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हिंद-अमरीकी सांझेदारी हिन्दोस्तान के लिये ख़तरनाक

संपादक महोदय,

मज़दूर एकता लहर में प्रकाशित ’हिंद-अमरीकी सांझेदारी हिन्दोस्तानी लोगों के हित में नहीं है’ – लेख का यह शीर्षक साफ़ तौर पर दर्शाता है कि हिन्दोस्तान का शासक वर्ग पूरे विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता है और दूसरी तरफ़ अमरीका हिन्दोस्तान के पूंजीपतियों के साम्राज्यवादी मंसूबों और चीन के साथ उनके अंतर्विरोधों का फ़ायदा उठा रहा है।

यह सर्वविदित है कि अमरीका के पुराने दोस्तों, अर्थात जिन देशों से उसने दोस्ती की, उन पुराने दोस्तों का क्या हश्र हुआ। राष्ट्रीय संप्रभुता का हनन करने में अमरीका का सबसे लंबा इतिहास रहा है। उदाहरण के तौर पर यदि हम देखें तो आतंकवाद का ख़ात्मा करने की आड़ में अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया जैसे कई देशों पर जंग किए हैं। इन युद्धों में उसने करोड़ों लोगों की ज़िंदगियों को ख़त्म किया है और उन देशों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है।

दुनिया यह जानती है कि इसके पीछे उसका असली मक़सद क्या था। वह वहां के तेल और खनिजों को हथियाना और अपने आतंक को विश्व में क़ायम करना चाहता था। गौरतलब है कि हम सभी को सावधान रहने की ज़रूरत है और यह जानने की ज़रूरत है कि हमारे देश के पूंजीपति अन्य देशों में अपने साम्राज्य का झंडा लहराना चाहते हैं। पूरे विश्व पर एकाधिकार स्थापित करना चाहते हैं। पूंजीपति मज़दूरों और किसानों को गुमराह कर रहे हैं और उन्हें उनके लक्ष्य से भटका रहे हैं।

हमारे देश का युवा वर्ग ग़रीबी से परेशान है और नौकरी की तलाश में भटक रहा है। जहां समान शिक्षा, समान स्वास्थ्य सेवा, सबको रोज़गार के अवसर जैसे बड़े-बड़े सपने दिखाए जा रहे हैं। वहीं हमारे देश के मज़दूरों, किसानों, औरतों और नौजवानों के सामने समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। मज़दूर, किसान भूख और ग़रीबी से बदहाल हैं तथा देश की सशक्त शक्ति कहलाने वाला युवा वर्ग बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहा है।

इन सभी समस्याओें को जानते हुए भी, पूंजीपति वर्ग भ्रम पैदा कर रहा है और राजनीति की आड़ में लोगों को गलत दिशा में ले जा रहा है। पूंजीपति वर्ग बड़े-बड़े शब्दों जैसे कि एकता, समानता, प्रगतिशील विकास का प्रयोग करके लोकतंत्र के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने की ताक में लगा हुआ है। जैसा कि हम देखते हैं कि देश की मुख्य समस्याओं को जानबूझकर नज़रंदाज़ करके, हमारे देश के प्रधानमंत्री अमरीका का दौरा करके 24,600 करोड़ रुपए की कुल क़ीमत वाले युद्ध में इस्तेमाल होने वाले कई युद्धक हथियारों, 31 एम.क्यू. 9-बी ड्रोन हवाई जहाज ख़रीदने जैसे कई समझौते कर रहे हैं।

यह साफ़ तौर पर दर्शा रहा है कि इससे अमरीकी कंपनियों को बहुत बड़े पैमाने पर बेशुमार मुनाफ़ा होगा। जितने रुपये इन हथियारों की ख़रीद पर खर्च किये जा रहे हैं, इन करोड़ों रुपयों को देश की जनता से वसूला जाएगा। यह हमें दिख रहा है कि यह समझौता जनता के हित में नहीं है। इससे मज़दूरों और किसानों के हालात और भी बदतर हो जाएंगे।

ये समझौते साफ़-साफ़ दर्शाते हैं कि अमरीका से दोस्ती करना देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। इस जंगी योजना में हिन्दोस्तानी लोगों को ही तोप के चारे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

इसलिए मज़दूर बतौर हमारा यह कर्तव्य है कि औरों को जागरुक बनाएं और हिंद अमरीकी गठबंधन का खुलकर विरोध करें। अमरीकी साम्राज्यवाद को हमारे देश में घुसने से रोकना होगा तथा दक्षिणी एशिया में शांति बहाल करने के लिए अमरीकी साम्राज्यवाद को भगाना होगा। देश में मज़दूरों और किसानों का राज्य स्थापित करके समाजवाद को लाना ही हमारा फौरी कर्तव्य होना चाहिए और इस दिशा में हमें कार्य करना होगा।

अजीत मोहन

नागपुर

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