ई.एस.आई.सी. के ठेका मज़दूर संघर्ष के रास्ते पर

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता द्वारा

8 मई, 2023 को मज़दूर एकता कमेटी के कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली के ओखला स्थित ई.एस.आई.सी. अस्पताल के मुख्य गेट पर, अस्पताल में काम करने वाले ठेका मज़दूरों के संघर्ष के समर्थन में पर्चे बांटे।

ESIC Contrect Workerविदित है कि ओखला में स्थित ई.एस.आई.सी. अस्पताल में ठेकेदार कंपनी एस.एन. इंटरप्राइज़ के माध्यम से नियुक्त किये गये सफ़ाई मज़दूर अपने क़ानूनी वेतन व काम की बेहतर हालतों की मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। मज़दूर अस्पताल के सामने धरना दे रहे हैं। साथ ही साथ, अपने अधिकारों के लिए क़ानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं।

मज़दूरों ने न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर लेबर कोर्ट में शिकायत दर्ज़ की है। जब 28 अप्रैल, 2023 को लेबर कोर्ट की ओर से नोटिस आया तब ठेकेदार ने 1 मई को 55 मज़दूरों को दूर-दराज़ के इलाकों के लिये ट्रांस्फर लेटर दे दिये। हालांकि मज़दूरों ने ठेकेदार से एक सप्ताह का समय मांगा था, लेकिन ठेकेदार कंपनी ने घोषित कर दिया कि जो मज़दूर 3 मई से नई जगह पर काम पर नहीं जायेगा उसे नौकरी से निकाल दिया जायेगा।

मज़दूरों ने 2 मई को ई.एस.आई.सी. ओखला अस्पताल के गेट पर अपना धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। बाद में प्रबंधन ने पुलिस को बुलाकर जबरन उनके धरना को हटवा दिया। अस्पताल ने आदेश दिया है कि इन मज़दूरों को अस्पताल से 50 मीटर दूर रखा जाये।

ठेका मज़दूरों ने ई.एस.आई.सी. अस्पताल के अन्दर अपने काम की मुश्किल हालतों के बारे में बताया। उन्हें रात को 12 घंटे की शिफ्ट में काम करवाया जाता है। उन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने के लिये मज़बूर किया जाता है। उन्हें ठेकेदार द्वारा वर्दी, महिला मज़दूरों को दुपट्टे, दस्ताने आदि नहीं दिये जाते हैं। सफ़ाई के दौरान संक्रमण से बचने के लिये उन्हें मास्क और गाऊन भी नहीं दिये जाते। इन सुविधाओं की मांग करने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। बिना किसी छुट्टी के महीने भर काम करवाया जाता है। छुट्टी मांगने पर इनको काम से निकाल देने की धमकी दी जाती है।

उन्होंने अपनी समस्याओं को लेकर ई.एस.आई.सी. अस्पताल के प्रशासन को व्यक्तिगत तौर पर शिकायतें की हैं। जिन्होंने शिकायतें की हैं, उन्हें ठेकेदार और अस्पताल प्रशासन द्वारा निशाना बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है।

मज़दूरों द्वारा अस्पताल प्रशासन को दी गई शिकायत के अनुसार, इन मज़दूरों के बैंक खातों में सरकारी मापदंड के अनुसार वेतन आता है। यही वेतन ई.एस.आई.सी. को जमा किये जाने वाले बहीखाते में भी दर्शाया जाता है। बैंक खातों में पैसा आने के बाद, ठेकेदार वेतन के रूप में 11,500 रुपए को छोड़कर बाकी रकम वापस करने के लिए मजबूर करता है।

इन मज़दूरों ने बताया कि कोरोना काल में इनके काम के एवज में कोरोना योद्धा के तौर पर 45,000-60,000 रुपए, उनके बैंक खातों में भेजा गया था, उस रकम को भी ठेकेदार ने जबरन ले लिया। मज़दूरों ने इसके विडियो फुटेज भी दिखाए।

ई.एस.आई.सी. प्रबंधन और ठेकेदार की मिलीभगत के चलते, इन मज़दूरों को क़ानूनी न्यूनतम वेतन के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

मज़दूरों ने एक और चौंकाने वाली बात बतायी कि ई.एस.आई.सी. के प्रबंधन और ठेकेदार मिलकर, मजदूरों के जमा किए हुए धन को लूट रहे हैं। यह प्रबंधन की पूरी जानकारी के साथ होता है। ई.एस.आई.सी. प्रबंधन अपने रिकार्ड में मज़दूरों की संख्या ज्यादा दिखाता है परंतु वास्तव में उससे कम मज़दूरों से अस्पताल का पूरा कामकाज करवाता है। दिखाने के लिए फर्ज़ी हाज़िरी भरवाई जाती है। फर्ज़ी हाज़िरी लगाने वालों को ठेकेदार ई.एस.आई.सी. से प्राप्त पूरी रकम में से 2,000 रुपए देता है।

ई.एस.आई.सी. केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय के तहत चलने वाला संगठन है, जिसका काम है निजी क्षेत्र के मज़दूरों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना। यह मज़दूरों और नियोक्ताओं के दिये गये अंशदान से चलता है और हर वर्ष लाभ कमाता है। इसके बावजूद सरकार इसमें पर्याप्त मात्रा में डाक्टरों, नर्सों, सफ़ाई मज़दूरों, आदि की भर्ती नहीं कर रही है।

ई.एस.आई.सी. की सेवाओं को बद से बदतर करने के लिए केंद्र सरकार ज़िम्मेदार है। ऐसा करके, मज़दूरों को सरकारी स्वास्थ्य सेवा पाने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है और महंगी निजी स्वास्थ्य सेवा की ओर धकेला जा रहा है।

ई.एस.आई.सी. प्रबंधन, ठेकेदार के ज़रिये इन मज़दूरों से काम करवाता है। वह इनके न्यूनतम वेतन व काम की सही हालतों को सुनिश्चित करने की अपनी ज़िम्मेदारी से पूरी तरह पीछे हट रहा है। केंद्र सरकार और ई.एस.आई.सी. प्रबंधन इन मज़दूरों के शोषण और काम की कठिन हालतों तथा रोज़गार की असुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं।

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