देश के मजदूरों की विशाल रैली

23 फरवरी, 2011 को देश के सभी राज्यों और अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों से मजदूरों ने एकजुट होकर, देश की राजधानी दिल्ली में संसद पर प्रदर्शन किया। संसद पर यह प्रदर्शन सरकार, संसद और पूरे देश की जनता को यह बताने के लिये किया गया, कि देश के मजदूरों ने, चाहे किसी भी पार्टी या ट्रेड यूनियन के हों, एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने का फैसला किया है। मजदूरों ने अपने प्रदर्शन के जरिये यह

23 फरवरी, 2011 को देश के सभी राज्यों और अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों से मजदूरों ने एकजुट होकर, देश की राजधानी दिल्ली में संसद पर प्रदर्शन किया। संसद पर यह प्रदर्शन सरकार, संसद और पूरे देश की जनता को यह बताने के लिये किया गया, कि देश के मजदूरों ने, चाहे किसी भी पार्टी या ट्रेड यूनियन के हों, एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने का फैसला किया है। मजदूरों ने अपने प्रदर्शन के जरिये यह स्पष्ट कर दिया कि वे संप्रग सरकार द्वारा, पूंजीपतियों के हित में, मजदूरों की रोजी-रोटी और अधिकारों पर हमलों का डटकर विरोध करेंगे।

23 फरवरी की सुबह से ही, अलग-अलग दिशाओं से लाखों-लाखों मजदूर संसद मार्ग पर रैली के स्थान की ओर प्रदर्शन करने लगे। जो मजदूर एक-दो दिन पहले आये हुये थे, वे रामलीला मैदान, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, राजघाट और दूसरे रहने के स्थानों से रैली के स्थान पर आये। रैली के दिन ही पहुंचने वाले शहर के रेलवे स्टेशनों और बस डीपो से रैली में आये।

मजदूर एकता कमेटी के मजदूरों के एक जुझारू दस्ते ने पूरे जोश के साथ रैली में भाग लिया। ये मजदूर महाराष्ट्र, तामिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दूसरे इलाकों से आये। कामगार एकता चलवल और अखिल भारतीय मजदूर परिषद के मजदूरों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। कृषि मजदूरों, बीड़ी मजदूरों, बैंक कर्मचारियों और बीमा कर्मचारियों तथा अन्य कर्मचारियों के फेडरेशनों, परिवहन मजदूरों, बिजली बोर्ड के मजदूरों, रक्षा क्षेत्र के मजदूरों, सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूरों, कोयला मजदूरों, निर्माण मजदूरों, शिक्षकों, मिड डे मील के मजदूरों, आंगनवाड़ी मजदूरों, आशा मजदूरों आदि ने बड़ी संख्या में, अपने बैनरों सहित रैली में हिस्सा लिया।

पूरे शहर और गुड़गांव, नोएडा, फरीदाबाद, जैसे आस-पास के औद्योगिक क्षेत्रों में चारों ओर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, टे्रड यूनियनों और विभिन्ना फेडरेशनों के इश्तेहार लगे हुये थे, जिनमें 23 फरवरी की रैली को सफल बनाने का आह्वान दिया गया था। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के इश्तेहार में यह ऐलान किया गया कि ''पूंजीपति वर्ग का भ्रष्ट और परजीवी शासन मुर्दाबाद!'', ''देश की दौलत पैदा करने वालो, देश के मालिक बनों!'' यह नारा सभी यूनियनों और पार्टियों के जुझारू मजदूरों में बहुत लोकप्रिय बन गया।

मजदूरों ने प्रदर्शन करते हुये, ऊंची आवाज़ में नारे लगाये, जैसे कि ''सार्वजनिक संसाधनों और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण बंद करो! आधुनिक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग को लेकर आगे बढ़ें! खाद्य पदार्थों और जरूरी वस्तुओं को उचित दाम पर सभी को उपलब्ध कराओ! सबके लिए रोज़गार सुनिश्चित करो! लोगों के अधिकारों पर हमले बंद करो! महंगाई का एक इलाज, मजदूर और किसान का राज! देश की दौलत पैदा करने वालों, बनो देश के मालिक! भ्रष्ट और परजीवी पूंजीवादी राज्य मुर्दाबाद! देश की नीतियां मजदूर-मेहनतकश के हित में हो, इजारेदार पूंजीपतियों के हित में नहीं! शोषण, लूट और दमन का राज नहीं चलेगा, नहीं चलेगा! खत्म करें यह ज़ालिम राज, लायें मजदूर-किसान का राज! संगठित हो, हुक्मरान बनो और समाज को बदल डालो! यह लोकतंत्र नहीं, इजारेदार पूंजी तंत्र है! सट्टेबाजी, मुनाफाखोरी, वायदाबाजारी बंद करो! काला धन जप्त करो और जन कल्याण पर खर्च करो!''

देश के जुझारू मजदूरों का आह्वान करते हुये, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने मजदूरों की मांगों का पूरा समर्थन किया। पार्टी ने एक आधुनिक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की स्थापना करने की मांग की, जिसके जरिये खाद्य और जनता की दूसरी जरूरी चीजें पर्याप्त मात्रा में, अच्छी गुणवत्ता के साथ उचित दाम पर उपलब्ध हों। पार्टी ने मजदूरों के अधिकारों पर हमलों को बंद करने की मांग की।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने मजदूरों से यह आह्वान किया कि प्रत्येक औद्योगिक क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र में मजदूर एकता परिषद बनायें, ताकि मजदूरों के कार्यक्रम का प्रचार किया जाये और इन मांगों के इर्द-गिर्द मजदूरों की एकता बनायी जाये। इन परिषदों में मजदूरों के पार्टी या टे्रड यूनियनों के सम्बंधों के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये। पार्टी ने मजदूरों से आह्वान किया कि मजदूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने के क्रांतिकारी नज़रिये के साथ हमें अपनी तत्कालीन मांगों के लिये संघर्ष करना होगा।

इस अवसर पर पार्टी द्वारा जारी किये गये बयान की लाखों प्रतियां विभिन्न भाषाओं में रैली के दौरान तथा उससे पहले भी, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तामिलनाडु, महाराष्ट्र और देश के दूसरे इलाकों के मजदूर वर्ग क्षेत्रों में बांटी गयीं। मजदूरों ने पार्टी के आह्वान को बड़ी उत्सुकता के साथ पढ़ा और बातचीत के दौरान तथा फोन के जरिये उसकी सराहना की।

देशभर से मजदूर बड़ी-बड़ी उम्मीद लेकर संसद के सामने प्रदर्शन करने के लिये दिल्ली आये थे। परन्तु केन्द्रीय टे्रड यूनियनों के नेताओं ने मजदूरों को उत्साहित करने वाला कोई रास्ता नहीं दिखाया।

हमारे देश और दुनिया के दूसरे देशों के मजदूरों का अनुभव यह दिखाता है कि जब तक मजदूर संसदीय व्यवस्था और संसदीय राजनीति से बंधे रहेंगे, तब तक वे प्रगति नहीं कर सकते। चाहे हिन्दोस्तान में हो या अमरीका या यूरोपीय देशों में, इस बहुपार्टीवादी संसदीय व्यवस्था के अन्दर सत्ता में आने वाली सरकारें पूंजीपति वर्ग की सरकारें हैं और पूंजीपति वर्ग के आदेश अनुसार ही काम करती हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्ता में आयी हुयी पार्टी किस नाम या झंडे वाली हो, जैसा कि राजग शासन, तीसरा मोर्चा शासन और संप्रग शासन के अनुभव से साबित होता है। मजदूरों ने यह देखा है कि संप्रग सरकार के सांझा न्यूनतम कार्यक्रम को समर्थन देने के नाम पर विभिन्न केन्द्रीय टे्रड यूनियनों ने किस तरह पूरे चार वर्षों तक मजदूर वर्ग के संघर्षों को कमजोर किया और पूंजीपतियों को मजदूरों का शोषण बढ़ाने तथा अपना शासन मजबूत करने का मौका दिया।

केन्द्रीय टे्रड यूनियनों के नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों की लाइन के अनुसार, मजदूरों के संघर्ष को फिर से संसदीय ढांचे के अन्दर सीमित रखने की कोशिश की। उन्होंने मजदूरों को ''मजदूर परस्त नीतियों'' वाली पूंजीवादी पार्टियों के किसी दूसरे गठबंधन को सत्ता में लाने के लिये लामबंध किया, जबकि यह एक भ्रम के सिवाय कुछ और नहीं है। केन्द्रीय टे्रड यूनियनों के नेताओं ने वह नारा बुलंद करने से इंकार किया जो मजदूरों के दिलों में गूंज रहा है – मजदूरों और किसानों का शासन लागू करने की जरूरत और उसके लिये अभी, यहीं से संगठित होने की जरूरत।

परन्तु सभी पार्टियों और यूनियनों के मजदूर खुद ही यह समझने लगे हैं कि वर्तमान हालत से निकलने का सही रास्ता क्या है। रैली में भाग लेने वाले मजदूरों के साथ बात-चीत करते हुये मजदूर एकता लहर के पत्रकारों को ऐसा ही अहसास हुआ।

मजदूर एकता लहर देश के जुझारू मजदूरों को सलाम करती है।

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