संपादक महोदय,
इस लेख को पढ़ने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई है कि पूंजीपतियों का समूह आखिरकार एक नये व्यवसाय को कैसे अपने एकाधिकार ताक़त से सिर्फ अपने भविष्य के लिए इस नये क्षेत्र (गेट इट गोइंग) का उपयोग करके अपने व्यक्तिगत मुनाफे़ बनाने और फलने-फूलने के लिए पूरी तरह से इस्तेमाल करता है।
इन सेवाओं में लगी प्रमुख कंपनियां बड़े पूंजीपतियों की हैं यह बात बिल्कुल सच है।
गिग मज़दूर एक नयी कार्य प्रणाली के तहत काम करते हैं, उन्हें यकीन दिलाया जाता है कि आप अपने काम के मालिक हैं, जब मर्ज़ी काम करें और नियमित तौर पर एक अच्छी आय घर लेकर जायें। देश के नौजवानों को बड़े-बड़े सपने दिखाए जाते हैं। देश के अंदर इतनी बेरोज़गारी है कि देश का नौजवान इस पूंजीवादी समाज में आसानी से इन सबका शिकार बन जाता है। इसमें काम करने वाले मज़दूरों की संख्या लगातार बढ़ रही है, यह इस बात का सबूत है। इन कर्मचारियों को ये बोला जाता है कि आपको अधिक पढ़ा-लिखा होने की ज़रूरत नहीं है। इससे एक ऐसा वर्ग तैयार किया जा रहा है जो देश के बड़े पूंजीपतियों के लिये अधिक मुनाफ़ा सुनिश्चित कर रहा है।
इस तरह के व्यवसाय में बड़े पूंजीपति शुरू में केवल एक डीजिटल सेट-अप तैयार करते हैं। बाद में जिनको काम पर रखा जाता है, उन्हें इस काम को करने के लिये एक तरह से खुद ही निवेश करना पड़ता है, जैसे कि अपना फोन, अपनी गाड़ी और उसके लिये अपना पेट्रोल तथा अपना घर इत्यादि। कंपनियां सिर्फ एक प्लेटफार्म प्रदान करती हैं।
जितने भी कर्मचारी इस क्षेत्र में काम करते हैं उनको किसी तरह की कोई भी सामाजिक सुरक्षा या अन्य सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। एक तरह से उनसे 24 घंटे काम लिया जाता है। उदाहरणतः अगर उनके फोन का सेट-अप ऑन है, और किसी वक्त भी आर्डर आता है, ख़ासकर डीलीवरी क्षेत्रों में, तो डीलीवरी करने वाला आर्डर कैंसल नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है तो उसकी रेटिंग नकारात्मकता की ओर जाएगी। इसका असर यह होगा कि वह एक गैर-ज़िम्मेदार कर्मचारी की सूची में शामिल हो जायेगा। इससे उसकी आय में कटौती होगी। अतः हम इसे 24 घंटे काम करना ही कहेंगे।
यही नियम अन्य क्षेत्रों पर भी लागू होता है। जैसे कि इस लेख में बताया गया है कि गिग मज़दूरों की श्रेणी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे पूंजीपति इन मज़दूरों के श्रम का शोषण करके खुद की तिजौरियां को भरते ही जा रहे हैं।
इस तरह से काम करवाने पर पूंजीपति श्रम-क़ानूनों से बच जाता है और श्रम क़ानूनों के लचीलेपन का पूरा इस्तेमाल करता है। इससे निश्चित ही पूंजीपति मालिक अपने स्थायी मज़दूरों की संख्या को कम करेगा, जिससे वह अपने मुनाफे को और अधिक बढ़ाएगा।
पंडित,
दिल्ली