यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ न्याय के लिये संघर्ष करने वाले पहलवानों पर राज्य के दमन और पुलिस के अत्याचार की निंदा करते हुए, 6 जून, 2023 को महिलाओं और मानवाधिकार संगठनों द्वारा सामूहिक बयान जारी किया गया
जिस तरह से दिल्ली पुलिस, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सर्वोच्च स्तर पर क़ानून को तोड़ने में क़ामयाबी हासिल की है तथा नाबालिग सहित महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बावजूद भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह को पुलिस की गिरफ्त से बाहर रखा है, हम अधोहस्ताक्षरी महिला और मानवाधिकार संगठन उसकी निंदा करते हैं।
यह सर्वविदित है कि प्रभावशाली और अच्छी तरह से राज्य व्यवस्था से जुड़े हुए लोग, जिनमें विधायिका के सदस्य और धर्मगुरु शामिल हैं, गवाहों को डराने-धमकाने सहित विभिन्न तरीक़ों के ज़रिये क़ानून में हेरफेर कर सकते हैं। यौन उत्पीड़न और मारपीट के मामलों में शिकायतकर्ताओं को अक्सर अपने बयान को बदलने के लिए मजबूर किया जाता है। दबाव इतना अधिक होता है कि परिवार वाले घुटने टेक देते हैं और आरोपी बच जाते हैं।
पहलवानों के मामले में नाबालिग के पिता ने सुप्रीम कोर्ट से यह कहते हुये सुरक्षा की गुहार लगाई थी कि बृजभूषण सिंह प्रभावशाली व्यक्ति हैं। लड़की के पिता को यह डर था कि पीड़िता को डराया-धमकाया जायेगा और उस पर दबाव बनाया जाएगा। नाबालिग, जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354 (ए), 354 (डी)/34 और यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम अधिनियम (पी.ओ.सी.एस.ओ.) के तहत कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी 0077/2023 में मुख्य गवाही दी थी और जिसने मई 2023 में न्यायधीश के सामने एक शपथपत्र पेश करते हुये बयान भी दिया था।
पी.ओ.सी.एस.ओ. में यह माना जाता है कि अपराध हुआ है, विशेष रूप से जब न्यायाधीश के सामने बयान हो चुका हो, इसलिए गिरफ्तारी ज़रूरी होती है। चूंकि प्राथमिक गवाह नाबालिग है, इसलिए क़ानून दबाव के प्रति संवेदनशील है। इन कारकों के बावजूद, अभियुक्त बृजभूषण सिंह गिरफ्तार होने के डर से मुक्त, खुलेआम घूम रहा है। तत्काल गिरफ्तारी न करने का परिणाम यह हुआ है कि प्राथमिकी दर्ज़ होने के पांच सप्ताह बाद, यह आरोप लगाया जा रहा है कि 2 जून को नाबालिग ने न्यायाधीश के सामने अपने मूल बयान को बदलते हुये दूसरा बयान दिया है।
हमें बहुत स्पष्ट है कि यह अदालत की ज़िम्मेदारी है कि वह स्वतंत्र रूप से जांच की निगरानी करे और एक उचित निष्कर्ष पर पहुंचे। लेकिन, हम यह बताना चाहते हैं कि इस देश में कोई गवाहों की सुरक्षा कोई क़ानून नहीं है और एक बार फिर आपराधिक न्याय प्रणाली ने न्याय के लिए संघर्ष कर रही हमारी महिलाओं को विफल कर दिया है।
इस बीच, दिल्ली पुलिस को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से जांच जारी रखनी चाहिए और तुरंत बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार करना चाहिए और दूसरी प्राथमिकी 0078/2023, धारा 354, 354 (ए), 354 (डी)/34, सहित मजबूत चार्जशीट दाखिल करनी चाहिए जिसमे छह महिला पहलवान शिकायतकर्ता हैं।
हम मांग करते हैं कि 28 मई, 2023 को पहलवानों पर की गई क्रूर हिंसा के लिए दिल्ली पुलिस के खि़लाफ़ कार्रवाई की जाए। पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग के साथ विरोध प्रदर्शन को तोड़ दिया, पहलवानों को हिरासत में ले लिया और उन्हें जंतर-मंतर से खदेड़ दिया। उन्हें संसद मार्ग पुलिस स्टेशन की प्राथमिकी संख्या 60/2023 में अपराधियों के रूप में नामित किया जाना जारी है। हम इसके तत्काल निपटारे की मांग करते हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य, हिन्दोस्तान के लिए कई पुरस्कार जीतने वाले पहलवानों की मदद करने के बजाय, उन्हें शारीरिक और भावनात्मक रूप से परेशान कर रहा है, जिसमें आगामी खेल आयोजनों के लिए चयन और भारतीय रेल में उनकी नौकरी से संबंधित ख़तरा भी शामिल है।
यह गहरी पीड़ा का क्षण है कि यौन हिंसा के ख़िलाफ़ क़ानून को मजबूत करने और शिकायतकर्ताओं को न्याय के लिए लड़ने में सक्षम बनाने के पिछले पांच दशकों के न्यायशास्त्र के बावजूद भी, पहलवानों के मामले में हुए घटनाक्रम से हमें यही पता चलता है कि दंड से मुक्ति का चलन कितनी गहराई से अंतर्निहित है तथा भाजपा द्वारा प्रबलित किया गया है।
हम अपना आक्रोश व्यक्त करते हैं तथा आरोपी बृजभूषण सिंह को भाजपा से मिले समर्थन की निंदा करते हैं, कि उन्हें यूपी के कैसरगंज और अन्य शहरों में आगामी भाजपा रैलियों को संबोधित करने की अनुमति दी जाएगी। इस तरह के सार्वजनिक महिमामंडन और वैधता को अब बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह पूरे देश में बलात्कार और यौन हिंसा से लड़ने वाली महिलाओं के लिए विनाशकारी और हतोत्साहित करने वाला होगा।
महिला आंदोलन और अन्य सामाजिक आंदोलन वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं। हम पीछे नहीं हटेंगे, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ेंगे, इससे पहले कि और गवाहों को धमकाया जाए, जिसकी शुरुआत बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी से होनी चाहिए। हमारे पहलवानों के न्याय और सम्मान की लड़ाई उनकी अकेली लड़ाई नहीं है, बल्कि कानून के शासन को लागू करने की लड़ाई है।
हस्ताक्षर कर्ता : आल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन (ए.आई.डी.डब्ल्यू.ए.) से मरियम धावले, आल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन्स एसोसिएशन (एपवा) से मीना तिवारी, आल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (ए.आई.एम.एस.एस.) से रितु कौशिक, एक्ट नाउ फ़ॉर हार्मनी एंड डेमोक्रेसी (ए.एन.एच.ए.डी.) से शबनम हाशमी, सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग वीमेन (सी.एस.डब्ल्यू.) से माया जॉन, इंडियन क्रिस्चियन वीमेन्स मूवमेंट, दिल्ली (आई.सी.डब्ल्यू.एम.-दिल्ली) से सुषमा रामास्वामी, लॉयर्स कलेक्टिव के सचिव, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन (एन.एफ.आई.डब्ल्यू.) से एनी राजा, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पी.यू.सी.एल.) से कविता श्रीवास्तव, प्रगतिशील महिला संगठन से पूनम कौशिक, पुरोगामी महिला संगठन से सुचरिता बीके, सहेली वीमेन्स रिसोर्स सेंटर से वाणी सुब्रमण्यम, यंग वीमेन्स क्रिस्चियन एसोसिएशन से धीया एन मैथ्यू