9 अगस्त, 2023 को ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच की पहल पर, देशभर में मज़दूरों ने महापड़ाव के कार्यक्रम आयोजित किये। केन्द्र सरकार की मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ तथा अपनी मांगों को लेकर मज़दूरों ने अलग-अलग राज्यों की राजधानियों में और जिला-तहसील के मुख्यालयों पर कई जुलूस, धरने, सभाएं और विरोध प्रदर्शन किये। अनुमान लगाया जा रहा है कि देशभर में 700 से ज्यादा स्थानों पर इस तरह के महापड़ाव आयोजित किए गए।
इस महापड़ाव के लिए मज़दूरों को संगठित करने के उद्देश्य के साथ, ट्रेड यूनियनों के कार्यकर्ताओं और बड़ी संख्या में मज़दूरों ने महापड़ाव के एक महीने पहले से ही औद्योगिक क्षेत्रों और मज़दूरों की रिहाईशी कालोनियों में पर्चे बांटे और ज़ोरदार अभियान चलाये।
देश की राजधानी दिल्ली में संसद के पास, जंतर-मंतर पर एक महापड़ाव आयोजित किया गया।
इस महापड़ाव में अलग-अलग क्षेत्रों से सैकड़ों मज़दूर शामिल हुए। महिला मज़दूरों ने जोश के साथ इस कार्यक्रम में भाग लिया। मज़दूरों के हाथों में बैनरों और प्लाकार्डों पर विरोध प्रकट करते हुए नारे लिखे थे – “महंगाई, बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ संघर्ष तेज़ करो!“, “निजीकरण-उदारीकरण मुर्दाबाद!“, “नयी शिक्षा नीति वापस लो!“, “लोगों की हिफ़ाज़त में संघर्ष करने वालों की आवाज़ को दबाना बंद करो!“, “बैंक, रेल, बीमा, बिजली, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा को बेचना बंद करो!“, मज़दूरों को गुलाम बनाने वाले चार लेबर कोड रद्द करो!“, “न्यूनतम वेतन 26,000 करो!”, “समान काम का समान वेतन दो!”
दिल्ली में महापड़ाव के आयोजक थे – एटक, सीटू, मज़दूर एकता कमेटी, हिन्द मज़दूर सभा, इंटक, ए.आई.यू.टी.यू.सी., ए.आई.सी.सी.टी.यू., यू.टी.यू.सी., एल.पी.एफ., सेवा और आई.सी.टी.यू.। सभी आयोजक संगठनों के प्रतिनिधियों ने महापड़ाव को संबोधित किया।
वक्ताओं ने देशी-विदेशी बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के मुनाफ़ों को और तेज़ी से बढ़ाने के उद्देश्य से बनायी गयी मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों की कड़ी निंदा की। इन नीतियों के चलते अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई बढ़ रही है। ग़रीबी, भुखमरी, कुपोषण और बेरोज़गारी बढ़ रही हैं। दिहाड़ी मज़दूरों में रोज़ी-रोटी की असुरक्षा इतनी बढ़ गयी है कि वे खुदकुशी करने को मजबूर हैं। छंटनी, तालाबंदी, वेतन कटौती जैसे क़दमों के ज़रिए मज़दूरों के जीवन स्तर को नीचे की ओर धकेला जा रहा है। चार लेबर कोड के ज़रिए मज़दूरों पर नयी गुलामी लादी जा रही है। प्रतिदिन काम के घंटे 8 से 12 किए जा रहे हैं।
वक्ताओं ने इस बात पर ध्यान आकर्षित किया कि दिल्ली-एनसीआर में 95 फ़ीसदी मज़दूरों को घोषित न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। असुरक्षित हालतों में काम करने को मजबूर होकर मज़दूरों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन, दोषी पूंजीपति मालिकों के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं करते हैं।
सार्वजनिक उद्यमों और सेवाओं – रेल, सड़क, डिफेंस, एयरपोर्ट, बिजली, पेट्रोलियम, परिवहन, बैंक, बीमा, संचार, कोयला खनन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आदि – को देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीवादी घरानों के हाथों में कौड़ियों के दाम पर बेचा जा रहा है।
मणिपुर और हरियाणा में हाल में फैलाई गयी सांप्रदायिक हिंसा का ज़िक्र करते हुए, वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि इनके लिए पूंजीपति और उनकी सरकार ज़िम्मेदार हैं। उनका इरादा है पूंजीपतियों के सबतरफ़ा हमलों के ख़िलाफ़ मज़दूरों, किसानों, महिलाओं, नौजवानों और सभी मेहनतकशों की एकता को तोड़ना और उनके एकजुट संघर्ष को कुचलना।
इन सभी बातों का यह निष्कर्ष साफ़-साफ़ निकल कर आया कि अगर अर्थव्यवस्था को लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में चलाना है, न कि पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने की दिशा में, तो पूंजीपतियों को सत्ता से हटाना होगा। मज़दूरों-किसानों को अपनी हुकूमत स्थापित करनी होगी, उत्पादन के सभी साधनों पर समाज की मालिकी स्थापित करनी होगी और समाज के सभी फै़सलों को लेने में सक्षमता हासिल करनी होगी।
महिला मज़दूरों के एक सामूहिक गीत के साथ महापड़ाव का समापन हुआ।