सरकार द्वारा डाक मज़दूरों की दो यूनियनों की मान्यता रद्द :
मज़दूरों के हक़ों पर सीधा हमला

26 अप्रैल, 2023 को हिन्दोस्तान की सरकार के संचार मंत्रालय के डाक विभाग ने आल इंडिया पोस्टल एम्प्लाइज़ यूनियन (ए.आई.पी.ई.यू.) और नेशनल फेडरेशन ऑफ पोस्टल एम्प्लॉइज (एन.एफ.पी.ई.) की मान्यता रद्द करने के आदेश जारी किये। सरकारी आदेश के अनुसार, ए.आई.पी.ई.यू. और एन.एफ.पी.ई. की मान्यता रद्द कर दी गई है, क्योंकि उन्होंने केंद्रीय सिविल सेवा (सेवा संघ की मान्यता) नियम, 1993 का उल्लंघन किया था।

AIPEU-सी.सी.एस. (आर.एस.ए.) क़ानून, 1993 के नियम 6 (सी) में कहा गया है कि “सेवा एसोसिएशन किसी भी राजनीतिक फंड को बनाए नहीं रखेगा या किसी राजनीतिक पार्टी या ऐसी पार्टी के सदस्य के विचारों के प्रचार के लिए खुद का समर्थन नहीं देगा”। यूनियनों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने किसान आंदोलन, सी.पी.आई. (एम) और सीटू को पैसा देकर इस नियम का उल्लंघन किया है।

सरकार को इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि एक सरकारी विभाग के मज़दूर किसान आंदोलन या लोगों के किसी अन्य आंदोलन का समर्थन करना चाहते हैं। सरकार का इससे भी कोई लेना-देना नहीं है कि मज़दूरों की यूनियनें सीटू, एटक, बी.एम.एस. या किसी अन्य ट्रेड यूनियन को धन का योगदान करें। सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है कि मज़दूरों की कोई यूनियन किसी राजनीतिक पार्टी के विचारों के प्रचार के लिए खुद का समर्थन देती है।

इस तरह के तथा अन्य मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार किसी भी यूनियन के सदस्यों को होना चाहिए – सरकार को नहीं।

ए.आई.पी.ई.यू. और एन.एफ.पी.ई. की मान्यता रद्द करके, सरकार मज़दूरों को अपनी पसंद की यूनियन बनाने के अधिकारों और डाक मज़दूरों के अधिकारों तथा अन्य सभी शोषितों और उत्पीड़ितों के अधिकारों के संघर्षां पर खुल्लम-खुल्ला हमला कर रही है।

AIPEU-सरकार ने यूनियनों की मान्यता को रद्द करने की अपनी कार्यवाही को उचित ठहराने के लिये कहा है कि (1) उन्होंने कन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉइज़ द्वारा किसान आंदोलन को दिए जाने वाले दान के लिये 30,000 रुपये का योगदान दिया था (2) उन्होंने सीटू को 50,000 रुपये का योगदान दिया था और (3) नई दिल्ली में सी.पी.आई. (एम) बुक स्टोर से साहित्य खरीदने के लिये यूनियन के खातों से 4,935 रुपये खर्च किए गए। सरकार की इस कार्यवाही का असली मक़सद डाक मज़दूरों के बहादुर संगठनों को तोड़ना है।

पूंजीपतियों को अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टियों को खुले तौर पर पैसे देने या इलेक्टोरल बॉन्ड देने या दोनों देने की पूरी छूट है। पूंजीपति अपने हितों को बढ़ावा देने वाली कई अन्य गतिविधियों को भी प्रायोजित करते हैं। लेकिन सरकार मज़दूरों को अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टियों का समर्थन करने या मज़दूरों और किसानों के जायज़ संघर्षों का समर्थन करने के अधिकार से वंचित करना चाहती है। मज़दूर यूनियनें इसे स्वीकार नहीं कर सकतीं।

ए.आई.पी.ई.यू. का गठन 1920 में हुआ था। यह हिन्दोस्तान के मज़दूरों की सबसे पुरानी यूनियनों में से एक है। एन.एफ.पी.ई. डाक मज़दूरों की एक फेडरेशन है, जिसमें ए.आई.पी.ई.यू. सहित डाक मज़दूरों की आठ यूनियनें शामिल हैं। एन.एफ.पी.ई. के सहायक महासचिव ने कहा कि, “हमारे संगठन को हर वैचारिक धारा के कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त है। इस संगठन का ब्रिटिश शासन के खि़लाफ़ आंदोलन करने का इतिहास रहा है। अब मान्यता रद्द करने का यह प्रयास डाक विभाग की सभी ट्रेड यूनियन गतिविधियों को समाप्त करना है।” उन्होंने बताया कि पिछली बार जब 2014 में डाक मज़दूरों से जनमत संग्रह करवाया गया था, तब 4.5 लाख डाक मज़दूरों में से 75 प्रतिशत ने एन.एफ.पी.ई. को वोट दिया था। अगला जनमत संग्रह 2024 में होना है।

निजीकरण के खि़लाफ़ डाक मज़दूरों और सरकारी कर्मचारियों के संघर्षों और मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाइयों में एन.एफ.पी.ई. सबसे आगे रहा है। हाल ही में एन.एफ.पी.ई. ने डाक सेवाओं के निजीकरण के खि़लाफ़ और पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग को लेकर एक दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया था। सरकार डाक मज़दूरों के बहादुर संगठनों को कमज़ोर करना और तोड़ना चाहती है। सरकार द्वारा एन.एफ.पी.ई. और ए.आई.पी.ई.यू. की मान्यता रद्द करने के पीछे यही कारण है।

पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकारों ने ऐतिहासिक रूप से यूनियनों की “मान्यता” को एक प्रलोभन के रूप में इस्तेमाल किया है। इससे यूनियनों के नेताओं को विशेषाधिकार प्रदान किए जा सकते हैं और बदले में मज़दूरों के संघर्षां को स्वीकार्य दायरे में रखा जा सकता है। यूनियन की मान्यता को रद्द करने के ख़तरे को दिखाकर यूनियनों के नेतृत्व को नियंत्रण में रखने की कोशिश की जाती। ऐसी सीख अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूरों और सरकारी कर्मचारियों ने जीवन के अनुभव से पाई है। इसलिए, ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों को पार्टी और यूनियन संबद्धता से ऊपर उठकर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए डाक मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन करना चाहिए।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *