8 अप्रैल, 2013 को मार्ग्रेट थैचर का देहांत हुआ। 1979 से लेकर 1990 तक वे ब्रिटेन की प्रधान मंत्री थीं। प्रधान मंत्री बतौर, उन्होंने ब्रिटेन के सबसे बड़ी इजारेदार पूंजीपतियों की तरफ से, मज़दूर वर्ग व मेहनतकश लोगों के अधिकारों पर एक घमासान हमला किया जिससे ब्रिटेन में बेरोज़गारी, गरीबी व असमानतायें इतनी ज्यादा बढ़ीं, जितनी पिछले कई दशकों में नहीं देखी गयी थीं। अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के साथ, उसे
8 अप्रैल, 2013 को मार्ग्रेट थैचर का देहांत हुआ। 1979 से लेकर 1990 तक वे ब्रिटेन की प्रधान मंत्री थीं। प्रधान मंत्री बतौर, उन्होंने ब्रिटेन के सबसे बड़ी इजारेदार पूंजीपतियों की तरफ से, मज़दूर वर्ग व मेहनतकश लोगों के अधिकारों पर एक घमासान हमला किया जिससे ब्रिटेन में बेरोज़गारी, गरीबी व असमानतायें इतनी ज्यादा बढ़ीं, जितनी पिछले कई दशकों में नहीं देखी गयी थीं। अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के साथ, उसे भी दुनिया के स्तर पर जहरीले कम्युनिस्ट-विरोधी व नव-उदारवाद के फलसफे व कार्यक्रम का प्रतीक माना जाने लगा है। मालविनास (फॉकलैंड) द्वीप के मसले पर अर्जेंटीना से जंग छेड़कर, और यूरोपीय संघ की तरफ अपनी नीतियों के ज़रिये, उसने गिरते हुये बर्तानवी साम्राज्यवाद के रुतबे में जान डालने की कोशिश की।
थैचर उस वक्त सत्ता में आयी जब बर्तानवी इजारेदार पूंजीपति एक गहरे संकट में थे। ब्रिटेन में संवर्धन की दर बहुत कम हो गयी थी और दुनिया में उसका दर्जा घट रहा था। थैचर की रणनीति में एक तरफ, “अर्थव्यवस्था को आज़ाद करने व संवर्धन को बढ़ावा देने” के नाम पर राज्य द्वारा खुल्लम-खुल्ला पूंजीपतियों की तरफदारी थी। दूसरी तरफ, मज़दूर वर्ग व ट्रेड यूनियनों के खिलाफ़ बेझिझक हमले और सामाजिक सुविधाओं व बर्तानवी मेहनतकश लोगों द्वारा दशकों के कठोर संघर्ष से जीते अधिकारों में जबरदस्त कटौतियां थीं।
थैचर को मालूम था कि इस कार्यक्रम को लागू करने के लिये बर्तानवी मज़दूर वर्ग व ट्रेड यूनियनों पर घमासान युद्ध छेड़ना पड़ेगा, क्योंकि बर्तानवी मजदूर वर्ग की, अपने व दूसरे मेहनतकश लोगों के अधिकारों के बचाव के लिये, संघर्ष करने की लंबी परंपरा है। 1982 में रोज़गार पर काला कानून पारित करना इस दिशा में एक कदम था। यूनियनों व उनके सदस्यों द्वारा भीषण संघर्ष के बावजूद, थैचर सरकार ने अपने वर्ग के हित की रक्षा में, निर्दयता व योजनाबद्ध तरीके से उनकी ताकत को काटा।
थैचर सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों के दिशा परिवर्तन से ब्रिटेन के विनिर्माण और खनन क्षेत्रों में तेज़ी से पतन हुआ। इन क्षेत्रों में रोजगार पर निर्भर लाखों मेहनतकश लोगों के परिवारों तथा पूरे के पूरे समुदायों व इलाकों पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ा। श्रम बाज़ार समेत, “बाज़ारों को स्वतंत्रता देने” के नाम पर, उद्यमों में काम करने वाले लोगों की रोजी-रोटी की परवाह किये बगैर, पूंजीपतियों को उद्यम बंद करने व स्थानांतरण करने की पूरी छूट दी गयी। नतीजतन बेरोज़गारी बेहद बढ़ गयी। अमीरों व गरीबों के बीच की दरार, युद्ध के बाद की अवधि में, सबसे अधिक हो गयी। आबादी के निचले 40 प्रतिशत लोगों की असली आय में जोरदार गिरावट आयी।
कई दशकों से ब्रिटेन के मज़दूर वर्ग व लोगों ने संघर्ष करके, राज्य द्वारा आर्थिक सहायता सहित स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाएं व सामाजिक कल्याण के साधन हासिल किये थे। थैचर की सत्ता ने इन्हें अर्थव्यवस्था को “खोखला करने वाला” बताकर इन पर हमले किये। स्कूलों व उचित स्वास्थ्य सेवा की अधोगति के साथ, इनका गंभीर सामाजिक परिणाम हुआ जिसे ब्रिटेन के लोग आज तक भुगत रहे हैं। साथ ही, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के नाम पर, सबसे बड़े इजारेदारों को प्रत्यक्ष रूप से करों में छूट व वित्तीय सहायता दी गयी।
थैचर ने “छोटे धंधों” को, बर्तानवी लोकतंत्र की व उदारवादी मूल्यों की आधारशिला बताकर, उन्हें सहायता देने के नाम पर, मज़दूर वर्ग व लोगों पर हमलों की सफाई दी। असलियत में, उसके शासन में, छोटे धंधों को नहीं, बल्कि सबसे बड़े पूंजीवादी इजारेदारों को फायदा हुआ।
थैचर की पूंजीपति-सहायक व मज़दूर-विरोधी हमलों की दार्शनिक सफाई में दी गयी नव-उदारवादी धारणा यह थी कि “व्यक्ति” को अपने हित को आगे बढ़ाने की पूरी छूट होनी चाहिये और राज्य व समाज इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकता। थैचर की यह टिप्पणी मशहूर है कि “समाज नाम की कोई चीज ही नहीं होती।” यह एक कपटपूर्ण धारणा है जिसके द्वारा उत्पादन के मौजूदा बढ़ते सामाजीकरण पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है। वास्तव में, ऐसे व्यक्ति की धारणा एकदम काल्पनिक है जो अपने हित को आगे बढ़ाने के लिये ’आज़ाद’ हो। बर्तानवी राज्य पूरी तरह से इजारेदारों के नियंत्रण में है और ये इजारेदार अपने साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति के लिये अर्थव्यवस्था की दिशा तय करते हैं। राज्य की दखलंदाजी बंद करने का नारा, बेशर्मी से इजारेदारों के हित में राज्य की दखलंदाजी को उचित ठहराने के लिये दिया गया, जबकि मेहनतकश लोगों व उनके अधिकारों पर घमासान हमला किया गया।
नव-उदारवादी फलसफे और निजीकरण व उदारीकरण का कार्यक्रम, थैचर जिसकी एक उत्साही पक्ष-समर्थक थी, उन्हें पिछले कुछ दशकों में, खास तौर पर सोवियत संघ के विघटन के बाद, सबसे बड़े पूंजीपति इजारेदारों ने दुनियाभर में थोपा है। हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीपतियों व उनके राजनीतिक प्रतिनिधियों का भी यही कार्यक्रम व फलसफा है। हिन्दोस्तानी मज़दूर वर्ग व लोगों को इस कार्यक्रम व फलसफे के ब्रिटेन व दूसरे देशों में, जहां इसे लागू किया गया है, वहां इसके भयानक नतीजों से सीख लेनी चाहिये।
थैचर-रीगन संगत दुनियाभर में कम्युनिस्ट-विरोधी हमले में सबसे आगे थे, जिस हमले के चलते 1991 में सोवियत संघ को ढहते देखा गया। अमरीकी साम्राज्यवादियों से मिलजुल कर, थैचर, हमलावर बर्तानवी साम्राज्यवाद को पुनर्जीवित करने की उत्साही पक्ष-समर्थक थी। 1982 में, पूर्व बर्तानवी साम्राज्य के वैभव को पुनः प्राप्त करने की बेढंगी कोशिश में, अर्जेंटीना के तट के नज़दीक, ब्रिटेन से हजारों कि.मी. दूर एक छोटे से द्वीप को हड़पने के लिये उसने अर्जेंटीना से युद्ध किया। जंग का मकसद बर्तानवी अन्ध-देशभक्ति व कट्टर राष्ट्रवाद को हवा देना था ताकि ब्रिटेन के गहरे वर्ग विभाजन को छुपाया जा सके। आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी गठबंधन, जिसे मजबूत करने में थैचर ने योगदान दिया, वह पिछले दो दशकों में, बाल्कन, फारस की खाड़ी, उत्तरी अफ्रीका, अफग़ानिस्तान आदि जगहों पर अनेक हमलावर साम्राज्यवादी अभियानों का प्रमुख सहारा रहा है।
बर्तानवी व विश्व साम्राज्यवाद की सेवा में उनकी सरगर्म कोशिशों के कारण, ब्रिटेन के पूंजीपति व दुनियाभर के इजारेदार पूंजीपतियों ने उनके देहांत पर, थैचर के बहुत गुणगान किये। परन्तु, ब्रिटेन व पूरी दुनिया के मज़दूर वर्ग व मेहनतकश लोग उनकी नीतियों व कार्यक्रम के अत्यंत हानिकारक परिणामों को कभी भूल नहीं सकते।