ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई और विश्व प्रतियोगिताओं में हिन्दोस्तान का स्थान ऊंचा करने वाले पहलवान पिछले एक सप्ताह से नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे राज्य और उसकी संस्था भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यू.एफ.आई.) के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय में क़ानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। पहलवानों ने डब्ल्यू.एफ.आई. के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह (जो पूर्वी उत्तर प्रदेश से भाजपा के सांसद हैं और इस क्षेत्र में काफी राजनीतिक दबदबा रखते हैं।) और डब्ल्यू.एफ.आई. के अन्य अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि वे एक दशक से अधिक समय से नाबालिग लड़कियों सहित महिला पहलवानों का यौन शोषण करते आ रहे हैं। उन्होंने मांग की है कि डब्ल्यू.एफ.आई. के अध्यक्ष को उनके पद से हटाया जाये और सभी आरोपी अधिकारियों को कड़ी सज़ा दी जाये, जो भविष्य में इस तरह के यौन शोषण से पहलवानों की रक्षा करने का काम करे। प्रदर्शनकारियों में विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया जैसे और भी कई अन्य प्रसिद्ध पहलवान शामिल हैं।
पहलवानों ने इस साल जनवरी में इन्हीं मांगों को लेकर जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था। ओलंपिक पदक विजेता और पूर्व राज्यसभा सांसद की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय समिति द्वारा औपचारिक जांच का आदेश केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने के बाद उन्होंने अपना विरोध प्रदर्शन रोक दिया था। लेकिन समिति ने सरकार से जो सिफ़ारिशें की थीं उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया है और न ही पहलवानों की मांगों पर कोई कार्रवाई की गई है। जिसकी वजह उन्हें अपना विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
विरोध प्रदर्शन करने वाले पहलवानों ने मांग की है कि न केवल सात पहलवानों द्वारा दायर की गई प्राथमिकी को पंजीकृत किया जाये, बल्कि यौन उत्पीड़न के आरोपों को नियंत्रित करने वाले क़ानून को ध्यान में रखते हुए, उनके नामों का खुलासा भी नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने मांग की है कि सात सदस्यीय समिति की सिफ़ारिशों और निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाए और डब्ल्यू.एफ.आई. के अध्यक्ष और अन्य आरोपी अधिकारियों को गिरफ़्तार करके उनके खि़लाफ़ मुक़दमा चलाया जाए।
23 अप्रैल को विरोध प्रदर्शन शुरू होने के चार दिन बाद तक, पुलिस ने यह कहते हुए प्राथमिकी दर्ज़ करने से इनकार कर दिया था कि कुछ प्रारंभिक जांच की आवश्यकता है। इसके बाद नाराज़ पहलवानों ने सर्वाच्च अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। विरोध प्रदर्शन के 5वें दिन सर्वाच्च अदालत द्वारा प्राथमिकी दर्ज़ करने का आदेश देने के बाद ही प्राथमिकी दर्ज़ की गई।
विरोध प्रदर्शन करने वाले पहलवानों ने आशंका व्यक्त की है कि यौन उत्पीड़ित पहलवानों के नामों का खुलासा नहीं करने के अदालत से किये गये उनके अनुरोध का उल्लंघन किया गया है। ऐसी ख़बरें हैं कि पहलवानों को आरोप वापस लेने के लिए उनके परिवारों को धमकी दी जा रही है और उन पर दबाव डाला जा रहा है।
हिन्दोस्तानी खेलों के इतिहास में पहली बार इतने व्यापक स्तर पर यौन उत्पीड़न का आरोप सामने आया है। विरोध प्रदर्शन करने वाले पहलवानों ने मीडिया को उदाहरण देकर विस्तार से समझाया कि किस तरह उन्हें बार-बार यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और डरा-धमकाकर दबाव में रखा जाता है।
विरोध प्रदर्शन करने वाले पहलवानों को महिला संगठनों, ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों, किसान संगठनों के साथ-साथ पंचायतों का समर्थन भी मिल रहा है। उन्हें हिन्दोस्तान में खेल के सभी क्षेत्रों के खिलाड़ियों से जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। इनमें से कई व्यक्तियों ने लिंग, राजनीतिक संबद्धता, जाति, समुदाय, सामाजिक स्थिति आदि के आधार पर खेलों में भेदभाव के बारे में लिखा या बोला है। आंदोलन के समर्थन में खिलाड़ियों, मज़दूरों, किसानों, महिलाओं, युवाओं और छात्रों के बीच महिलाओं और पुरुषों की एकता से प्रदर्शनकारियों को अपनी शिकायतों को उजागर करने में मदद मिली है।
महिला पहलवानों के विरोध प्रदर्शन की कार्रवाई ने – हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाले शोषण और भेदभाव के सवाल – को एक बार फिर राजनीतिक बहस के सबसे आगे खड़ा कर दिया है। राज्य, उसके अधिकारी और उसके सभी संस्थान, इस शोषण और भेदभाव को बनाए रखने के लिए दोषी हैं, जिसमें महिलाओं के खि़लाफ़ खुल्लम-खुल्ला हिंसा भी शामिल है।