कई देश अमरीकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं का उपयोग करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने के तरीके़ विकसित करने में लगे हुए हैं। उसके अनुसार वे अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर के अनुपात को भी कम कर रहे हैं। ऐसे सब क़दम दुनिया की आरक्षित मुद्रा बतौर अमरीकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे उस प्रवृत्ति का हिस्सा हैं जिसे डी-डॉलराईजेशन कहा जाने लगा है।
पिछली सदी के अंत में, यूरोपीय संघ की आम मुद्रा बतौर यूरो के आने के साथ ही अमरीकी डॉलर के प्रभुत्व में कमी होनी शुरू हो गई थी। इराक और लीबिया जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों ने अमरीकी डॉलर के बजाय यूरो में अपना तेल बेचना शुरू कर दिया था। अमरीकी साम्राज्यवाद ने पहले आर्थिक प्रतिबंध लगाकर और बाद में आतंकवाद के खि़लाफ़ युद्ध छेड़ने के बहाने, उन देशों के खि़लाफ़ सैन्य हस्तक्षेप करके ऐसे क़दमों को रोक दिया। परन्तु ऐसे आक्रामक उपायों ने बढ़ती संख्या में अन्य देशों द्वारा डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के प्रयासों को नहीं रोका है।
अमरीकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने का एक प्रमुख कारण अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा इसे आर्थिक और भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना है। जिन देशों को अमरीका अपना विरोधी मानता है, उन्हें व्यापारिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है और उनके डॉलर खातों को फ्रीज़ कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, वेनेजुएला शासन को अमरीकी सरकार द्वारा नाजायज़ घोषित कर दिया गया है। वेनेजुएला के सेंट्रल बैंक को वेनेजुएला के लोगों की ज़रूरत की वस्तुओं के आयात के लिए अपने डॉलर भंडार का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। ऐसे अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करने वाले अन्य देशों में उत्तर कोरिया, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, क्यूबा, म्यांमार, रूस और सीरिया शामिल हैं।
डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की चाहत रखने वाले देशों का दूसरा प्रमुख कारण अमरीकी सरकार का भारी और बढ़ता क़र्ज़ है। अमरीकी सरकार अपने भारी सैन्य खर्च उठाने के लिए डॉलर उधार लेती रहती है और नये डॉलर छापती रहती है। वह अपने पिछले क़र्ज़ को चुकाने के लिए और अधिक उधार लेती रहती है। इससे अमरीकी डॉलर की क्रय शक्ति से जुड़ा जोखि़म बढ़ गया है।
राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग
राष्ट्रीय मुद्राओं को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में इस्तेमाल करने के लिए देशों के बीच अनेक समझौते हुए हैं। उदाहरण के लिए, चीन और ब्राजील ने अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार करने के लिए एक समझौता किया है। वे अमरीकी डॉलर के उपयोग के बिना, ब्राजीलियाई रियाल के लिए चीनी रेनमिनबी (आर.एम.बी.) मुद्राओं का आदान-प्रदान करने पर सहमत हुए हैं। हाल ही में, सऊदी अरब, केन्या और संयुक्त अरब अमीरात ने भी अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं में पेट्रोलियम उत्पादों का व्यापार करने के लिए सौदे किए हैं।
चीन ने 2009 में आर.एम.बी. क्रॉस-बॉर्डर ट्रेड सेटलमेंट पायलट स्कीम की शुरुआत की थी, जिसके ज़रिये कंपनियों को डॉलर के बजाय आर.एम.बी. में व्यापारिक भुगतान को निपटाने की अनुमति मिलती है। तब से चीन ने 30 से अधिक देशों और क्षेत्रों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते स्थापित करके व्यापारिक भुगतान के निपटान में आर.एम.बी. के इस्तेमाल का विस्तार किया है। चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, जो एक विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना है और जो 60 से अधिक देशों और क्षेत्रों तक फैली हुई है, उसमें आर.एम.बी. के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दे रहा है।
हिन्दोस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस साल अप्रैल की शुरुआत में घोषणा की थी कि हिन्दोस्तान और मलेशिया के बीच व्यापार अब हिन्दोस्तानी रुपये में किया जा सकेगा। इससे पहले भारतीय रिज़र्व बैंक ने घोषणा की थी कि रुपये में सीमा पार व्यापार करने के लिए कई दक्षिण एशियाई देशों के साथ बातचीत चल रही है। हिन्दोस्तानी रुपया व्यापारिक भुगतान तंत्र में कई अन्य देशों ने अपनी रुचि दिखाई है। ताज़िकिस्तान, क्यूबा, लक्जमबर्ग और सूडान ने इस तंत्र का उपयोग करने के बारे में हिन्दोस्तान से बातचीत शुरू कर दी है। यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के पश्चात, अमरीकी प्रतिबंध लगने के बाद रूस द्वारा इसका इस्तेमाल किया जा चुका है। हिन्दोस्तान अब इस तंत्र में उन और देशों को शामिल करना चाहता है जिनके पास डॉलर की कमी है।
ब्रिक्स समूह, जिसमें ब्राजील, रूस, हिन्दोस्तान, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, उसने जून 2009 में ही घोषणा कर दी थी कि एक नई वैश्विक रिज़र्व मुद्रा की आवश्यकता है। 30 मार्च, 2023 को रूस के राज्य ड्यूमा (रूस की संसद) के उपाध्यक्ष अलेक्जेंडर बाबाकोव ने कहा कि ब्रिक्स एक ”नई मुद्रा“ विकसित करने पर काम कर रहा है जिसे अगस्त 2023 में, डरबन में होने वाले ब्रिक्स के आगामी शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाएगा।
दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों, इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, ब्रुनेई, थाईलैंड, म्यांमार, फिलीपींस, कंबोडिया, सिंगापुर और मलेशिया के ए.एस.ई.ए.एन (आसियान) समूह के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों ने अप्रैल 2023 में मुलाक़ात की। उन्होंने अमरीकी डॉलर पर निर्भरता कम करने और स्थानीय मुद्राओं में भुगतान को निपटाने के तरीक़ों पर चर्चा की।
विदेशी मुद्रा भंडार का डी-डॉलराईजे़शन
डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं में व्यापार करने की प्रवृत्ति के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न राज्यों द्वारा रखे गए विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। यह हिस्सेदारी 2002 में 67 प्रतिशत थी जो से 2022 में घटकर 58 प्रतिशत हो गई है (चार्ट-क देखिये)। 1970 के दशक में अमरीकी डॉलर सभी विदेशी मुद्रा भंडारों का लगभग 85 प्रतिशत हुआ करता था। वैश्विक भंडार में यूरो की हिस्सेदारी 2012 तक बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई और तब से इसमें कुछ गिरावट आई है। यूरो के अलावा, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड के शेयर लगभग 5 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। चीनी रेनमिनबी का हिस्सा 3 प्रतिशत से थोड़ा कम है।
चीन, जापान और तेल उत्पादक पश्चिम एशियाई देशों ने अपने व्यापार में निर्यात की बहुतायत के कारण अमरीकी डॉलर जमा कर लिये थे। वे अपने बेशी डॉलरों से अमरीकी ट्रेज़री बांड ख़रीद रहे थे। वे अब डॉलर के प्रति अपना जोखि़म कम कर रहे हैं। 2010 के बाद से चीन की अमरीकी बांड होल्डिंग में कमी को चार्ट-ख में दिखाया गया है।
सोने के भंडारों में बढ़ोतरी
काग़जी (फिएट) मुद्राओं, जिनका स्वयं कोई वास्तविक मूल्य नहीं होता है और न ही वे वास्तविक मूल्य वाली किसी भी चीज के मूल्य से जुड़ी होती हैं, सोना मूल्य का एक विश्वसनीय भंडार होता है। कई देश अमरीकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और किसी भी बड़े वैश्विक आर्थिक पतन से अपना बचाव करने के लिए सोना ख़रीद रहे हैं।
सितंबर 2021 और मई 2023 के बीच बड़ी मात्रा में सोना खरीदने वाले कुछ केंद्रीय बैंक हैं – चीन (128.5 मीट्रिक टन), हिन्दोस्तान (91.6 मीट्रिक टन) और तुर्किये (88.2 मीट्रिक टन)। 2022 में 30 मीट्रिक टन से अधिक सोना ख़रीदने वाले देशों में मिस्र, इराक, कतर और रूस शामिल हैं। केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की ख़रीद के लिए 2023 की पहली तिमाही रिकॉर्ड स्थापित करने वाली तिमाही थी, जिसमें केंद्रीय बैंकों ने कुल मिलाकर 228 मीट्रिक टन की ख़रीदारी की, जिसमें अकेले सिंगापुर की 68.7 मीट्रिक टन की हिस्सेदारी थी।
निष्कर्ष
जबकि अमरीकी डॉलर अब तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा बतौर क़ायम है, कई देश इस मुद्रा पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं। वे अन्य मुद्राओं में व्यापार करने और अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमरीकी डॉलर की हिस्सेदारी कम करने के तरीक़ों पर काम कर रहे हैं। वे खुद को अमरीकी प्रतिबंधों से सुरक्षित बनाने और अमरीका की अस्थिर मौद्रिक नीति से उत्पन्न होने वाले जोखि़मों के प्रति अपने आप को बचाने की कोशिशें कर रहे हैं।