महिलाओं के संपूर्ण उध्दार के लिये संघर्ष जिंदाबाद!

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 8 मार्च, 2011 के अवसर पर मजदूर एकता लहर हमारे देश की लाखों-लाखों संघर्षरत महिलाओं को सलाम करती है। हम उन मेहनतकश महिलाओं को सलाम करते हैं, जो मजदूर वर्ग की रोजी-रोटी और अधिकारों पर हमलों के खिलाफ़ संघर्ष में आगे हैं। हम छात्रों और मजदूरों के अधिकारों के लिये संघर्ष कर रही विश्वविद्यालयों व स्कूलों की छात्राओं को सलाम करते हैं। हम टयूनीशिया, मिस्र, लिबिया, यमन, एल्जी

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, 8 मार्च, 2011 के अवसर पर मजदूर एकता लहर हमारे देश की लाखों-लाखों संघर्षरत महिलाओं को सलाम करती है। हम उन मेहनतकश महिलाओं को सलाम करते हैं, जो मजदूर वर्ग की रोजी-रोटी और अधिकारों पर हमलों के खिलाफ़ संघर्ष में आगे हैं। हम छात्रों और मजदूरों के अधिकारों के लिये संघर्ष कर रही विश्वविद्यालयों व स्कूलों की छात्राओं को सलाम करते हैं। हम टयूनीशिया, मिस्र, लिबिया, यमन, एल्जीरिया और अन्य देशों की महिलाओं को सलाम करते हैं, जो अपने भविष्य खुद तय करने के लिये इरादे के साथ, तानाशाह सत्ताओं की हथियारबंद ताकत का सामना करती हुई, बहादुरी से सड़कों पर निकल आयी हैं।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कई विरोध प्रदर्शन और रैलियां होंगी। आज हमारे देश और सारी दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था घोर, सबतरफा संकट में फंसी हुई है। संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था और उसके सभी संस्थानों की विश्वसनीयता संकट में है, क्योंकि इन्हीं संस्थानों के जरिये मुट्ठीभर शोषक राज्य तंत्र पर नियंत्रण करते हैं और इस नियंत्रण का इस्तेमाल करके पूरे समाज से वसूली करते हैं। जनता को लूटकर खुद की तिजौरियां भरने के एकमात्र मकसद के साथ, देश की सबसे बड़ी-बड़ी इजारेदार कंपनियां, आपस में होड़ लगाकर, किस तरह सरकार की नीतियां निर्धारित करती हैं, इस बात का खुलासा हो रहा है। इसकी वजह से आज मजदूर, किसान और मध्यम तबकों के लोग पूरी व्यवस्था पर अनेक सवाल उठा रहे हैं। मजदूर-मेहनतकश एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था तलाश रहे हैं, जिसमें वे खुद फैसले ले सकेंगे, न कि मुट्ठीभर इजारेदार पूंजीपति। ऐसा विकल्प तलाशने वाली ताकतों में, महिलायें एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

हमारे देश की महिलायें तरह-तरह की नाइंसाफी के शिकार हैं, महिला बतौर तथा मेहनतकश-मजदूर बतौर। महिलायें इन सभी के खिलाफ़ संघर्ष करती आयी हैं। खाद्य और दूसरी जरूरी चीजों की आसमान छूने वाली कीमतों को घटाने की मांग को महिलाओं ने बुलंद किया है। महिलाओं ने एक आधुनिक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग की है, जिसके द्वारा खाद्य और सभी जरूरी चीजें पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता सहित, उचित दाम पर उपलब्ध हों। महिलाओं ने रोजगार के लिये तथा बेरोजगारी के खिलाफ़, मजदूरों को रोजी-रोटी की सुरक्षा दिलाने के कदमों की मांग की है। महिलायें रोजगार के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा की संविधानीय गारंटी और इन्हें लागू करने के तंत्रों के लिये संघर्ष कर रही हैं। महिलायें रोजी-रोटी का अधिकार मांग रही हैं और समान काम के लिये पुरूषों के बराबर वेतन मांग रही हैं। महिलायें निजीकरण को खत्म करने की मांग कर रही हैं, जल, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों समेत सभी सार्वजनिक संपत्तियों के निजी हाथों में सौंपे जाने का विरोध कर रही हैं। बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, नगर निगम सेवाओं तथा परिवहन जैसी सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण को खत्म करने की भी महिलाओं ने मांग की हैं।

अगली पीढ़ी के जन्मदाता बतौर, महिलायें स्वास्थ्य सेवा के अधिकार की मांग कर रही हैं। हमारे देश में महिलायें आज भी प्रचलित पिछड़े सामाजिक रिवाजों, जाति प्रथा, पिछड़ी धार्मिक रीतियों, आदि के दबाव और तरह-तरह के अत्याचार के खिलाफ़ लड़ रही हैं। पूंजीवादी व्यवस्था के तहत महिलाओं को विक्रय वस्तुओं में तब्दील किये जाने तथा यौनिक उत्पीड़न के खिलाफ़ महिलायें आवाज़ उठाती आयी हैं। महिलायें राजकीय आतंकवाद को खत्म करने की मांग कर रही हैं, राज्य के सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार, खास तौर पर कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों और अब मध्य हिन्दोस्तान में भी चल रहे गृह युध्द की हालतों में महिलाओं को खास निशाना बनाया जाना, इसका भी महिलायें डटकर विरोध कर रही हैं।

महिलायें अच्छी तरह समझती हैं कि इस हालत को बदलने के लिये यह जरूरी है कि राजनीतिक सत्ता महिलाओं समेत, मेहनतकशों के हाथों में हो। जब तक इस भ्रष्ट और परजीवी पूंजीपति वर्ग का शासन बरकरार रहेगा, तब तक महिलाओं की समस्यायें भी बनी रहेंगी। महिलाओं को यह सुनिश्चित करने के लिये संघर्ष पर डटे रहना होगा, कि मजदूर और किसान इस देश के मालिक बनें।

कई राजनीतिक पार्टियां संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण की मांग को मुख्य मांग बतौर महिला आंदोलन पर थोपना चाहती हैं। यह कहा जा रहा है कि इससे महिलाओं के साथ भेदभाव कम हो जायेगा और महिलायें सशक्त हो जायेंगी। संघर्षरत महिलाओं को इस पर गौर करना चाहिए और अपने देश व दूसरे देशों के अनुभवों के आधार पर अपना निष्कर्ष निकालना होगा। हमें यह समझना होगा कि बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्व के लोकतंत्र की व्यवस्था जो हमारे देश व अन्य देशों में चल रही है, यह व्यवस्था मेहनतकश जनसमुदाय और महिलाओं को भी राजनीतिक सत्ता से दूर रखती है। इस व्यवस्था में यह सुनिश्चित किया जाता है कि टाटा, बिरला, अंबानी, आदि का राज्य पर नियंत्रण बना रहे, कि राज्य उन्हीं की सेवा करता रहे। सरकार, शासक पार्टी और संसदीय विपक्ष की पार्टियां, बड़े अफसर, सांसद, मीडिया के ऊंचे पहुंचे व्यक्ति, ये सभी मिल-जुलकर बड़ी-बड़ी इजारेदार कंपनियों की सेवा में काम करते हैं। एक नई राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया तथा नये संस्थानों को स्थापित करने की आवश्यकता है, जिनके द्वारा यह सुनिश्चित होगा कि राजनीतिक सत्ता उनके हाथ में हो जिन्हें अब तक सत्ता से बाहर रखा गया है, जिनमें मेहनतकश महिलायें भी शामिल हैं।

आने वाले साल में देश के मजदूरों-मेहनतकशों और शासक वर्गों के बीच बड़े-बड़े संघर्ष होने वाले हैं। हमेशा की तरह, इन संघर्षों में महिलाओं की अहम भूमिका होगी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मजदूर एकता लहर महिलाओं को संपूर्ण उध्दार के लिये संघर्ष में आगे बढ़ने का आह्वान देती है।    

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