर्थन किया है। इन संगठनों द्वारा निकाले गए एक संयुक्त पर्चे में उन्होंने भिवंडी के लोगों से आग्रह किया है कि वे मांग करें कि सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों को वही करना चाहिए जो लोग कह रहे हैं और इसलिए टोरेंट पावर को भिवंडी से बाहर फेंक दें। पर्चे में भिवंडी के लोगों को धर्म और जाति के आधार पर टोरेंट पावर के ख़िलाफ़ लोगों की एकता को तोड़ने के प्रयासों से सावधान रहने के लिए भी आगाह किया गया।

15 अगस्त के कार्यक्रम में बहुत स्पष्ट शब्दों में मांग उठाई गई कि “महाराष्ट्र की राज्य सरकार को तुरंत टोरेंट पावर से बिजली वितरण, बिल संग्रह आदि का नियंत्रण छीन लेना चाहिए और इसे महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड को सौंप देना चाहिए।”

भिवंडी के आंदोलन से प्रेरित होकर, ठाणे शहर के उपनगर कलवा के लोगों ने भी कुछ बैठकें कीं, जहां नागरिकों ने टोरेंट पावर के ख़िलाफ़ अपना गुस्सा व्यक्त किया, उन्हीं कारणों से जो भिवंडी के लोगों ने उठाए थे। 2019 के मध्य से मुंब्रा, कलवा, दिवा (मुंबई के नजदीक के उपनगर) आदि के लोग टोरेंट पावर को एक साल से अधिक समय तक रोकने में सफल रहे हैं। कामगार एकता कमेटी ने कई अन्य स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर उस संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई थी। परन्तु, कोविड लॉकडाउन की स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए, अचानक अप्रैल 2020 में टोरेंट पावर को इन क्षेत्रों में बिजली वितरण का काम सौंप दिया गया। अब टोरेंट पावर के ख़िलाफ़ लोग संगठित होने लगे हैं।

2014 के बाद से, देशभर के बिजली क्षेत्र के कर्मचारी बिजली संशोधन विधेयक को पारित करने के केंद्र सरकार के कई प्रयासों को रोकने में क़ामयाब रहे हैं। यह बिजली क्षेत्र के मज़दूरों के विभिन्न वर्गों में बहुत मजबूत और लड़ाकू एकता तथा मज़दूर वर्ग के अन्य संगठनों और बड़े पैमाने पर लोगों के समर्थन के कारण संभव हुआ है। इस विधेयक के पारित होने से वितरण के सबसे लाभदायक हिस्सों का निजीकरण हो जाएगा और उपभोक्ताओं के बिलों में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी।

महाराष्ट्र के बिजली क्षेत्र के मज़दूरों के जुझारू और एकजुट प्रतिरोध ने भी महाराष्ट्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं और कम से कम अस्थायी रूप से महाराष्ट्र के 16 प्रमुख शहरों के बिजली वितरण को सौंपने के घोषित इरादे को रोक दिया है।

भिवंडी, कलवा आदि के लोगों द्वारा जो संघर्ष शुरू किया गया है वह निश्चित रूप से बिजली उपभाक्ताओं को इसी तरह के एकजुट कार्यों के लिए प्रेरित करेगा।

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