रेल मज़दूरों ने मांगें उठायीं

रेल मज़दूर यूनियन के झंडे तले रेलवे मज़दूरों ने 25 फरवरी, 2011 को अपनी मांगों पर जोर देने के लिये संसद पर एक प्रदर्शन किया।

रेल मज़दूर यूनियन के झंडे तले रेलवे मज़दूरों ने 25 फरवरी, 2011 को अपनी मांगों पर जोर देने के लिये संसद पर एक प्रदर्शन किया।

मज़दूरों ने मांग की कि रेलवे के प्रबंधन को सभी यूनियनों से बिना किसी भेदभाव पेश आना चाहिये। उन्होंने मांग की कि एक नयी औद्योगिक नीति लायी जानी चाहिये जो उनकी मांगों से मेल खाती हो। उन्होंने रेलवे कर्मचारियों के बच्चों के लिये नौकरी की मांग रखी। उन्होंने रेलवे के लिये वेतन बोर्ड गठित करने की मांग भी रखी जो मज़दूरों की आकांक्षाओं के अनुरूप हो और बढ़ते निर्वाह खर्चे का सही भत्ता मिल सके।

मज़दूरों ने मांग रखी कि उत्पादकता से जुड़े बोनस को तर्कसंगत बनाया जाये और बिना किसी सीमाबध्दता के असली भुगतान किया जाये। उन्होंने मांग की कि रेलवे के रिक्त पदों का आकलन ठीक से किया जाये और उन्हें तुरंत भरा जाये। निर्वाह खर्चे के बढ़ने और मुद्रा स्फीति को ध्यान में रखते हुये, उन्होंने मांग की है कि ग्रेच्युटी को बढ़ाकर 24.5 महीने के औसत वेतन के बराबर बनाया जाये। नयी पेंशन योजना से सेवानिवृत कर्मचारियों को उपयुक्त राहत नहीं मिल रही है, अत: इसे रद्द करके परिवारिक पेंशन योजना वापस लानी चाहिये।

मज़दूरों ने रेलवे के कर्मचारियों व उनके परिवारों के लिये पर्याप्त और आधुनिक आवास, स्वास्थ्य सेवा और शैक्षणिक सुविधाओं की उपलब्धि की मांग रखी है।

मज़दूरों की सबसे अहम मांग है कि ठेकेदारी पध्दति को खत्म किया जाये। जो भी अभी ठेके पर नौकरी करते हैं उन्हें नियमित किया जाना चाहिये। निजीकरण और रोजगार को बाहरी स्रोतों से कराने को तुरंत बंद करना चाहिये और इन सभी कार्यों को रेलवे के मज़दूरों द्वारा ही करवाना चाहिये।

यूनियन ने इन मांगों पर तात्कालिक कार्यवाई के लिये रेल मंत्री को ज्ञापन भेजा है।

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