प्रिय संपादक,
‘‘मणिपुर में क्या समस्या है और इसे कौन पैदा कर रहा है?‘‘ शीर्षक वाले शानदार लेख को प्रकाशित करने के लिए बधाई। इस लेख ने मीडिया के साथ–साथ कई सोशल मीडिया चैनलों पर दिखाये जाने वाले झूठ के कोहरे के पीछे की सच्चाई को उजागर करने के लिए बहुत कुछ किया है।
जैसा की इसमें साफ़ लिखा गया है, कि जो मणिपुर में पिछले दो महीनों से हो रहा है, उसे किसी भी हाल में दंगा नहीं कहा जा सकता है। दंगा वो होता है जहां लोग अपने आप ही हिंसा पर उतर आए हों। न सिर्फ सशस्त्र बल जो मणिपुर के हर हिस्से में तैनात हैं, बल्कि पुलिस को भी स्थिति को मिनटों में नियंत्रित करने के लिए प्रशिक्षण मिला है। इसके बावजूद, हिंसा हुई और पुलिस बस देखती रही। सब जानते हैं कि सशस्त्र बलों की तरह पुलिस को भी आदेशों का पालन करना पड़ता है। तो हिंसा की अनुमति देना स्पष्ट रूप से सर्वोच्च अधिकारियों की योजना थी!
ऐसा भारत में पहले भी हुआ है। जैसा कि इस लेख ने हमे याद दिलाया है, कांग्रेस ने 1984 और भाजपा ने 2002 के नरसंहारों को आयोजित किया और उन्हें सांप्रदायिक हिंसा बताकर लोगों को गुमराह किया। वास्तव में, ‘‘दंगा‘‘ शब्द उपयोग करके शासक वर्ग ने अपने राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा किए गए अपराधों के लिए आम लोगों को दोषी ठहराने की जानबूझकर कोशिश की है।
जैसा लेख में बताया गया है, यह ध्यान में रखना उचित है कि सभी समुदायों के लोग सदियों से एक साथ शांति से रहते आ रहे हैं और एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग, लोगों को बांटने और उन पर शासन करने के लिए जानबूझकर भावनाएं भड़काते हैं। लेकिन, हमेशा की तरह, मणिपुर में भी आम लोगों ने अपनी जान जोखि़म में डालकर दूसरे समुदाय के लोगों को बचाया।
सबसे खुशी की बात यह है कि ‘‘ऐसे कई जिले हैं जो शांतिपूर्ण रहे हैं, जैसे कि वे क्षेत्र जहां नागा लोगों के संगठनों को व्यापक समर्थन प्राप्त है।‘‘ यदि जन संगठन, अपने कम संसाधनों के साथ, अपने क्षेत्रों को शांतिपूर्ण रख सकते हैं, तो इससे केंद्र और मणिपुर सरकारों के खिलाफ मामला और भी मजबूत हो जाता है।
मणिपुर में हिंसा के पीछे वास्तव में पूंजीपति वर्ग का शासन है। इस वर्ग में मुट्ठीभर लोग हैं और सत्ता में बने रहने के लिए ‘‘फूट डालो और राज करो‘‘ इस वर्ग के पसंदीदा तरीकों में से एक है।
पूर्वोत्तर और विशेष रूप से मणिपुर की स्थिति पर प्रकाश डालने के लिए धन्यवाद। दशकों से कुख्यात आफ़्स्पा के खिलाफ शक्तिशाली संघर्ष हुए हैं और आपने उन्हें उजागर किया है। जैसा कि आपने स्पस्ट बताया है, इस हिंसा को फैलाने का असली उद्देश्य सैन्य शासन और आफ्स्पा को जारी रखना है। शासक वर्ग के ‘पूर्व की ओर देखो नीति‘ के लिए भारत से दक्षिण पूर्व एशिया के देशों तक सड़क और रेल मार्ग बनाने (जो मणिपुर और म्यांमार से होकर गुजरेगी) की अपनी योजना को लागू करने के लिए यह आवश्यक है।
मणिपुर के लोगों को सभी के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी एकता और अपने साझे संघर्ष को मजबूत करना होगा, साथ ही, हम जो देश के बाकी हिस्सों में रहते हैं, उन्हें शासक वर्ग के झूठे प्रचार में नहीं आना चाहिए। हमें मणिपुरी लोगों और उनके अधिकारों के संघर्ष के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करना चाहिए। उनका संघर्ष यह सुनिश्चित करने के लिए कि संप्रभुता लोगों में हाथों में हो, राजनीतिक व्यवस्था में पूर्ण परिवर्तन करने के हमारे साझे संघर्ष का एक हिस्सा है। हम लोगों को नीतियां और कानून बनाने और अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहरने का अधिकार होना चाहिए। हमें अर्थव्यवस्था को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से बदलकर नई दिशा में ले जाना होगा, न कि पूंजीवादी लालच को पूरा करने के लिए, जैसा कि आज हो रहा है।
संगीता, मुंबई