क्रांतिकारी विचारक और कम्युनिज़्म के लिए लड़ने वाले साथी कार्ल मार्क्स का जन्म, 5 मई, 1818 को हुआ था। पूंजीवादी समाज और उसके द्वारा अस्तित्व में लाई गई राज्य संस्थाओं को उखाड़ फेंकना और आधुनिक श्रमजीवी वर्ग की मुक्ति के संघर्ष में योगदान देना, उनके जीवन का मक़सद था। इस मक़सद के लिए, मार्क्स ने जीवनभर जोशपूर्ण संघर्ष किया।
ज्ञान के लिए उनकी जिज्ञासा, सामाजिक परिवर्तन की ज़रूरत से प्रेरित थी। उनके अपने शब्दों में, “दार्शनिकों ने विभिन्न तरीक़ों से केवल दुनिया की व्याख्या की है। हालांकि, ज़रूरत है इसे बदलने की।”
मार्क्स एक महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने ज्ञान के बहुत से क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन किया और जिनमें उन्होंने स्वयं कई नई खोजें कीं। मार्क्स के लिए विज्ञान एक क्रांतिकारी ताक़त थी। उन्होंने विज्ञान में होने वाली खोजों का खुशी से स्वागत किया, जिनके फलस्वरूप समाज में होने वाले क्रांतिकारी परिवर्तनों पर प्रकाश डाला।
19वीं शताब्दी में पूंजीवाद के विकास के साथ-साथ, श्रमजीवी वर्ग की उत्पत्ति हुई और विकास भी हुआ। श्रमजीवी वर्ग आधुनिक उद्योग का नतीजा है। श्रमजीवी वर्ग का राजनीतिक संघर्ष जैसे-जैसे बढ़ा, मार्क्स और उनके साथ नज़दीकी से काम करने वाले फ्रेडरिक एंगेल्स का सैद्धांतिक काम भी विकसित हुआ। 1830 के दशक में, कई यूरोपीय देशों के श्रमजीवी वर्ग के प्रतिनिधियों द्वारा कम्युनिस्ट लीग नामक एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की गई थी। मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट लीग के नियमों का मसौदा तैयार किया था, जिसे दिसंबर 1847 में उसकी दूसरी कांग्रेस में स्वीकार किया गया था। उन्हें इस अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी संगठन के घोषणापत्र का मसौदा तैयार करने की ज़िम्मेदारी भी दी गयी थी। जिसे 1848 में प्रकाशित किया गया, जो कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ।
घोषणापत्र ने कम्युनिस्टों के कार्यभार निर्धारित किये – मज़दूर वर्ग को आवश्यक चेतना प्रदान करना ताकि वह शासक वर्ग बने और उत्पादन के साधनों की मालिकी को, निजी मालिकी से सामाजिक मालिकी में तब्दील करे।
1864 में यूरोप के अनेक देशों के मज़दूरों के प्रतिनिधियों की लंदन में एक ऐतिहासिक मीटिंग हुई थी, जिसमें मार्क्स को आमंत्रित किया गया था। इस बैठक में फर्स्ट इंटरनेशनल वर्किंगमेन्स एसोसिएशन या फर्स्ट इंटरनेशनल की स्थापना हुई।
यह मार्क्स ही थे, जिन्होंने अपने प्रेरकशक्ति और अदम्य व्यक्तित्व से, बहुत ही कठिन हालतों में अगले आठ वर्षों तक इस अंतर्राष्ट्रीय संघ से जुड़े विभिन्न धारारओं के लोगों को एक साथ रखा। दुनियाभर के श्रमजीवी वर्ग की समाज में क्रांतिकारी भूमिका के विचार के प्रति उनकी वचनबद्धता ने ही फर्स्ट इंटरनेशनल को जीवित और सक्रिय रखा।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मार्क्सवाद, जिस विचारधारा को मार्क्स ने विस्तार से समझाया, किसी के मन की कोरी कल्पना नहीं है। यह सिद्धांत, वर्ग संघर्ष के बीच, सरमायदार वर्ग के शासन को उखाड़ फेंकने के अपने मक़सद को हासिल करने के लिए श्रमजीवी वर्ग के वैचारिक हथियार के रूप में उभरा, ताकि श्रमजीवी वर्ग खुद को और पूरे समाज को शोषण और वर्ग विभाजन से मुक्त कर सके।
जैसा कि लेनिन ने एक लेख – “मार्क्सवाद के तीन स्रोत और तीन घटक भाग“ में समझाया है – मार्क्सवादी सिद्धांत सर्वशक्तिमान है क्योंकि वह सत्य है। यह व्यापक और सामंजस्यपूर्ण है और लोगों को एक एकीकृत विश्व दृष्टिकोण प्रदान करता है जो किसी भी प्रकार के अंधविश्वास, प्रतिक्रियावाद या सरमायदारी उत्पीड़न के बचाव का कट्टर विरोध करता है। यह उन्नीसवीं शताब्दी में मनुष्य द्वारा उत्पादित सर्वश्रेष्ठ सैद्धांतिक परंपराओं का एक स्वाभाविक उत्तराधिकारी है, जिसका प्रतिनिधित्व जर्मन दर्शन, अंग्रेजी राजनीतिक अर्थशास्त्र और फ्रांसीसी समाजवाद में था।
फ्रांस में 18वीं शताब्दी के अंत में हुई बुर्जुआ लोकतांत्रिक क्रांति ने, हर तरह के अंधविश्वास और मध्ययुगीन विचार के खि़लाफ़ विद्रोह करते हुए, भौतिकवाद के विकास को प्रेरित किया था। भौतिकवाद एकमात्र ऐसे दर्शन के रूप में उभरा जो प्राकृतिक विज्ञान की सभी शिक्षाओं से मेल खाता है।
मार्क्स ने दार्शनिक भौतिकवाद को पूरी तरह से विकसित किया और प्रकृति की समझ में विस्तार करके मानव समाज की समझ को उसके दायरे में शामिल किया। उनका ऐतिहासिक भौतिकवाद, वैज्ञानिक चिंतन में एक बड़ी उपलब्धि थी। यह एक वैज्ञानिक सिद्धांत है, जो दिखाता है कि उत्पादक शक्तियों के विकास के एक निश्चित चरण पर, उत्पादन के मौजूदा संबंधों, जो उत्पादक शक्तियों के और अधिक विकास के रास्ते में एक रोड़ा बन जाते हैं, उनमें बदलाव हो जाता है। यह बताता है कि उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति सामंती समाज के भीतर ही कैसे विकसित हुई और कैसे इसने उत्पादन की सामंती पद्धति का स्थान ले लिया। यह दिखाता है कि कैसे पूंजीवादी व्यवस्था का समाजवादी व्यवस्था में परिवर्तन अवश्यंभावी है।
मार्क्स और एंगेल्स ने हेगेल (जो उस समय जर्मनी के सबसे प्रभावशाली विचारक थे), की द्वंद्वात्मक पद्धति अपनाई और मानव इतिहास की व्याख्या करने के लिए इसे और विकसित किया। उन्होंने दार्शनिक दृष्टिकोण और द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के तरीके़ को जन्म दिया।
प्रकृति और समाज को समझने की द्वंद्वात्मक पद्धति यह सिखाती है कि सब कुछ लगातार गति की स्थिति में है, जो विरोधी ताक़तों के बीच की टक्कर का नतीजा है। द्वंद्वात्मकता का मानना है कि आंतरिक विरोधाभास सभी चीजों और घटनाओं में निहित है। उन सभी के अपने नकारात्मक और सकारात्मक पक्ष हैं, एक अतीत और एक भविष्य, कुछ जो मर रहा है और कुछ जो अस्तित्व में आ रहा है। इन अंतर-विरोधों के बीच, पुराने और नए के बीच, जो मर रहा है और जो पैदा हो रहा है, जो ख़त्म हो रहा है और जो उभर के आ रहा है, उनके बीच संघर्ष, विकास की प्रक्रिया की अंतर्वस्तु है।
राजनीतिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में, मार्क्स ने ब्रिटिश राजनीतिक अर्थशास्त्रियों के विचारों का विकास किया। मार्क्स ने मूल्य के श्रम-सिद्धांत के समर्थन में सबूत दिये और इसे और विकसित किया। मार्क्स के बेशी-मूल्य के सिद्धांत ने पूंजीपति वर्ग के हाथों में पूंजी-संचय के स्रोत के साथ-साथ, बार-बार होने वाले अति-उत्पादन के संकट के कारण की व्याख्या की।
मार्क्स ने पहचाना कि पूंजी के मालिकों द्वारा बनाये गए मुनाफ़े का स्रोत श्रम के शोषण में है। एक मज़दूर जो प्रतिदिन 8 घंटे मेहनत करता है, वह दिन के केवल एक भाग में अपने लिए काम करता है, मान लीजिए कि पहले 4 घंटे में, जब वह मज़दूरी के रूप में उसे दिए गए मूल्य का पुनरुत्पादन करता है। बाकी के 4 घंटे वह अपने पूंजीपति मालिक के लिए बेशी-मूल्य (सरप्लस वैल्यू) पैदा करता है।
श्रम के शोषण के माध्यम से पूंजीवादी मुनाफ़े को अधिकतम करने का एकमात्र उद्देश्य उत्पादक शक्तियों के निर्बाध विकास के रस्ते में एक बहुत बड़ा रोड़ा है। जबकि बाज़ार वस्तुओं से भरा पड़ा है, मज़दूर वर्ग के पास उन्हें ख़रीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं। इससे अति-उत्पादन का संकट बार-बार पैदा होता है। नतीजतन पूंजीवादी उत्पादन में कटौती की जाती है और मज़दूरों को उनकी नौकरियों से निकाल दिया जाता है।
मार्क्स ने वह रास्ता दिखाया जिससे सामाजिक उत्पादन और उत्पादन के साधनों के निजी स्वामित्व के बीच के मूलभूत अंतर्विरोध को सुलझाया जा सकता है। उत्पादन के साधनों को, निजी संपत्ति से बदलकर सामाजिक संपत्ति में परिवर्तित करना होगा। इससे समाज में, पूंजीवादी लालच को पूरा करने के बजाय समाज की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, उत्पादन करना संभव हो जाएगा।
मार्क्सवाद का तीसरा घटक हिस्सा, वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांत का विकास था। फ्रांस में बुर्जुआ जनवादी क्रान्ति के बाद निराशा हाथ लगी, क्योंकि क्रान्ति के वादों में और जो हासिल हुआ उनके बीच में भारी अंतर था। वहां पर, समाज की एक श्रेष्ठ व्यवस्था के रूप में समाजवाद का विचार और दृष्टि उभरी, जो पूंजीवाद की बुराइयों से मुक्त होगी। लेकिन फ्रांस में उभरे समाजवाद के शुरुआती विचार काल्पनिक (यूटोपियन) थे। काल्पनिक समाजवादी इस सवाल का समाधान करने में विफल रहा कि किस सामाजिक शक्ति में पूंजीवाद को समाजवाद में बदलने की रुचि और क्षमता है।
मार्क्सवाद ने समाजवाद को उसका वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। मार्क्सवाद ने दिखलाया कि पूंजीवादी समाज वर्ग-विभाजित समाज का अंतिम चरण है, जो अगले उच्चतर चरण, एक वर्गहीन कम्युनिस्ट समाज में तब्दील हो जायेगा, जिसका प्रारंभिक चरण समाजवाद है। मार्क्सवाद ने श्रमजीवी वर्ग की व्याख्या की – वह वर्ग जिसके पास अपनी श्रम शक्ति के अलावा कोई संपत्ति नहीं है; उस वर्ग के रूप में जिसके पास पूंजीवाद से कम्युनिज्म में क्रांतिकारी परिवर्तन को पूरा करने में न केवल रुचि ही नहीं बल्कि क्षमता भी है।
मार्क्स ने मानव समाज और उसके विकास के नियमों के अध्ययन में अपने अनूठे योगदान को निम्नलिखित शब्दों में अभिव्यक्त किया :
“अब जहां तक मेरी बात है, मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने आधुनिक समाज में वर्गों के अस्तित्व या उनके बीच संघर्ष की खोज की है। मुझसे बहुत पहले, बुर्जुआ इतिहासकारों ने इस वर्ग संघर्ष के ऐतिहासिक विकास का वर्णन किया था और बुर्जुआ अर्थशास्त्रियों ने इस वर्ग संघर्ष के आर्थिक आधार की व्याख्या की थी। मैंने जो नया किया वह यह साबित करना था : (1) कि वर्गों का अस्तित्व, उत्पादन के विकास में कुछ विशेष ऐतिहासिक चरणों से बंधा हुआ है, (2) कि वर्ग संघर्ष का अवश्यंभावी परिणाम, श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व वाली सत्ता है, और (3) कि यह अधिनायकत्व, सभी वर्गों के उन्मूलन और एक वर्गविहीन समाज की स्थापना के रस्ते में एक क़दम से ज्यादा और कुछ नहीं है।
मार्क्स के जीवनकाल में उनके बारे में सबसे ज्यादा झूठ बोला गया था। अनेक सरकारों ने उन्हें अपने देशों से निर्वासित कर दिया। पूंजीपतियों ने उन पर अपशब्दों के ढेर लगा दिये। लेकिन श्रमजीवी वर्ग और पूरी दुनिया के लोगों के लिए, उनका जीवन और कार्य, पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने और कम्युनिज़्म की शुरूआत करने के संघर्ष में हमेशा एक मिसाल और प्रेरणा का एक स्रोत बना रहेगा। उनका नाम और उनका काम भी युगों-युगों तक क़ायम रहेगा।