मई दिवस पर मज़दूर एकता कमेटी का बयान, 20 अप्रैल, 2023
1 मई, 2023, मई दिवस पर दुनियाभर के मज़दूर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष में शहीद हुए अपने सभी साथियों को याद करेंगे। वे जुझारू प्रदर्शनों के ज़रिए अपनी मांगों को बुलंद करेंगे। रैलियों में निकलकर, एक बार फिर पूंजीवादी शोषण और दमन से मुक्ति हासिल करने के अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प जाहिर करेंगे। साथ ही साथ, यह निश्चय करेंगे कि पूंजीवादी शोषण और दमन के वर्तमान समाज का विकल्प कैसे लाया जाये।
आज दुनिया के हर देश में मज़दूर बड़ी बहादुरी के साथ संघर्ष कर रहे हैं। वे सम्मानजनक जीवन जीने लायक वेतन के लिए, सुरक्षित रोज़गार के लिये, बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी के विरोध में, सड़कों पर निकल रहे हैं। वे पूंजीवादी शोषण के खि़लाफ़, राष्ट्रों के दमन, साम्प्रदायिक हिंसा, नस्लवाद और साम्राज्यवादी जंग के खि़लाफ़, अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। वे अपने अधिकारों के लिए तथा एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मज़दूर-किसान को अपने श्रम का फल मिले।
पूंजीवादी हुक्मरानों के निजीकरण के अजेंडे के विरोध में रेलवे, सड़क परिवहन, कोयला, पेट्रोलियम और रक्षा क्षेत्र, बिजली उत्पादन और वितरण, बैंकिंग और बीमा, आदि के मज़दूर बहुत ही बहादुरी से लड़ रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास, बिजली, पानी, दूरसंचार, परिवहन सेवा – इन सभी सेवाओं को पूंजीपतियों के मुनाफे़ का स्रोत बनाया जा रहा है। मज़दूर इसका विरोध कर रहे हैं और इन सभी सेवाओं को अधिकार बतौर मुहैया कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मज़दूर एकता कमेटी उन सभी मज़दूरों को सलाम करती है, जो पूंजीपति वर्ग के निजीकरण के कार्यक्रम को चुनौती दे रहे हैं।
पूंजीपतियों द्वारा मज़दूरों के शोषण को और आसान करने के लिए, सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को सरल बनाने के नाम पर, 4 लेबर कोड को घोषित कर दिया है। इसका मतलब यह है कि जो कुछ अधिकार अलग-अलग क्षेत्रों के मज़दूरों ने संघर्ष करके हासिल किये थे, उन्हें भी वापस लिया जायेगा। 12 से 16 घंटे प्रतिदिन काम अब नियम बन जायेगा। महिला मज़दूरों को बिना किसी सुरक्षा की गारंटी के, रात की पाली में काम करने को मजबूर किया जायेगा। अपना ट्रेड यूनियन बनाकर अपने अधिकारों के लिए संगठित रूप से लड़ना अधिकतम मज़दूरों के लिये बहुत मुश्किल हो जायेगा।
किसान अपनी फ़सलों के लिये सरकारी ख़रीदी की गारंटी और लाभकारी दाम की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आये हैं। मज़दूर एक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग कर रहे हैं, जिसमें सभी मेहनतकश लोगों को सस्ते दामों पर पर्याप्त मात्रा में सभी आवश्यक वस्तुयें प्राप्त हो सकें। ये मज़दूरों और किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगें हैं।
मज़दूरों और किसानों के तमाम संघर्षों के बावजूद, ये मांगें पूरी क्यों नहीं होती हैं? बड़े-बड़े पूंजीवादी घरानों – टाटा, बिरला, अम्बानी, अदानी, आदि – की दौलत क्यों बढ़ती रहती है? मज़दूरों-किसानों की हालत क्यों बिगड़ती रहती है? इसकी वजह है अधिक से अधिक मुनाफ़ा हड़पने की इजारेदार पूंजीपतियों की लालच, जो इन मांगों को पूरा होने से रोक देती है। इजारेदार पूंजीपति हर क्षेत्र में मज़दूरों के शोषण और किसानों की लूट को खूब तेज़ करके, जल्दी से जल्दी, खुद को और अमीर बना रहे हैं। पूंजीपति वर्ग ही हिन्दोस्तान का असली हुक्मरान है। उसकी अगुवाई बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीवादी घराने करते हैं। पूंजीपति वर्ग की सेवा हिन्दोस्तानी राज्य करता है। राज्य यह सुनिश्चित करता है कि पूंजीपति वर्ग का अजेंडा ही हमेशा लागू होता रहे, चाहे सरकार किसी भी राजनीतिक पार्टी की हो।
देश के लोगों की सभी समस्याओं का स्रोत पूंजीवादी व्यवस्था है। हिन्दोस्तानी राज्य के सभी संस्थान – सरकार संभालने वाली राजनीतिक पार्टी और उसका मंत्रीमंडल, उसके साथ-साथ संसदीय विपक्ष, पुलिस, सेना, न्यायपालिका, न्यूज मीडिया – ये सब मज़दूरों और किसानों पर पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही को क़ायम रखने के साधन हैं।
‘दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र’ कहलाये जाने वाले इस देश में जो राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया क़ायम है, उसके ज़रिये यह सुनिश्चित किया जाता है कि मज़दूरों, किसानों और सभी मेहनतकश लोगों को हमेशा ही सत्ता से बाहर रखा जायेगा। संसद में बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी की सरकार बनती है। उसी पार्टी का मंत्रीमंडल बनता है। उसी मंत्रीमंडल के हाथों में हमारे जीवन पर असर डालने वाले हर फ़ैसले को लेने की शक्ति होती है। लोगों के पास चुनाव में अपने उम्मीदवारों का चयन करने का कोई साधन नहीं है। चुने गए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने या उन्हें वापस बुलाने का कोई साधन नहीं है। हम मज़दूर-मेहनतकश न तो क़ानून बना सकते हैं और न ही मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी क़ानूनों को बदल सकते हैं।
यह भ्रम फैलाया जाता है कि चुनावों में मतदान करके लोग अपनी पसंद की सरकार को चुनते हैं। यह बहुत बड़ा धोखा है। हक़ीक़त तो यह है कि पूंजीपति करोड़ों-करोड़ों रुपए खर्च करके अपनी भरोसेमंद राजनीतिक पार्टियों में से उस पार्टी की जीत को सुनिश्चित करते हैं, जो उनके एजेंडे को सबसे बेहतर तरीक़े से लागू करेगी। सरकार उसी पार्टी की बनायी जाती है जो सबसे ज्यादा चतुराई से, पूंजीपतियों के अजेंडे को “लोकहित” में बताकर, लोगों को बुद्धू बना सकती है।
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद हुक्मरानों का पसंदीदा हथकंडा है। इस हथकंडे का इस्तेमाल करके वे बार-बार मज़दूरों और किसानों की एकता को तोड़ते हैं। हमारे संघर्षों को कमजोर करते हैं। हमारी एकता को तोड़ने की हुक्मरानों की सभी कोशिशों से हमें चौकन्ने रहना होगा।
आज हमारे संघर्ष के सामने एक बड़ी रुकावट उन ताक़तों से है, जो इस भ्रम को फैलाने में लगे हुए हैं कि हिन्दोस्तान का लोकतंत्र और संविधान एकदम ठीक हैं, कि समस्या सिर्फ कुछ ग़लत और भ्रष्ट नेताओं की वजह से है। उनका कहना है कि अगर वर्तमान भाजपा सरकार को हटा दिया जाये तो मज़दूरों और किसानों की सारी समस्याएं हल हो जायेंगी। वे संघर्षरत लोगों को आगामी लोक सभा चुनावों में भाजपा के किसी विकल्प की सरकार को चुनने के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं।
हमारे पास बीते 76 वर्षों का अनुभव है। हमने सरकार में पार्टियों को बार-बार बदलते हुए देखा है। परन्तु पूंजीपतियों का अजेंडा बेरोक चलता रहा है। अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई बढ़ती ही रही है। क्या, हमें फिर से उसी चक्र में फंसना है?
हमें वर्तमान संसदीय व्यवस्था की जगह पर श्रमजीवी लोकतंत्र की व्यवस्था स्थापित करनी होगी। यह एक ऐसी व्यवस्था होगी जिसमें कार्यपालिका, निर्वाचित विधायिकी के प्रति जवाबदेह होगी और चुने गए प्रतिनिधि मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होंगे। राजनीतिक प्रक्रिया 18 साल से ऊपर के प्रत्येक नागरिक के चुनने और चुने जाने के अधिकार की पुष्टि करेगी, जिसमें किसी भी चुनाव से पहले उम्मीदवारों का चयन करने का अधिकार शामिल होगा। चुनाव अभियान के लिए सार्वजनिक धन का इस्तेमाल किया जायेगा और किसी निजी धन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जायेगी।
हम मज़दूर और किसान समाज की अधिकतम आबादी हैं। हम देश की दौलत को पैदा करते हैं परन्तु हुक्मरान पूंजीपति वर्ग हमारे श्रम का फल हड़प लेता है। पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ती रहती है जबकि हमारी हालत बद से बदतर होती जाती है। इसे बदलना होगा। पूंजीपति वर्ग को सत्ता से हटाना होगा। देश की दौलत पैदा करने वालों को देश का मालिक बनना होगा। ऐसा करके ही हम वह नया समाज स्थापित कर सकेंगे, जिसमें देश की अर्थव्यवस्था को जनता की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में संचालित किया जायेगा और लोग देश के भविष्य को निर्धारित करने वाले फ़ैसलों को लेने में सक्षम होंगे।
मज़दूर साथियों,
आज से 133 वर्ष पहले, 1 मई, 1890 को यूरोप के सभी देशों के मज़दूर 8 घंटे के काम के दिन की मांग को लेकर, सड़कों पर उतरे थे। 1889 में स्थापित सोशलिस्ट इंटरनेशनल के आह्वान पर, 1 मई के दिन को पूंजीवादी शोषण के खि़लाफ़ मज़दूरों के संघर्षों के प्रतीक के रूप में ऐलान किया गया था। उस समय से लेकर आज तक, सारी दुनिया में मई दिवस पर मज़दूर पूंजीवादी शोषण से मुक्ति के लिए अपने संघर्ष को और मजबूत करने के संकल्प के साथ आगे आते हैं।
मज़दूर वर्ग को पूंजीवादी व्यवस्था से समाज को मुक्त कराना होगा। जब तक पूंजीवादी व्यवस्था बरकरार रहेगी तब तक मज़दूरों, किसानों और सभी मेहनतकशों का शोषण-दमन ख़त्म नहीं हो सकता है।
आइए, हम मज़दूरों, किसानों और सभी उत्पीड़ित लोगों के अधिकारों के लिए, अपने एकजुट संघर्ष को और तेज़ करें। आइए, हम इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुकूमत की जगह पर, मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने के लक्ष्य के साथ, देश के सभी शोषित और पीड़ित लोगों को संघर्ष में लामबंध करें।
हम हैं इसके मालिक, हम हैं हिन्दोस्तान, मज़दूर, किसान, औरत और जवान!
मई दिवस ज़िन्दाबाद!
इंक़लाब ज़िन्दाबाद!