5 और 6 अप्रैल की लगातार दो रातों को इस्राइली सेना ने पूर्वी येरुशलम के इस्राइली क़ब्जे़ वाले अल-अक्सा मस्जिद पर धावा बोल दिया। मुस्लिमों के पवित्र रमजान के महीने के दौरान ये भड़काऊ हमले जानबूझकर किए गए हैं।
इस्राइली सेना जबरन मस्जिद में घुस गई, जब वहां पर नमाज चल रही थी। नमाज अदा कर रहे लोगों को बेरहमी से डंडों से पीटा गया, उनको हथकड़ी लगाई गई और उन्हें मस्जिद के फर्श पर लेटने के लिए मजबूर किया गया। सैकड़ों लोग घायल हो गए। चिकित्साकर्मियों को घायलों का इलाज करने से रोका गया। इन बर्बर हमलों के बाद, सैकड़ों फिलिस्तीनियों को गिरफ़्तार भी किया गया।
नमाज अदा कर रहे लोगों को बाहर निकालने के बाद, इस्राइली राज्य ने सुनियोजित तरीक़े से पुलिस की सुरक्षा में उग्र और उकसाने वाले कुछ गुटों को मस्जिद में भेजने की साज़िश रची। जिसका उद्देश्य था फिलिस्तीनी लोगों की बेईज़्ज़ती करना और उनके धार्मिक जज़्बातों को भड़काना।
अल-अक्सा मस्जिद पर हमले के बाद, इस्राइली सेना ने फिलिस्तीनी लोगों के बढ़ते विरोध को बेरहमी से कुचलने के लिए, गाजा पट्टी और दक्षिणी लेबनान पर हवाई बमबारी की।
अल-अक्सा मस्जिद को क्यों निशाना बनाया गया?
अल-अक्सा मस्जिद फिलिस्तीनियों के लिये, अपनी ज़मीन पर इस्राइल के जबरदस्ती क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ प्रतिरोध की एक मिसाल बन गई है। यह मस्जिद पूर्वी येरुशलम में स्थित है, जिस पर 1967 में हुये एक छह-दिवसीय युद्ध के दौरान इस्राइल द्वारा जबरन क़ब्ज़ा कर लिया गया था। जिसके बाद, इसे इस्राइल के एक हिस्से के बतौर इस्राइल में मिला लिया गया था। युद्ध के दौरान लूटी गयी इस ज़मीन और उस पर किये गये क़ब्ज़े को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता नहीं दी गई है।
मुसलमान लोग अल-अक्सा मस्जिद को इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल मानते हैं। मस्जिद के परिसर में स्थित डोम ऑफ द रॉक जो सातवीं शताब्दी की एक संरचना है, जिसे मुसलमान लोग उस स्थान के रूप में मानते हैं जहां से पैगंबर मोहम्मद स्वर्ग का लिए रवाना हुए थे।
उसी परिसर के भीतर टेंपल माउंट भी स्थित है, जिसके बारे में यहूदी लोगों की मान्यता है कि बाइबल युग में यह यहूदी मंदिरों का स्थान था।
फिलिस्तीनी लोग अल-अक्सा को उन राष्ट्रीय प्रतीकों में से एक मानते हैं जिन पर उनका कुछ हद तक नियंत्रण है।
1967 के युद्ध में इस्राइल ने जिन फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया था जैसे कि – पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक, गोलन हाइट्स और गाजा पट्टी – उन स्थानों को फिलिस्तीनी लोगों को लौटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बार-बार कहने के बावजूद भी इस्राइल ने उनको वापस करने से इनकार कर दिया है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक प्रस्तावों का उल्लंघन करते हुए, अमरीका के समर्थन के बलबूते पर, इस्राइल ने येरूशलम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया है।
इस्राइली राज्य ने फिलिस्तीनियों को मस्जिद पर नियंत्रण से वंचित करने के लिए बार-बार, अल-अक्सा परिसर में घुसपैठ की है और दंगों को आयोजित किया है। फिलिस्तीनियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बेइंतहा संघर्ष किया है।
2022 में इस्राइली सेना ने रमजान के दौरान मस्जिद पर ग्रेनेड से हमले किए थे और फिलिस्तीनियों को पीटा था। जिसमें सैकड़ों लोग घायल हो गये और सैकड़ों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसके बाद मार्च 2022 में इस्राइल के क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक क्षेत्र में इस्राइल द्वारा आतंक फैलाया गया, जिसमें 36 लोग मारे गए थे।
इस्राइली सेना ने मई 2021 में रमजान के दौरान मस्जिद पर धावा बोल दिया था। इस हमले में सैकड़ों फिलिस्तीनी लोग घायल हुए थे। इसके साथ ही, इस्राइली राज्य ने पूर्वी येरुशलम के शेख-जर्राह क्षेत्र में फिलिस्तीनियों पर क़ातिलाना हमले किए, ताकि उन्हें उनके घरों से जबरन बेदखल किया जा सके। मई 2021 में किये गए इस्राइल के इन हमलों के परिणामस्वरूप, 66 बच्चों सहित कम से कम 256 फिलिस्तीनियों की मौत हो गई थी और 1,900 से अधिक लोग घायल हो गये थे।
2023 की शुरुआत से इस्राइल ने अपने क़ब्जे़ वाले, येरूशलम क्षेत्र के लोगों पर अपने हमलों को और भी तेज़ कर दिया है। सिर्फ जनवरी 2023 में ही इस्राइली हमलों और छापेमारी में 8 बच्चों सहित 36 फिलिस्तीनी लोग मारे गए हैं।
अमरीकी साम्राज्यवाद का इस्राइली शासन को राजनीतिक और सैन्य समर्थन
फिलिस्तीनियों पर इस्राइल द्वारा किये जा रहे क़ातिलाना हमलों के इस नए दौर की, संयुक्त राष्ट्र संघ और अरब लीग के देशों, मिस्र, जॉर्डन, तुर्की, ईरान और सऊदी अरब सहित कई अन्य देशों ने कड़ी निंदा की है।
हालांकि, हक़ीक़त तो यह है कि दुनिया क्या सोचती है, इस्राइली राज्य इसकी परवाह किए बिना, फिलिस्तीनी लोगों पर अपने क़ातिलाना हमलों को बेशर्मी से जारी रखा है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि इस्राइल को अमरीकी साम्राज्यवाद का पूरा समर्थन प्राप्त है। अमरीकी साम्राज्यवाद इस्राइल को ज्यादा से ज्यादा हथियारबंद करने में लगातार मदद कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राइल की इन बर्बर करतूतों का बचाव करने के लिए अमरीका अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करता है।
अमरीका ने इस तेल समृद्ध पश्चिम एशिया पर अपना नियंत्रण और वर्चस्व स्थापित करने के लिए, इस्राइल को फिलिस्तीनी लोगों और अन्य अरब लोगों के ख़िलाफ़ एक बंदूक की नोक के रूप में खड़ा किया है। अमरीका यह बिल्कुल भी नहीं चाहता कि इस्राइल, फिलिस्तीन और अरब के अन्य देशों के लोग एक-दूसरे के साथ शांति से रहें। अमरीका इस क्षेत्र में लगातार टकराव को बढ़ावा देता रहता है।
अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा नियंत्रित मीडिया, फिलिस्तीनियों पर इस्राइली हमले और फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध संघर्ष को, “दंगों” के रूप में पेश करती है, और ‘दोनों पक्षों को संयम बरतने’ का आह्वान करती है। यह प्रचार दोनों पक्षों के बीच, झूठी बराबरी पेश करके लोगों के बीच यह भ्रम फैलाता है कि कौन हमलावर है और किस पर सुनियोजित तरीक़े से हमला करके उसे तबाह किया जा रहा है। साम्राज्यवादियों के नियंत्रण वाला मीडिया फिलिस्तीनी लोगों द्वारा जीवन जीने और अपने अस्तित्व के अधिकार की सुरक्षा के लिए किये जा रहे संघर्ष को आतंकवाद के रूप में चित्रित करता है। वह मीडिया इस हक़ीक़त को छिपाने की कोशिश करता है कि इस तबाही के लिए इस्राइली राज्य ज़िम्मेदार है। साथ ही वह मीडिया इस्राइली राज्य द्वारा फैलाये जाने वाले आतंक और उसके अनगिनत अपराधों को छुपाने की कोशिश भी करता है।
1948 में अपनी स्थापना के बाद से ही इस्राइल राज्य एक आक्रामक और विस्तारवादी राज्य रहा है। इस्राइली राज्य ने शुरुआत से ही अपनी सेना को फिलिस्तीनी लोगों के क्षेत्र पर आक्रमण करने और उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए भेजा है। इस्राइल ने कई युद्धों के दौरान फिलिस्तीनी लोगों की अधिक से अधिक ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। हक़ीक़त तो यह है कि इस्राइली राज्य ने 15 लाख से अधिक फिलिस्तीनी लोगों को – जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, मिस्र, सऊदी अरब सहित इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में फैले शरणार्थी शिविरों में, अपनी पूरी ज़िन्दगी बिताने के लिए मजबूर किया है।
इस्राइल के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में रहने वाले फिलिस्तीनियों को रोज़ हमलों, विध्वंस और बेदख़ली के ख़तरों का सामना करना पड़ता है। इन क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों के आसपास इस्राइली सैनिकों द्वारा स्थापित सैकड़ों चौकियों पर तलाशी के क्रूर तरीक़ों से तबाह फिलिस्तीनियों को रोज़ बेइज़्ज़त किया जाता है।
फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राइली राज्य के सबसे गंभीर अपराधों में से एक यह है कि वह अपने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में सुनियोजित साज़िश के तहत यहूदी आबादी की कॉलोनियों को बसाना चाहता है। यह चौथे जिनेवा कन्वेंशन का सीधा-सीधा और खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है, जो एक क़ब्ज़ाकारी शक्ति को अपने लोगों को उसके द्वारा अधिग्रहीत किसी भी क्षेत्र में स्थानांतरित करने से रोकता है। इस समय, इस्राइली क़ब्जे़ वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में लगभग 250 ऐसी अवैध सेटलर-कॉलोनियां हैं जिनमें 6 लाख से अधिक लोग रहते हैं। इन्हें इस्राइली राज्य की सशस्त्र सेनाओं द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। दूसरी ओर, अपनी खुद की ज़मीन पर रहने वाले फिलिस्तीनियों को वहां अपना घर बनाने की अनुमति पाने के लिए आवेदन पत्र देना पड़ता है। अपने खुद के घरों से निकाल के फेंके जाने और उनके घरों को तोड़कर उन्हें तबाह करने का ख़तरा हमेशा उनके ऊपर मंडराता रहता है।
दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद के वर्षों में, अमरीकी साम्राज्यवाद का समर्थन पाकर इस्राइल द्वारा फिलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ किए गए जुर्म, दुनिया के लोगों के ख़िलाफ़ साम्राज्यवाद द्वारा की गयी नाइंसाफ़ी की एक मिसाल के रूप में हमेशा पेश किये जाएंगे।
अपनी मातृभूमि को बचाने और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इस्राइली हमलों के ख़िलाफ़ फिलिस्तीनी लोगों का संघर्ष पूरी तरह से जायज़ है। हिन्दोस्तान के लोग और दुनियाभर के सभी न्यायपसंद लोग उनके संघर्ष का पूरा समर्थन करते हैं।