ब्लिंकिट (जिसका मालिक ज़ोमैटो है) के डिलीवरी मज़दूरों ने इस साल 12 अप्रैल को, कंपनी द्वारा उनके डिलीवरी भत्ते के भुगतान में कटौती किये जाने के मुद्दे को लेकर हड़ताल की थी। हड़ताल तब शुरू हुई जब ब्लिंकिट ने डिलीवरी मज़दूरों के लिए अपनी नई भुगतान संरचना शुरू की, जिसके तहत, प्रति डिलीवरी न्यूनतम भुगतान 25 रुपये से घटाकर 15 रुपये कर दिया गया। संशोधित संरचना में, ऑर्डर को डिलीवर करने के लिए तय की गई दूरी के अनुसार, इंसेंटिव दिए जाने का भी प्रावधान है, जिस नीति को आम तौर पर ‘प्रयास’ आधारित वेतन कहा जाता है। इसका यह नतीजा हुआ है कि ब्लिंकिट डिलीवरी मज़दूरों को अब प्रतिदिन 1,200 रुपये के मुकाबले केवल 600-700 रुपये का वेतन मिलेगा।
हड़ताल के जवाब में जोमैटो ने उन दुकानों को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया, जिनमें विरोध करने वाले मज़दूर काम कर रहे थे। उन मज़दूरों को बख़ार्स्त कर दिया गया। दो सप्ताह से भी कम समय में, नए डिलीवरी मज़दूरों के साथ, सभी स्टोर फिर से खुल गए। ज़ोमैटो ने दावा किया कि हड़ताल का कंपनी के राजस्व पर 1 प्रतिशत से भी कम असर पड़ेगा!
हाल के वर्षों में, गिग मज़दूरों ने, सभी समान परिस्थितियों में काम करने वाले अन्य मज़दूरों से जुड़ने और उनकी आम मांगों और चिंताओं के इर्द-गिर्द एकता बनाने के लिए, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कैब ड्राइवरों, डिलीवरी मज़दूरों और कुछ अन्य सेवाओं से जुड़े गिग मज़दूरों के संगठन अपनी सदस्यता बढ़ाने और अपनी आम मांगों को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं।
हाल ही में, गृह-सेवा देने वाली कंपनी, अर्बन कंपनी द्वारा काम पर लगायी गयी महिला मज़दूरों ने कंपनी की नई नीतियों का विरोध किया, जो उन्हें, उनके न चाहते हुए भी, हर महीने, एक निश्चित संख्या में काम उठाने को मजबूर करती हैं। इसी तरह, डंज़ो, स्विगी और ज़ोमैटो जैसी डिलीवरी सेवाओं के डिलीवरी मज़दूर भी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन कंपनियों की नाजायज़ वेतन संरचना का सक्रिय रूप से पर्दाफ़ाश कर रहे हैं।