देश की अर्थव्यवस्था में क्या बढ़ रहा है और क्या नहीं बढ़ रहा है?

सरकार के प्रवक्ताओं का दावा है कि हिन्दोस्तान दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती एक प्रमुख अर्थव्यवस्था है। हालांकि, अधिकांश लोग जानते हैं कि उनके जीवन-स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा है। अधिकतर कामकाजी लोगों की आमदनी में, उपभोग की आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतों के बराबर भी बढ़ोतरी नहीं हुई है। वास्तव में क्या हो रहा है, यह जानने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के आंकड़ों की गहराई से जांच करने की ज़रूरत है।

कहा जा रहा है कि हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था के हालात बहुत अच्छे हैं, क्योंकि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने 2022-23 के दौरान जी.डी.पी. में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है।

जी.डी.पी. नामक एक समग्र मापदंड विभिन्न मापदंडों से मिलकर बनता है। जिसमें कृषि, खनन, विनिर्माण उद्योग और विभिन्न सेवाओं द्वारा जोड़ा गया मूल्य शामिल होता है। इन मापदंडों का प्रदर्शन कैसा रहा है, इसकी जांच करने से पता चलता है कि देश का आर्थिक विकास बेहद असमान रहा है। इसमें वृद्धि अत्यंत विषम रही है।

कृषि व वन संबंधी और मछली पालन जैसी गतिविधियां, जो देश की सबसे बड़ी संख्या के लोगों की आजीविका का स्रोत हैं। इनमें 2022-23 में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है, जो कुल सकल घरेलू उत्पाद की बढ़ोतरी की तुलना में बहुत कम है।

“मेक इन इंडिया” जैसी तमाम चर्चाओं और विभिन्न उद्योगों को दिए जाने वाले तमाम आर्थिक प्रोत्साहनों के बावजूद, कुल मिलाकर विनिर्माण उद्योग का उत्पादन केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ा है।

समग्र विकास दर में 7 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होने की क्या वजह है, जबकि कृषि और उद्योग दोनों बहुत धीमी गति से बढ़े हैं? इसका कारण, पूरी तरह से सेवाओं में हुई वृद्धि से समझा जा सकता है, क्योंकि सेवाओं के द्वारा जोड़ा गया मूल्य, सकल घरेलू उत्पाद के आधे से अधिक हिस्सा है। “व्यापार, होटल और परिवहन सेवाएं” नाम से जानी जाने वाली सेवाओं में 2022-23 में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जिसमें होम डिलीवरी सेवाओं में तेज़ी से हुई वृद्धि भी शामिल है।

आर्थिक विकास की संरचना की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि घरेलू बाज़ार के लिए उत्पादन और निर्यात बाज़ारों के लिए उत्पादन के बीच काफी अंतर है। घरेलू बाज़ार के लिए उत्पादन केवल 5.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा है जबकि निर्यात इसकी दुगनी दर से बढ़ा है। निर्यात में अधिकांश बढ़ोतरी सेवाओं के निर्यात के कारण हुई है। जो पिछले वर्ष के 254 बिलियन अमरीकी डॉलर की तुलना में 2022-23 में 27 प्रतिशत बढ़कर 323 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है।

आर्थिक विकास की असमानता के कारण, रोज़गार में कोई वृद्धि नहीं हुई है। नियमित नौकरियों की संख्या में गिरावट आई है। नौकरियों की गुणवत्ता बद से बदतर हो गई है। केवल सबसे ख़राब गुणवत्ता वाली नौकरियां जैसे कि डिलीवरी-मैन की नौकरियां ही बढ़ी हैं।

कामकाजी लोगों की आय नहीं बढ़ी है। बहुत से मज़दूर और किसान और भी ग़रीब हो गये हैं। मार्च 2023 में लेबर ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान कृषि व्यवसायों से जुड़े ग्रामीण दिहाड़ी मज़दूरों के वास्तविक वेतन में प्रति वर्ष केवल 0.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसी अवधि में गैर-कृषि व्यवसायों में लगे मज़दूरों के वास्तविक वेतन में प्रति वर्ष 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। (वास्तविक-वेतन का क्या अर्थ है? बॉक्स देखें)

किसानों की आमदनी को दुगना करना, वर्तमान सरकार के वादों में से एक था। नीति-आयोग के अनुमान के मुताबिक, 2015-16 के बाद से किसानों की वास्तविक औसत आमदनी में गिरावट आई है।

मज़दूर और किसान ग़रीब ही बने हुए हैं, इनमें से बहुत से और भी ग़रीब होते जा रहे हैं, जबकि सबसे अमीर पूंजीपति और अधिक अमीर हो गए हैं। जहां स्टॉक-एक्सचेंज में सूचीबद्ध सभी कंपनियों की कुल बिक्री 2018-19 की तुलना में 2022-23 में केवल 42 प्रतिशत अधिक थी, वहीं उनका शुद्ध लाभ 189 प्रतिशत अधिक था। यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स की दरों में और बड़ी पूंजीवादी कंपनियों को बैंकों द्वारा दिए जाने वाले क़र्ज़ की ब्याज दरों में बार-बार कटौती की है।

हमारे देश के अति अमीर पूंजीपति उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को बढ़ाने में ज्यादा निवेश नहीं कर रहे हैं, जिन वस्तुओं की हमारे देश के लोगों को ज़रूरत है। जबकि पूंजीपतियों का मुनाफ़ा तेज़ी से बढ़ा है। इसका कारण यह है कि ज़रूरत की वस्तुओं और सेवाओं को ख़रीदने की मज़दूरों और किसानों की क्षमता में गिरावट आयी है। साबुन, डिटर्जेंट और टूथपेस्ट जैसे बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं की बिक्री में कमी, मज़दूरों और किसानों के बीच गहरे संकट को दर्शाती हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान, दोपहिया वाहनों (स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड) की बिक्री में 25 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है।

निष्कर्ष

हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखकर जश्न मनाने की ज़रूरत नहीं है, जैसा कि प्रचार किया जाता है। यह हम सब के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।

एक तरफ, टाटा, बिड़ला, अंबानी, अदानी और अन्य इजारेदार पूंजीपति बहुत तेज़ी से अपनी संपत्ति का विस्तार कर रहे हैं। दूसरी तरफ, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती क़ीमतें, मज़दूरों की वास्तविक मज़दूरी और किसानों की वास्तविक आय को कम कर रही हैं।

कुछ मुट्ठीभर अति अमीर पूंजीपतियों और करोड़ों मज़दूरों-किसानों के बीच बढ़ती खाई, पूंजीवादी व्यवस्था का ही एक अवश्यंभावी परिणाम है। यह पूंजीपति वर्ग के निजी मुनाफे़ को अधिकतम करने की दिशा में होने वाले सामाजिक उत्पादन का नतीजा है।

जब तक देश की आर्थिक व्यवस्था, पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफे़ बनाने की लालच को पूरा करने की दिशा में चलाई जाती रहेगी, तब तक सभी के लिए समृद्धि, एक खोखला नारा ही रहेगा। सभी के लिए समृद्धि तभी हक़ीक़त बनेगी, जब मज़दूर और किसान देश के शासक बनेंगे और उत्पादन प्रणाली को लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में चलायेंगे।

वास्तविक-वेतन का क्या अर्थ है?

किसी मज़दूर को मिलने वाले वेतन में वृद्धि की दर, उसके जीवन स्तर में वृद्धि के अनुरूप नहीं होती है। इसका कारण है जीवनयापन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए होने वाले ज़रूरी खर्च में वृद्धि। किसी मज़दूर के जीवन स्तर में परिवर्तन को मापने के लिए, वास्तविक वेतन का आंकलन करना आवश्यक है, जैसा कि उपभोग की वस्तुओं की क़ीमतें स्थिर रहने पर मिलने वाले वेतन से ख़रीदी जा सकने वाली वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा से मापा जाता है।

उदाहरण के लिए, हम दिल्ली के एक अकुशल मज़दूर के हालात को देखें, जिसे क़ानूनन घोषित न्यूनतम वेतन मिल रहा है। जिसने 2022 के अप्रैल महीने में 16,506 रुपये कमाए होंगे। 1 अक्तूबर, 2022 से न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 16,792 रुपये प्रति माह कर दिया गया। हालांकि, औद्योगिक मज़दूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) द्वारा मापी गई उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की औसत क़ीमत, अप्रैल और अक्तूबर 2022 के बीच, 3.8 प्रतिशत बढ़ गई। इसका मतलब यह है कि नया न्यूनतम वेतन घोषित होने से ठीक पहले सितंबर 2022 के अंत तक, उपभोग की वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि के कारण उसको मिलने वाले 16,506 रुपये के न्यूनतम वेतन की खरीदने की क्षमता अप्रैल 2022 में मिलने वाले 15,908 रुपये के बराबर थी, क्योंकि वह उतनी ही वस्तुओं और सेवाओं को ख़रीद सकता था। इसलिए अक्तूबर के वेतन में बढ़ोतरी से पहले ही मज़दूर 3.8 प्रतिशत ग़रीब हो गए, क्योंकि महंगाई के कारण उनको मिलने वाले वेतन से उनकी ज़रूरतों की वस्तुओं को ख़रीदने की क्षमता कम हो गयी। 1 अक्तूबर को न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 16,792 रुपये कर दिया गया। इस नए वेतन से 2022 के अप्रैल महीने में केवल 16,177 रुपए की वस्तुएं और सेवाएं ही ख़रीदी जा सकेंगी। भले ही 1 अक्तूबर को मिलने वाले वेतन को 1.7 प्रतिशत बढ़ाया गया था, लेकिन यदि महंगाई को भी शामिल किया जाए तो मज़दूरों का वास्तविक वेतन 2 प्रतिशत घट गया। (यदि हम अप्रैल 2022 में रुपये की क्रय-शक्ति – बाज़ार में उस पैसे से मिलने वाले सामान और सेवाओं को ख़रीद पाने की क्षमता – को ध्यान में रखते हैं तो 16,506 रुपये के वास्तविक वेतन की हक़ीक़त में क्रय-शक्ति केवल 16,177 रुपये की ही थी)।

मार्च 2023 के अंत तक, सी.पी.आई. (महंगाई सूचकांक) में 1.3 प्रतिशत की वृद्धि के कारण, वास्तविक वेतन और अधिक घटकर केवल रुपए 15,392 हो गया। 1 अप्रैल को एक और बढ़ोतरी के बावजूद, जिसने न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 17,234 रुपए किया, उससे जीवन-यापन की लागत में हुई वृद्धि की भरपाई नहीं हुई। अप्रैल 2022 की क़ीमतों पर, अप्रैल 2023 में दी जाने वाली मज़दूरी केवल 16,398 रुपये के बराबर थी। जो कि एक साल पहले की क़ीमत से कम है। इस प्रकार मज़दूर, एक वर्ष पहले की तुलना में और अधिक ग़रीब हुआ है और वर्ष भर में 10,000 रुपये से अधिक की उसकी ख़रीद क्षमता कम हो गयी है।

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