गिग मज़दूर :
तीव्र पूंजीवादी शोषण

ब्लिंकिट के डिलीवरी मज़दूरों ने इस साल के अप्रैल महीने में, प्रति डिलीवरी पर किये गए वेतन में कटौती को लेकर जो हड़ताल की थी, उससे गिग मज़दूरों की हालतों और समस्याओं का मुद्दा फिर से उभर कर आगे आया है।

Blinkit Workers“गिग” (गेट इट गोइंग) शब्द एक ऐसा आम बोलचाल वाला शब्द है जिसका मतलब है – किसी निर्धारित समय के लिए नौकरी। परंपरागत रूप से इस शब्द का इस्तेमाल, संगीतकार या सांस्कृतिक कलाकार, किसी कार्यक्रम के लिए किसी संस्थान के साथ किसी विशेष अनुबंध के सन्दर्भ में करते थे।

गिग मज़दूर एक नयी कार्य प्रणाली के अनुसार काम करता है और अपनी रोज़ी-रोटी कमाता है, जो फैक्ट्री मालिक और मज़दूर की परंपरागत व्यवस्था से भिन्न है। चूंकि इन मज़दूरों से काम करवाने वाले संस्थान ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफार्म के ज़रिये उनसे संपर्क करते हैं, इसलिए उन्हें प्लेटफॉर्म-वर्कर्स के नाम से भी जाना जाता है। “गिग इकॉनमी” के अन्दर कंपनी के मालिक, यानी जो मज़दूरों की सेवाओं को अनुबंधित करते हैं, और साथ ही, उनके लिए काम करने वाले मज़दूर, दोनों शामिल हैं।

गिग-इकॉनमी हाल के वर्षों में, हिन्दोस्तान में, अर्थव्यवस्था के अधिक से अधिक क्षेत्रों में तेज़ी से विस्तार कर रही है। गिग इकॉनमी में, काम करने वाले मज़दूरों की कुल संख्या के साथ-साथ, इसमें किये जाने वाले कार्यों की विविधता भी बढ़ रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस समय हिन्दोस्तान में 1.5 करोड़ से अधिक गिग-वर्कर्स हैं। इनमें से अनुमानित 99 लाख डिलीवरी-सेवाओं में लगे हैं। 2022 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 2.35 करोड़ मज़दूर 2029 तक, गिग-इकॉनमी में काम कर रहे होंगे।

डिलीवरी सेवाओं में लगी कई कंपनियां सबसे बड़े हिन्दोस्तानी-इजारेदार पूंजीपतियों के धन से समर्थित हैं, जैसे कि बिग-बास्केट टाटा-ग्रुप से और डंज़ो मुकेश अंबानी के रिलायंस ग्रुप से।

अमेज़न और वॉलमार्ट (फ्लिपकार्ट का मालिक है) जैसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी, बड़ी संख्या में डिलीवरी-मज़दूरों की सेवाओं का इस्तेमाल करती हैं।

uber-strike-in-mumbaiइस समय गिग मज़दूरों की श्रेणी में, फ्रीलांस वर्कर्स, इंडिपेंडेंट कॉन्ट्रैक्टर्स, प्रोजेक्ट-बेस्ड वर्कर्स और फिक्स्ड-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स पर लिए गए अस्थायी या पार्ट-टाइम मज़दूर शामिल हैं। इनमें उबर जैसे कैब-एग्रीगेटर कंपनियों द्वारा  नियोजित ड्राइवर, डिलीवरी-वर्कर्स, फ्रीलांस पत्रकार, लेखक और संपादक, कलाकार, कंसल्टेंट्स, डिज़ाइनर्स और ऑनलाइन डिजिटल पीस-वर्कर्स भी शामिल हैं। उबर, एयरबीएनबी, अर्बन कंपनी, स्विगी, ज़ोमैटो, डंज़ो आदि जैसे टेक-प्लेटफॉर्म द्वारा यात्रा, होटल, आवास, घर की मरम्मत और रखरखाव, भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी, आदि जैसी कई सेवाएं प्रदान करने के लिए गिग-वर्कर्स का इस्तेमाल किया जाता है। ज्ञान की लेनदेन से जुड़ी सेवाओं पर केंद्रित कई विशिष्ट गिग-प्लेटफॉर्म भी बनाये गए हैं, जो ग्राहकों को अलग-अलग वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों, प्रबंधन-सलाहकारों (मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स) आदि की सेवाओं को प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं।

गिग इकॉनमी के विस्तार के पीछे कारण

गिग इकॉनमी में बड़ी संख्या में युवाओं के शामिल होने के पीछे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण, बढ़ती बेरोज़गारी और सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों, दोनों में नियमित रोज़गार की कमी है।

हाल के वर्षों में, 60,000-80,000 रुपये प्रति माह या उससे अधिक कमाने वाले कुशल मज़दूरों की बड़ी संख्या को अपनी नौकरियों से हाथ धोने पड़े हैं, क्योंकि कम्पनियां बंद हो गयी हैं या उनमें मज़दूरों की भारी छंटनी की गयी है। कोविड-19 के लॉकडाउन ने इस प्रक्रिया को और भी तेज़ कर दिया था। ये मज़दूर अब अपने परिवारों को बर्बाद होने से बचाने के लिए, गिग इकॉनमी में महज 12,000-15,000 रुपये प्रति माह के वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हैं।

बढ़ते ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल, हाई स्पीड कंप्यूटेशन सिस्टम और आधुनिकतम तकनीकों के साथ, पूंजीपति मालिक अपने काम के लिए आवश्यक स्थायी मज़दूरों की संख्या को घटा रहे हैं और बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छंटनी कर रहे हैं। इस तरह वे उत्पादन की लागत में कटौती कर रहे हैं और अपने मुनाफ़े बढ़ा रहे हैं। उद्योग के साथ-साथ, सेवाओं में भी नियमित रोज़गार मिलने की संभावनाएं बहुत कम होती जा रही हैं।

आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से तेज़ी से काम को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से, दूर से किया जा सकता है, जिसके लिए निश्चित संख्या में मज़दूरों को निश्चित स्थान पर, निश्चित समय के लिए उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। उपयोगकर्ताओं के लिए आसान, आधुनिक डिजिटल तकनीकों के विकास की वजह से, कुछ हद तक बुनियादी शिक्षा प्राप्त नौजवान, बड़ी संख्या में गिग मज़दूरों की श्रेणी में, ख़ास कर माल डिलीवरी, कैब चलाने आदि जैसी सेवाओं में शामिल होने में सक्षम हो गए हैं।

बढ़ता पूंजीवादी शोषण

गिग इकॉनमी के मज़दूरों को, हिन्दोस्तान के श्रम-क़ानूनों के अनुसार, मज़दूर नहीं माना जाता है। पूंजीपति जो इन मज़दूरों के श्रम का शोषण करके खुद की तिजौरियां भर रहे हैं, वे जानबूझकर इन मज़दूरों को “डिलीवरी पार्टनर”, “डिलीवरी एग्जीक्यूटिव” आदि जैसे नाम देते हैं। यह गिग इकॉनमी के अन्दर, मालिकों और मज़दूरों के बीच के वास्तविक शोषक, पूंजीवादी चरित्र को छिपाने के लिए किया जाता है। (देखिये : गिग-मज़दूरों के पास कोई क़ानूनी अधिकार नहीं हैं)

गिग इकॉनमी में पूंजीपति अपनी उत्पादन लागत में भारी कटौती कर सकते हैं। पूंजीवादी मालिकों के लिए, गिग मज़दूरों को कोई भी ऐसी सुविधाएं मुहैया कराने की आवश्यकता नहीं है, जो नियमित मज़दूरों को क़ानूनन अधिकार बतौर मुहैया कराने पड़ते हैं – जैसे कि बीमारी के लिए अवकाश, मातृत्व और शिशु पालन अवकाश, ई.एस.आई.सी. के रूप में स्वास्थ्य बीमा व सुविधाएं, आदि। पूंजीपतियों को, गिग-मज़दूरों को क़ानून के अनुसार न्यूनतम वेतन या ओवरटाइम नहीं देना पड़ता है। उन्हें मज़दूरों के प्रशिक्षण पर खर्च करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें मज़दूरों को कार्यालय-स्थान, उपकरण और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें मज़दूरों को काम से संबंधित खर्चों, जैसे यात्रा लागत, इंटरनेट और मोबाइल फोन का खर्च, काम पर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए मुआवज़ा, आदि नहीं देना पड़ता है। उन्हें पेंशन या प्रोविडेंट फंड के रूप में, मज़दूरों के लिए सामाजिक-सुरक्षा पर कोई निवेश नहीं करना पड़ता है।

गिग इकॉनमी में, पूंजीपतियों को जब-जब मज़दूरों की सेवाओं की ज़रूरत होती है, तब-तब वे मज़दूरों के साथ अस्थायी अनुबंध बना सकते हैं। कंपनी द्वारा मज़दूरों को निश्चित वेतन पर पूरे समय के लिए, काम पर रखने की ज़रूरत नहीं होती है।

हमारे देश में, बेरोज़गारी की गंभीर हालतों में, पूंजीपति मालिक मज़दूरों का अधिकतम शोषण कर सकते हैं। गिग मज़दूरों को कम वेतन पर, लंबे समय तक काम करने और काम करने की अमानवीय परिस्थितियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, क्योंकि अगर वे इन्हें स्वीकार करने से इनकार करते हैं, तो उन्हें बाहर निकाला जा सकता है और उनकी जगह लेने के लिए हजारों और मज़दूर मिल सकते हैं। (देखिये : गिग मज़दूरों द्वारा विरोध)

गिग मज़दूरों के सामने समस्याएं

रोज़गार की असुरक्षा, स्थाई नौकरी और पर्याप्त आमदनी न होना, यह गिग मज़दूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या है।

(देखिये : इंसेंटिव, जो पहले दिए गए और बाद में कैब ड्राइवरों से वापस लिए गये)
(देखिये : क़ानूनी न्यूनतम वेतन की तुलना में गिग मज़दूरों की आमदनी)

गिग मज़दूरों के काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं। उनके काम के घंटे अक्सर दिन में 12-14 घंटे से अधिक हो जाते हैं। इससे उनका स्वास्थ्य, पारिवारिक और सामाजिक जीवन प्रभावित होता है।

डिलीवरी सेवाओं से जुड़े गिग मज़दूरों पर, कम से कम समय में डिलीवरी देने और एक निश्चित समय में डिलीवरियों की संख्या को अधिकतम करने का दबाव होता है। नतीजतन, वे सड़क दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं जो कभी-कभी घातक हो सकती हैं। उबर और ओला जैसी कैब एग्रीगेटर कंपनियों के मज़दूरों पर, एक निश्चित समय में सफ़र कराये गए सवारियों की संख्या को अधिकतम करने का दबाव होता है, जिससे उनके सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

कैब चलाने और माल डिलीवरी करने वाले गिग मज़दूरों के पास अपना वाहन होना आवश्यक होता है। इसलिए मज़दूरों को वाहन खरीदने के लिए क़र्ज़ा लेना पड़ता है। नौकरी की असुरक्षा को देखते हुए, समय पर क़र्ज़े की किश्त चुकाना, उन पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाता है।

निष्कर्ष

पूंजीपति वर्ग के प्रवक्ता गिग इकॉनमी को बढ़ती बेरोज़गारी की समस्या का “अभिनव” समाधान बताकर, उसे बढ़ावा देते हैं। वे कहते हैं कि नौजवान गिग मज़दूरी को पसंद करते हैं क्योंकि गिग मज़दूरों को काम की शर्तों के मामले में अधिक “लचीलापन” मिलता है।

यह सच नहीं है। गिग मज़दूरों के काम के असाइनमेंट और काम की हालतें, पूरी तरह से कंपनी प्लेटफॉर्म द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले कंप्यूटर अल्गोरिथम के द्वारा निर्धारित की जाती हैं। ये अल्गोरिथम उनके काम के घंटे, वेतन आदि निर्धारित करती हैं और इनके ज़रिये उनके काम करने के तरीके़ को ट्रैक किया जाता है। यदि मज़दूर इनका विरोध करते हैं, तो उन्हें बाहर निकाल दिया जाता है और उनकी जगह पर, लाइन में लगे और मज़दूरों को रख लिया जाता है। नौजवान इस गिग इकोनॉमी में शामिल होने के लिए सिर्फ़ इसलिए मजबूर हैं क्योंकि उनके पास रोज़गार के कोई अन्य अवसर नहीं हैं। वास्तव में, गिग इकॉनमी में पूंजीपतियों को ही मज़दूरों को काम पर रखने और निकालने में बहुत अधिक “लचीलापन” प्राप्त होता है।

गिग इकोनॉमी पूंजीपतियों को, मज़दूरों को कम से कम वेतन देकर, उनसे ज़्यादा से ज़्यादा काम निकालने की क्षमता देता है। यह बढ़ते पूंजीवादी शोषण के अलावा और कुछ नहीं है। गिग मज़दूर बस एक गुलाम है, उन सभी अधिकारों से पूरी तरह से वंचित है, जिनके लिए दुनियाभर के मज़दूरों ने और हमारे देश के मज़दूरों ने सौ से अधिक सालों तक संघर्ष किये हैं।

ट्रेड यूनियनों ने सरकार से मांग की है कि गिग मज़दूरों को सरकार द्वारा घोषित  न्यूनतम वेतन के साथ-साथ, नियमित मज़दूरों की तरह सामाजिक सुरक्षा और अन्य लाभ भी देना, सभी पूंजीपति मालिकों के लिए क़ानूनी तौर पर अनिवार्य कर दिया जाये।

जैसे-जैसे नौजवानों की बढ़ती संख्या को गिग इकॉनमी में काम करने को मजबूर किया जाता है, वैसे-वैसे ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों के लिए यह अत्यंत ज़रूरी हो जाता है कि इन मज़दूरों के लिए भी काम के निश्चित घंटे, न्यूनतम वेतन, नौकरियों की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, संगठित होने के अधिकार और उनकी शिकायतों के निवारण के साधन, जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज़ किया जाये। गिग मज़दूरों को बाकी मज़दूर वर्ग और सभी उत्पीड़ितों के साथ एकजुट होकर संघर्ष करना होगा, ताकि पूंजीवादी शोषण की मौजूदा व्यवस्था को ख़त्म किया जाये और उसकी जगह पर एक ऐसी नई व्यवस्था का निर्माण किया जाये, जो सभी के लिए रोज़ी-रोटी की सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन जीने की हालतें सुनिश्चित करेगी।

इंसेंटिव, जो पहले दिए गए और बाद में कैब ड्राइवरों से वापस लिए गये

अपने शुरुआती दिनों में, उबर और ओला जैसी कंपनियां, मज़दूरों को तरह-तरह से लुभाकर, बाज़ार पर अपना कब्ज़ा करना चाहती थीं। ड्राइवरों से वादा किया गया था कि वे एक महीने में 1 लाख रुपये तक कमा सकते हैं। कई लोगों ने खेती की ज़मीन को बेचकर या अपनी ज़िंदगीभर की बचत को लगाकर, कार ख़रीदी।

“शुरुआत में, 10 ट्रिप पूरी करने पर 3,000 रुपये का इंसेंटिव देने का वादा किया गया था। तब एक ड्राइवर एक दिन में लगभग 4,000-5,000 रुपये कमा लेता था। उसके बाद, कंपनी ने एक न्यूनतम व्यापार गारंटी योजना शुरू की, जिसके तहत एक ड्राइवर को यात्रा के निश्चित घंटों को पूरा करने के बाद एक निश्चित रकम  दिए जाने का वादा किया गया था। उसके बाद इस योजना को फिर से बदला गया और ड्राईवर को यात्राओं की एक निश्चित संख्या पूरी करने के लिए बोला गया। कंपनी ने कहा कि अगर ड्राइवर इतनी यात्राओं से एक निश्चित रकम नहीं प्राप्त कर सकेगा तो कंपनी बक़ाया राशि की भरपाई करेगी। फिर ये कंपनिया, 3,000 रुपये कमाने के लिए बेंगलुरु जैसे शहर में प्रतिदिन 20 यात्राएं पूरी करने की जैसी बिल्कुल असंभव योजनायें लाई। जब वे लगभग पूरे बाज़ार पर क़ब्ज़ा करने में क़ामयाब हो गए, तो उन्होंने कहा कि वे अब कोई इंसेंटिव नहीं देंगे”, ऐसा ओला-उबर ड्राइवर्स एंड ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया।

जब ग्राहकों को वातानुकूलित कार की सवारी और रियायती किराए की आदत पड़ गई, तो ग्राहकों को लुभाने पर खर्च किए गए पैसे की भरपाई सर्ज-प्राइसिंग (बढ़ती मांग के साथ बढ़ता किराया) से की गई। मज़दूरों के इंसेंटिव ख़त्म कर दिये गए।
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क़ानूनी न्यूनतम वेतन की तुलना में गिग-मज़दूरों की आमदनी

21 अप्रैल, 2023 को दिल्ली सरकार की नवीनतम घोषणा के अनुसार, कुशल-मज़दूरों का मासिक वेतन 20,903 रुपए है, जबकि अर्ध-कुशल मज़दूरों का मासिक वेतन 18,993 रुपए है।

इसकी तुलना में, किसी डिलीवरी मज़दूर की औसत आमदनी 10,383-18,000 रुपए प्रति माह है। उबर और ओला टैक्सी-ड्राइवरों की औसत आमदनी एक वर्ष में 2 लाख से 3 लाख रुपए तक होती है, यानी लगभग 16,000-25,000  रुपए प्रति माह। हाल के वर्षों में कई डिलीवरी-मज़दूरों और टैक्सी-ड्राईवरों की औसत आमदनी कम होती जा रही है।
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