लिथुआनिया के विलनियस में नाटो का शिखर सम्मेलन :
सैन्यीकरण और युद्ध में और अधिक बढ़ोतरी

11-12 जुलाई को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के 31 सदस्य देशों के राज्य प्रमुखों की बैठक लिथुआनिया के विलनियस शहर में हुई। 12 जुलाई को नाटो शिखर सम्मेलन द्वारा सदस्य देशों की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई। विज्ञप्ति के अनुसार, सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं का और सैन्यीकरण करने तथा रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन में चल रहे क्रूर युद्ध में तेज़ी लाने के लिए, एक रोड-मैप की घोषणा की गई। इस विज्ञप्ति के ज़रिये, अफ्रीका और एशिया में अपने प्रभुत्व क्षेत्र को बढ़ाने की नाटो की योजना भी उजागर हुई।

member-countries-on-map-2023नाटो अमरीका के नेतृत्व वाला एक सैन्य गठबंधन है। हालांकि यह काल्पनिक धारणा बनाई गयी है कि नाटो की सेनाएं, एक संयुक्त कमान के अधीन हैं, जबकि हक़ीक़त में सदस्य देशों की सशस्त्र सेनाएं, अमरीकी सशस्त्र बलों की कमान के अधीन हैं। नाटो सैन्य गठबंधन, यूरोप के देशों और लोगों पर, अमरीकी प्रभुत्व को सुनिश्चित करने और उस प्रभुत्व को दुनिया के अन्य हिस्सों तक विस्तारित करने का एक ज़रिया रहा है।

नाटो के शिखर सम्मेलन ने यूक्रेन में चल रहे युद्ध को बढ़ाने के उपायों की घोषणा की। इसने घोषणा की कि ”यूक्रेन का भविष्य नाटो में है“। उसने यूक्रेन को तुरंत, नाटो की औपचारिक सदस्यता न देते हुए, यूक्रेन की सदस्यता-प्रक्रिया को तेज़ करने का रोड-मैप सामने रखा। शिखर सम्मेलन ने, रूस के ख़िलाफ़ चल रहे युद्ध में यूक्रेन के साथ नाटो का पूर्ण और क़रीबी समन्वय सुनिश्चित करने के लिए नाटो-यूक्रेन परिषद की स्थापना की।

यूक्रेन और रूस के बीच का यह युद्ध 15 महीने से भी अधिक समय से चल रहा है, जिसने वहां भयंकर मौत और तबाही फैलाई है। इस युद्ध में सैनिकों के अलावा, लाखों आम नागरिक भी मारे गए हैं। यूक्रेन के दो करोड़ से अधिक लोगों यानी कि आधी आबादी को शरणार्थियों के रूप में रूस सहित अनेक पड़ोसी देशों में जाना पड़ा है। हालांकि, अमरीका नहीं चाहता कि यह युद्ध ख़त्म हो। उसने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, युद्ध रोकने और शांति सुनिश्चित करने के सभी प्रयासों को नाकाम कर दिया है। (देखें बॉक्स : बातचीत से समाधान की कूटनीतिक पहल को बार-बार नाकाम किया गया)। अमरीका और उसके सहयोगियों ने युद्ध जारी रखने के लिए यूक्रेनी सशस्त्र बलों को सबसे परिष्कृत हथियार दिए हैं।

11-12 जुलाई को हुये नाटो के शिखर सम्मेलन में, यूक्रेन को और अधिक हथियार उपलब्ध कराने का वादा किया गया। फ्रांस और ब्रिटेन लंबी दूरी की क्रूज-मिसाइलें यूक्रेन में भेजेंगे। ब्रिटेन, लड़ाकू और ढुलाई-वाहन, टैंकों के लिए गोला-बारूद और उपकरण-मरम्मत के लिए, 6.5 करोड़ डॉलर भी प्रदान करेगा। पैट्रियट-मिसाइल लांचर और पैदल सेना से लड़ने वाले कई वाहनों सहित, 77 करोड़ डॉलर का सहायता पैकेज जर्मनी भेजेगा। नॉर्वे सैन्य सहायता के तौर पर 10 अरब डॉलर भेजेगा। 11 देशों का गठबंधन, डेनमार्क में यूक्रेनी पायलटों को, एफ-16 लड़ाकू विमान को उड़ाने का प्रशिक्षण शुरू करेगा और इसके लिए रुमानिया में एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जाएगा। जी-7 देशों ने यूक्रेन को रूस से दीर्घकालिक सुरक्षा की गारंटी देने का फ़ैसला किया है।

नाटो के शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले, अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की थी कि अमरीका यूक्रेन को क्लस्टर-बमों की सप्लाई करेगा। अमरीका द्वारा वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के लोगों के ख़िलाफ़ और हाल ही में इराक के युद्ध में क्लस्टर बमों का इस्तेमाल किया गया था। क्लस्टर बम एक विशाल इलाके में, सैकड़ों छोटे बम गिराते हुए लोगों को अंधाधुंध निशाना बनाते हैं। इन क्लस्टर बमों को गिराए जाने के परिणामस्वरूप, कई वर्षों बाद, बच्चों सहित हजारों नागरिकों की मौतें हुई हैं। अमरीका तथा नाटो के कई सदस्य देशों सहित 123 देशों ने क्लस्टर बमों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाये हुये हैं। लेकिन, नाटो के इस शिखर सम्मेलन ने यूक्रेन को क्लस्टर बमों से लैस करने के अमरीकी फ़ैसले का विरोध नहीं किया।

अमरीका ने, अमरीकी क़ानून की उस धारा का इस्तेमाल किया है जो क्लस्टर बमों पर लागू प्रतिबंध का उल्लंघन करने की अनुमति राष्ट्रपति को देता है। राष्ट्रपति बाइडन ने अपने फ़ैसले को उचित ठहराने के लिये यह तर्क दिया है कि यूक्रेन और नाटो के तोपखाने का गोला-बारूद ख़त्म हो गया है, इसलिए क्लस्टर बमों को इस्तेमाल करने के अलावा उनके पास और ”कोई विकल्प नहीं“ है। 9 जुलाई को, कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने कहा कि ”यूक्रेनी लोगों का शुभचिंतक होने के नाते, मैं क्लस्टर बमों की आपूर्ति करने वाले अमरीकी राष्ट्रपति से और इन बमों के प्राप्तकर्ता के रूप में यूक्रेनी राष्ट्रपति से, युद्ध में क्लस्टर बमों का इस्तेमाल न करने का आह्वान करता हूं, क्योंकि इसके असली शिकार यूक्रेनी लोग होंगे“। उन्होंने अपने देश के अनुभव को याद किया, जहां अमरीका ने 1970 के दशक में लाखों बम गिराए थे। युद्ध समाप्त होने के लंबे समय बाद, आने वाले दशकों में, इन्हीं बमों के कारण कंबोडिया में हजारों लोग मारे गए या उन्हें गंभीर चोटें लगीं।

नाटो के शिखर सम्मेलन में, अमरीका और पश्चिमी यूरोप के हथियार निर्माताओं के प्रमुख प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। इन हथियार निर्माताओं के प्रतिनिधि, सम्मेलन में भाग ले रहे राज्यों से यह चाहते थे कि उनके द्वारा बनाये गये हथियारों की ख़रीद की गारंटी उन्हें मिले ताकि वे अधिकतम मुनाफ़ा कमा सकें। अमरीका ने अन्य सभी सदस्य देशों के सैन्य बजट को, उनके सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम दो प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए, सहमति की सुनिश्चित की, इस चेतावनी के साथ कि आने वाले वर्षों में इसे और भी बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा, यह भी फै़सला लिया गया कि सुरक्षा खर्च का कम से कम 20 प्रतिशत, सैन्य-हार्डवेयर के अत्याधुनिक तकनीकी विकास पर होगा। सैन्य खर्च में हुई इस जबरदस्त वृद्धि का भारी बोझ, इन देशों के मज़दूर वर्ग और लोगों पर डाला जाएगा।

नाटो के शिखर सम्मेलन ने, रूस की सीमा से सटे देशों में नाटो के सुरक्षा बलों की अग्रिम तैनाती को और बढ़ाने का निर्णय लिया। इसने घोषणा की कि आठ बहुराष्ट्रीय सैन्य दल लड़ने के लिए पहले से ही मौजूद हैं। ज़रूरत पड़ने पर रूस के ख़िलाफ़ चल रहे इस युद्ध में एक पल में ही लाखों सैनिकों को झोंकने की तैयारी नाटो कर रहा है। वह न केवल यूक्रेन में बल्कि रूस की पूरी सीमा पर, आर्कटिक क्षेत्र से लेकर दक्षिण में काला सागर तक, ज़मीन, समुद्र और हवा में रूस के ख़िलाफ़ युद्ध की तैयारी कर रहा है। शिखर सम्मेलन द्वारा जारी की गयी विज्ञप्ति में रूस को परमाणु हथियारों के साथ-साथ सामूहिक विनाश के अन्य हथियारों की धमकी दी गई है।

शिखर सम्मेलन में फिनलैंड, नाटो के एक नये सदस्य के रूप में शामिल हुआ। तुर्कीये ने, स्वीडन की नाटो सदस्यता पर अपनी ओर से विरोध नहीं किया। जॉर्जिया, मोल्दोवा और बोस्निया-हर्जेगोविना के नेता, नाटो के साथ अपना सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। यह बिलकुल स्पष्ट है कि अमरीका, पूरे यूरोप को अपने सैन्य नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहा है।

शिखर सम्मेलन ने, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप बढ़ाने की नाटो की योजनाओं का खुलासा किया। इसने अफ्रीका के विभिन्न देशों में चल रहे गृह युद्धों के लिए रूस को दोषी ठहराया और इन युद्धों में अमरीका, फ्रांस और ब्रिटेन की भूमिकाओं को छिपाया।

नाटो के शिखर सम्मेलन में एशिया-प्रशांत यानी जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नाटो ”सहभागियों“ की सरकारों के प्रमुखों ने भी भाग लिया। इसने नाटो के संचालन के क्षेत्र को एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक विस्तारित करने की अमरीका की योजना का खुलासा किया।

यह घोषणा करते हुए कि चीन नाटो के हितों के लिए एक चुनौती है, शिखर सम्मेलन में वर्तमान समय में विभिन्न नाटो-शक्तियों के बीच इस बात पर चल रहे मतभेद का भी खुलासा हुआ कि चीन के ख़िलाफ़ कितना आगे तक जाना है। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, एक फ्रांसीसी अधिकारी ने 9 जुलाई को कहा कि फ्रांस ”सैद्धांतिक रूप से नाटो के संचालन-क्षेत्र को एशिया-प्रशांत में विस्तारित करने के पक्ष में नहीं है।“ अधिकारी ने कहा, ‘नाटो का मतलब उत्तर-अटलांटिक-संधि-संगठन है।’ उन्होंने कहा कि फ्रांस, नाटो में, जापान को शामिल करने के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगा।

यूरोप और दुनिया में इस समय एक बेहद ख़तरनाक स्थिति सामने आ रही है। अमरीकी साम्राज्यवाद, यूरोप, एशिया और पूरी दुनिया पर अपना निर्विवाद प्रभुत्व स्थापित करने के आक्रामक अभियान पर अग्रसर है। वह उन सभी राज्यों को नष्ट करना चाहता है जो इस लक्ष्य को प्राप्त करने के उसके रास्ते में रोड़ा बन रहे हैं। उसने जानबूझकर रूस को नष्ट करने और यूरोप को कमज़ोर करने के लिए, यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध भड़काया है। वह जिस रास्ते पर चल रहा है, वह मानव जाति को एक नए विश्व युद्ध में धकेल सकता है, जो पिछले दो विश्व युद्धों से कई गुना अधिक विनाशकारी होगा। दुनिया के मज़दूर वर्ग और लोगों को, अमरीका के नेतृत्व वाले युद्धखोर नाटो गठबंधन के प्रयासों को नाकाम करने की सख़्त ज़रूरत है।

बातचीत से समाधान निकालने की कूटनीतिक पहल को बार-बार नाकाम किया गया

यूक्रेन में बातचीत से समाधान के लिए पहली कूटनीतिक पहल, मिन्स्क समझौते 1 और 2, 2014 और 2015 में किये गए थे। समझौते पर यूक्रेन की सरकार और डोनेट्स्क और लुगांस्क के नए स्वतंत्र गणराज्यों के बीच हस्ताक्षर किए गये थे और जिनमें फ्रांस, जर्मनी और रूस गारंटर के रूप में शामिल थे।

फ्रांस, जर्मनी और यूक्रेन के नेताओं द्वारा किये गये समझौतों के पीछे यही इरादा था कि अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी और अन्य देशों को यूक्रेन को फिर से हथियारबंद करने के लिये कुछ समय मिल सके। आठ वर्षों तक, केवल रूस, डोनेट्स्क और लुगांस्क उस समझौते का पालन करते रहे, जबकि यूक्रेन को पूर्वी यूक्रेन के लोगों के ख़िलाफ़ और अधिक अपराध करने के लिए सशस्त्र किया गया। इसके साथ-साथ, अमरीका ने यूक्रेन को नाटो सैन्य गठबंधन का सदस्य बनने के लिए प्रोत्साहन दिया।

रूस ने दिसंबर 2021 में, अमरीका, नाटो के अन्य सदस्यों और यूरोपीय संघ से संपर्क किया और सभी पक्षों के सुरक्षा हितों का सम्मान करते हुए, कुछ समझौतों पर बातचीत करने का प्रस्ताव रखा। रूस ने इस आश्वासन की मांग की कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। रूस के उस अनुरोध को इस आधार पर ख़ारिज़ कर दिया गया कि किसी भी राष्ट्र को, ”असूल“ के आधार पर अपनी पसंद के किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल होने का ”अधिकार“ है।

एक बार फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन को नाज़ी गतिविधियों और सैन्यीकरण से मुक्त करने के उद्देश्य से, विशेष सैन्य अभियान शुरू किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यूक्रेन से रूस की सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं है, तब बेलारूस ने तुरंत उसी महीने यूक्रेन और रूस के बीच वार्ता की मेजबानी की। यूक्रेन के वार्ताकारी टीम के एक सदस्य, डेनिस किरीव की कथित तौर पर यूक्रेन की घरेलू खुफिया एजेंसी द्वारा कीव में खुलेआम हत्या कर दी गई। इस प्रकार यह वार्ता निरस्त हो गई।

इसके बाद, तुर्कीये ने मार्च 2022 में एक बार फिर से वार्ता की मेजबानी की। एक समझौते पर लगभग सहमति हो गयी थी। अमरीका और ब्रिटेन के निर्देश पर, जेलेंस्की इस समझौते से अलग हो गए। यूक्रेन के नियो-नाज़ी मिलिशिया ने खुलेआम धमकी दी कि अगर रूस के साथ समझौता हुआ तो राजधानी कीव पर मार्च किया जाएगा और जेलेंस्की को फांसी दे दी जाएगी।

मई 2023 में चीन ने अपनी एक पहल शुरू की। एक शीर्ष चीनी राजनयिक ली-हुई ने चीन की ”वैश्विक सुरक्षा पहल“ और ”यूक्रेन में शांति के लिए 12 सूत्रीय योजना“ पर चर्चा करने के लिए कीव, वारसॉ, बर्लिन, पेरिस और ब्रसल्स के साथ-साथ मॉस्को का दौरा किया”। अमरीका, ब्रिटेन और अन्य नाटो देशों ने चीनी प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया।

जून 2023 में, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया, कोमोरोस, कांगो-ब्रेजाविल, मिस्र, सेनेगल और यूगांडा के नेता, यूक्रेन और रूस के बीच शांति पहल के प्रस्ताव के साथ आगे आए। उन्होंने आह्वान किया कि :

  • बातचीत और कूटनीतिक माध्यमों से शांति;
  • जल्द से जल्द बातचीत शुरू करना;
  • दोनों पक्षों में अंतर्विरोध का कम होना;
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार राज्यों और लोगों की संप्रभुता सुनिश्चित करना;
  • सभी पक्षों के लिए सुरक्षा की गारंटी;
  • दोनों तरफ से अनाज और उर्वरक निर्यात को सुरक्षित करना;
  • पीड़ितों के लिए मानवीय सहायता;
  • युद्धबंदियों (पी.ओ.डब्ल्यू.) की अदला-बदली और बच्चों की वापसी;
  • युद्धोपरांत पुनर्निर्माण और पीड़ितों को सहायता, और
  • अफ्रीकी देशों के साथ घनिष्ठ संपर्क।

रूस ने इस अफ्रीकी पहल का स्वागत किया। लेकिन यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, नाटो की शर्तों पर अड़े रहे और घोषणा की कि जब तक रूसी सेनाएं पीछे नहीं हटतीं तब तक कोई शांति वार्ता नहीं होगी।

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One comment

  1. संपादक महोदय,
    नाटो शिखर सम्मेलन पर आपके लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरीकी साम्रज्यवाद का नाटो के विस्तार का क्या मकसद था और है। यह झूठा प्रचार फैलाया जाता रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ से हमले के ख़तरे का मुकाबला करने के लिए एक नाटो सैन्य गठबंधन बनाया गया। सच्चाई यह है कि 50 के दशक में रूस, यानेकि तब का सोवियत संघ, कम्युनिजम विचार के उच्चतम स्तर पर था। अमरीकी साम्राज्यवाद को पूरा यकीन हो चुका था, कि अगर इसे न रोका गया तो दुनियाभर के देश समाजवाद की ओर तेज़ी से बढ़ते जायेंगे। कुल मिलाकर नाटो की स्थापना दुनिया में कम्युनिज़्म विचारधारा को रोकने के लिए की गयी थी।
    एक तरफ संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा बनाये रखने की बात करता है; राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध को बढ़ावा देना चाहता है। दूसरी ओर नाटो की तरफ से यह बयान है कि यूक्रेन का भविष्य नाटो में है, जिससे यूक्रेन के साथ रूस का जंग जारी रखने को बढ़ावा मिलता है। लेख में जो आकड़े प्रस्तुत किये है कि कौन सा देश सैन्य सुरक्षा के नाम पर यूक्रेन को कितने हथियार उपलब्ध कराएगा, यह साफ दर्शाता है कि अमरीकी साम्राज्यवाद सिर्फ अपना उद्देश्य पूरा करना चाहता है। नाटो में जो सदस्य शामिल है उनमें से लगभग 50 प्रतिशत देशों की जनसंख्या एक करोड़ से कम है। इन देशों पर नाटो समझौते के नाम पर अमरीका अपनी सामाज्यवादी ताक़त का इस्तेमाल करता है। यह अनुमान लगाना कि दुनिया को एक और विश्व युद्ध की ओर ले जाया जा रहा है, यह सही साबित हो सकता है।
    अब दुनिया के लोगों को यह बात समझ आ रही है कि नाटो अमरीका के नेतृत्व वाला एक सैन्य गठबंधन है जिसमें सिर्फ अमरीका की दादागिरी चलती है। मैं मज़दूर एकता लहर का धन्यवाद करता हूं कि लेखों को तथ्यों और आकड़ों के साथ प्रस्तुत करके महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला जाता है।
    धन्यवाद,
    पंडित

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