“मध्यम वर्ग” के बारे में पूंजीवादी प्रचार मजदूर वर्ग की पहचान पर हमला है
हिदोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के अंदर और मजदूर वर्ग आन्दोलन में, हाल के दिनों में, यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है। इस विषय पर कई लेखों की श्रृंखला में यह प्रथम लेख है।
“मध्यम वर्ग” के बारे में पूंजीवादी प्रचार मजदूर वर्ग की पहचान पर हमला है
हिदोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के अंदर और मजदूर वर्ग आन्दोलन में, हाल के दिनों में, यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है। इस विषय पर कई लेखों की श्रृंखला में यह प्रथम लेख है।
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा 165 वर्ष पहले प्रकाशित कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो की शुरुआत में यह पर्यवेक्षण किया गया है कि संपूर्ण मानव समाज अधिक से अधिक हद तक, दो शत्रुतापूर्ण छावनियों में बंटता जा रहा है, आपस में सामना करने वाले दो महान वर्गों – पूंजीपति और श्रमजीवी – में बंट रहा है। कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में विश्वसनीयतापूर्ण तरीके से यह निष्कर्ष पेश किया गया है कि इन दोनों वर्गों के बीच संघर्ष का अनिवार्य परिणाम श्रमजीवी अधिनायकत्व है, जो समाज में सभी प्रकार के वर्ग विभाजनों के अंत का आरंभ है।
कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो के प्रकाशन के बाद से, पूंजीपति तरह-तरह के अवैज्ञानिक सोच-विचार फैलाते रहे हैं, यह छिपाने के लिये कि सामाजिक विकास माक्र्स और एंगेल्स के मूल निष्कर्षों को सही ठहराता है। इस समय प्रतिदिन एक मुख्य अवैज्ञानिक विचार जो फैलाया जा रहा है, उसके अनुसार आधुनिक समाज में अधिकतम लोग “मध्यम वर्ग” के हैं।
हर रोज़ टी.वी. के न्यूज़ चैनलों और वार्ताओं में और तथाकथित विश्लेषण लेखों में यह बताया जा रहा है कि समाज में अल्पसंख्यक गरीब हैं, अल्पसंख्यक अमीर हैं और इन दोनों के बीच में सभी मध्यम वर्ग हैं। सामाजिक वर्गों को इस तरह तोड़-मरोड़कर पेश करने का एक खास राजनीतिक उद्देश्य है। इसका उद्देश्य है मजदूर वर्ग को अपनी ताकत को समझने और पूंजीपति वर्ग के खिलाफ़ सामाजिक क्रान्ति में एकजुट होने से रोकना।
हमारे देश में शासक पूंजीपति वर्ग यह धारणा फैलाता है कि सिर्फ वे ही मजदूर हैं जो सबसे कम वेतन पर काम करते हैं। अगर कोई व्यक्ति टू-व्हीलर चलाता है या किसी अपार्टमेंट बिल्डिंग में रहता है, तो उसे मध्यम वर्ग बताया जाता है, जैसे कि सिर्फ झुग्गी में रहने वाले या साइकल या बस में सफर करने वाले ही मजदूर हैं।
किसी भी आर्थिक वर्ग की वैज्ञानिक अवधारणा सामाजिक उत्पादन के साधनों के साथ उस वर्ग के संबंध पर आधारित है। यह आमदनी के स्रोत से निर्धारित होता है, न कि सिर्फ आमदनी की मात्रा से। सिर्फ आमदनी की मात्रा के आधार पर समाज को अमीर, मध्यम वर्ग और गरीब के बीच में बांटना एक फरेबी पूंजीवादी तरीका है जो वर्गों के बीच के अंतर्विरोधों को छिपाता है।
पूंजीपति सामाजिक उत्पादन के साधनों के मालिक हैं। वे मुनाफे, ब्याज या किराये की आमदनी के ज़रिये दूसरों के श्रम द्वारा पैदा किये गये मूल्य को हड़प लेते हैं। बाकी समाज के लिये वे पूंजी के निजी मालिक हैं।
श्रमजीवी वर्ग या मजदूर वर्ग में वे सभी आते हैं जो उत्पादन के साधनों के मालिक नहीं हैं। वे अपनी श्रम शक्ति को बेचकर वेतन कमाते हैं और इस तरह गुजारा करते हैं। शिक्षित और कुशल श्रम शक्ति के लिये ज्यादा वेतन दिया जाता है, अशिक्षित, अप्रशिक्षित और अकुशल श्रम शक्ति के लिये कम। आमदनी की मात्रा चाहे कुछ भी हो, मजदूर वह है जो किसी उत्पादन के साधन का खुद मालिक नहीं है और अपने गुज़ारे के लिये, किसी और के लिये काम करता है तथा उससे वेतन पाता है।
मजदूर वर्ग में सिर्फ फैक्टरी और निर्माण मजदूर ही नहीं बल्कि ऑफिस कर्मचारी, रेल चालक, विमान चालक, बस परिवहन कर्मी, इत्यादि भी शामिल हैं। इसमें डाक्टर और नर्स, अस्पताल कर्मचारी, बैंक कर्मी, आई.टी. क्षेत्र और मीडिया के कर्मी, स्कूल और विश्वविद्यालय के शिक्षक आदि हैं।
हमारे देश के मजदूर वर्ग में बढ़ती संख्या में शिक्षित मजदूर शामिल हैं, जिनमें आधुनिक संचार की योग्यतायें हैं। सबसे संगठित और संभावित सबसे शक्तिशाली तबका उन मजदूरों का है जो बड़े उद्योगों और सेवाओं में काम करते हैं।
पूंजीपति और श्रमजीवी वर्गों के बीच में वे हैं जो अपने उत्पादन के साधनों से काम करते हैं, जैसे कि किसान, कारीगर, छोटे दुकानदार और दूसरे “स्व-रोज़गार” वाले लोग। समाज की इस मध्यम श्रेणी, जिसे निम्न पूंजीपति कहा जाता है, का भविष्य पूंजीवादी समाज में बहुत अनिश्चित है। उनमें से कुछ मुट्ठीभर पूंजीपति वर्ग में पहुंच जाते हैं जबकि अधिकतम बड़ी मुश्किल से गुजारा कर पाते हैं और अंत में मजदूर वर्ग का ही हिस्सा बन जाते हैं।
हमारे देश में मध्यम श्रेणी काफी बड़ी है पर बहुसंख्या नहीं है। मजदूर वर्ग, जिसमें कृषि, उद्योग और सेवाओं के वेतनभोगी मजदूर शामिल हैं, लगभग आधी आबादी है।
अगर किसी अंग्रेजी के शब्दकोष में पूंजीपति वर्ग का मतलब ढूंढा जाये तो एक मतलब मध्यम वर्ग मिलेगा। कुछ सौ वर्ष पहले यूरोप में जो हालात थे, उनमें पूंजीपति वर्ग समाज के उस भाग से उभर कर आया था जिनके पास कुछ निजी सम्पत्ति थी, जो कुलीन जमीन्दार वर्ग और छोटी-छोटी ज़मीन की टुकड़ियों के साथ बंधे हुये बंधुआ खेत मजदूरों के निम्नतम वर्ग के बीच में थे।
“मध्यम वर्गीय क्रांति” का विचार, जिसे साम्राज्यवादी, लाल रंग को छोड़कर, दूसरे तरह-तरह के रंगों में वर्णित करते हैं, जैसे कि नारंगी क्रांति, यह सिर्फ एक भ्रम है। वर्तमान युग में पूंजीपति पहले से ही सत्ता में हैं और पूरी तरह प्रतिक्रियावादी हैं। निम्न पूंजीपति या मध्यमवर्ग स्वभाव से ढुलमुल है, कभी मजदूर वर्ग के साथ जाता है तो कभी पूंजीपति वर्ग की पूंछ बनता है। यह वर्ग बीते दिनों को वापस लाने का सपना देखता है; भविष्य के लिये उसका कोई नज़रिया नहीं है।
मध्यम वर्ग के बारे में फरेबी पूंजीवादी प्रचार का उद्देश्य है मजदूर वर्ग की पहचान को तोड़-मरोड़ कर पेश करना। उसका उद्देश्य है मजदूर वर्ग को अपनी असली क्षमता को पहचानने से रोकना, ताकि मजदूर वर्ग अपने वर्ग के आधार पर एकजुट न हो और उस सामाजिक क्रान्ति को अगुवाई न दे पाये, जो सभी प्रकार के शोषण को खत्म कर देगी और पूंजीवाद की जगह पर समाजवाद और कम्युनिज़्म की स्थापना करेगी।